सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

सेलफोन का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर का एक कारण

लंदन। सेलफोन के इस्तेमाल को ब्रेन ट्यूमर का एक कारण पहले ही बताया जा चुका है लेकिन अब एक नवीन अध्ययन सामने आया है जिसके मुताबिक मोबाइल से निकलने वाला विकिरण मानव त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय
लंदन। सेलफोन के इस्तेमाल को ब्रेन ट्यूमर का एक कारण पहले ही बताया जा चुका है लेकिन अब एक नवीन अध्ययन सामने आया है जिसके मुताबिक मोबाइल से निकलने वाला विकिरण मानव त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

मोटापा एक बड़ी चुनौती


ब्रिटेन के एक वरिष्ठ डाइटिशियन का कहना है कि लोगों में मोटापे की समस्या जलवायु परिवर्तन की समस्या से कम गंभीर नहीं है। उन्होंने इसके समाधान के लिए तत्परता से क़दम उठाने और दुनिया भर के नेताओं से समान कार्यनीति पर सहमति क़ायम करने की अपील की है। अंतरराष्ट्रीय मोटापा कार्यबल के अध्यक्ष और लंदन में 'स्कूल ऑफ़ हाईजीन एडं ट्रॉपिकल' के प्रोफ़ेसर फ़िलिप जेम्स ने कहा कि मोटापा एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि विकल्पों की परवाह किए बग़ैर इससे निपटने के लिए शीघ्र तैयारी की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि इस पर काबू पाने के लिए सभी को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मुहैया कराना ज़रूरी है और वो चाहते हैं कि दुनिया भर के नेता इस बारे में एक वैश्विक समझौते पर सहमत हों. बोस्टन में अमरीकी एसोसिएशन फ़ॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जेम्स ने कहा, "यह एक सामुदायिक महामारी है।" उन्होंने कहा, "औद्योगिक और व्यापारिक विकास की वजह से आए परिवर्तनों के कारण शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम हुई. अब बड़े उद्योग अपने फ़ायदे के उद्देश्य से खाद्य और पेय पदार्थों के ज़रिए बच्चों को निशाना बना रहे हैं."
उन्होंने कहा," इसे बदलना होगा और ये तब तक संभव नहीं होगा जब तक सरकार की ओर से कोई सुसंगत कार्यनीति नहीं होगी. सवाल है कि क्या हमारे पास इस मसले पर राजनीतिक इच्छाशक्ति है?"
प्रोफ़ेसर जेम्स ने कहा कि खाद्य पदार्थों की लेबलिंग इस तरह की होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता उसमें मौजूद वसा, चीनी और लवण तत्वों का फ़ौरन अनुमान लगा सके. उनके मुताबिक विश्व के 10 प्रतिशत बच्चे या तो मोटापे की बीमारी से ग्रस्त हैं या ज़्यादा वज़न के हैं और इस संख्या के लगभग दोगुने बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. उन्होने कहा "बड़ी संख्या में किए गए विश्लेषण दिखाते हैं कि हम बच्चों के पोषण और उचित रख-रखाव पर पूरा ध्यान नहीं दे रहे है."
नए आँकड़ों के अनुसार सात से 12 साल के ज़्यादा भार वाले बच्चे ह्रदय रोगों और ऐसी ही अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं और उनकी असमय मौत हो जाती है. बोस्टन में संपन्न एएए की बैठक में एक अन्य विशेषज्ञ प्रोफ़ैसर रेना विंग ने इस विषय में किए गए एक शोध परिणाम को पेश किया.
मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े बदलाव की ज़रूरत है
उन्होंने कहा कि मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है। उन्होंने क़रीब पाँच हज़ार ऐसे पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया जिन्होंने अपना वज़न तीस किलो तक घटाया है और छः महीनों तक यही वज़न बरक़रार रखा यानी वज़न बढ़ने नहीं दिया. उनके मुताबिक इन लोगों ने अपनी दिनचर्या में बड़े परिवर्तन किए हैं जिनमें एक दिन में 60 से 90 मिनट का व्यायाम शामिल है। उनका कहना है कि हालाँकि पुरानी आदतों की वजह से मोटापे की महामारी पर क़ाबू पाना उतना आसान नहीं है। इससे निजात पाने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.

आशुतोष पाण्डेय

रविवार, 10 फ़रवरी 2008

एक अनोखा रिकार्ड भी है सचिन के नाम

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी बल्लेबाज़ी का धाक जमाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ब्रिसबेन वनडे में बड़ी उम्मीद लेकर उतरे थे। उन्हें भी इसका अंदाज़ा नहीं होगा कि वे एक ऐसे रिकॉर्डबुक में नाम दर्ज कराने जा रहे हैं, जिस पर उन्हें कभी नाज़ नहीं हो पाएगा। त्रिकोणीय सिरीज़ के पहले मैच में भारत का मुक़ाबला था ऑस्ट्रेलिया से। अपने पुराने साथी वीरेंदर सहवाग के साथ सलामी बल्लेबाज़ के रूप में उतरे सचिन तेंदुलकर शुरू में अपने लय-ताल में नज़र नहीं आए. ऐसे समय जब लग रहा था कि उनकी नज़रें अब जम रही हैं, वे आउट हो गए. आउट भी हुए तो इस तरह जिस पर उन्हें शायद सबसे ज़्यादा हताशा और निराशा हुई होगी. ब्रेट ली की एक गेंद पर मास्टर ब्लास्ट बैक फ़ुट पर आए और रक्षात्मक स्ट्रोक लगाकर एक रन के लिए भागे. अभी वे आधे रास्ते में ही थे तो स्लिप में खड़े ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों और विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट आउट की अपील करने लगे.
ली के चेहरे पर भी ख़ुशी नज़र आई। सचिन ने पीछे मुड़कर देखा लेकिन एकबारगी तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या है?
दरअसल सचिन तेंदुलकर ब्रेट ली की गेंद पर इतना ज़्यादा बैक फ़ुट पर आ गए कि उनके पैर से स्टंप छू गया और गिल्ली गिर गई. उनका पैर इतने हल्के से स्टंप से छुआ तो सचिन को इसका एहसास भी नहीं था.
सचिन तेंदुलकर ने अंपायर से पूछा- क्या हुआ? सचिन अंपायर के पास गए और अपनी अनभिज्ञता जताई. अंपायर ने थर्ड अंपायर से पूछा और टीवी रीप्ले से पता चला कि सचिन हिट विकेट आउट हुए हैं. अपने कैरियर के इस मोड़ पर सचिन पहली बार हिट विकेट आउट हुए.
बल्लेबाज़ी के मास्टर को इस रूप में आउट होना देखना किसी को नहीं भाया. भारतीय समर्थकों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई दर्शक भी एकबारगी हक्के-बक्के रह गए.
आउट होकर पवेलियन जाते समय भी सचिन की हताशा देखते बनती थी. सचिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुए. वैसे वे तीसरे भारतीय खिलाड़ी हैं, जो वनडे क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुआ है.
उनसे पहले नयन मोंगिया और अनिल कुंबले वनडे मैचों में हिट विकेट आउट हुए हैं. नयन मोंगिया 1995 में वसीम अकरम की गेंद पर हिट विकेट हुए थे तो अनिल कुंबले 2003 में न्यूज़ीलैंड के एंड्रयू एडम्स की गेंद पर इस तरह आउट हुए थे.
वैसे सचिन के लिए ज़्यादा निराशा की बात नहीं है। हिट विकेट आउट होने वालों में महान ब्रायन लारा और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंज़माम-उल-हक़ के नाम भी शुमार हैं.

अंजू 'स्नेहा'