शनिवार, 22 दिसंबर 2012

शीला की नैतिकता या नौटंकी: दिल्ली गैंगरेप


शीला दीक्षित: कैसे मिलाऊँ बलात्कार पीडिता से नजर? आखिरकार शीला दीक्षित ने मान ही लिया की नैतिकता उन्हें बलात्कार पीडिता से नजर मिलाने के काबिल नहीं मानती है। सच में उन्हें ऐसा ही सोचना चाहिए लेकिन ये सोच दिल से निकल आयी है या फिर अभी गुजरात में कांग्रेस के हश्र पर मानसिक कवायद है या फिर जनता का दबाव। क्योंकि, साथ ही शीला ने ये कहने से भी गुरेज नहीं किया है की दिल्ली की शासन व्यवस्था उनके हाथ नहीं है। शीला ये बात आप मनमोहन जी से क्यों नहीं कहती जब आप दिल्ली की जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी ले ही नहीं सकती हैं तो फिर मुख्यमंत्री क्यों बनी हैं? इतनी मजबूरी में सत्ता कैसी? अगर वास्तव में आपको अफ़सोस है तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देती हैं। वैसे नेताओं के टंटे सालों पुराने हैं लेकिन फिर भी जनता इन में फंसती ही है। इस बार भी शीला की मनोवैज्ञानिक पुड़िया शायद चल जाए। चंद दिनों में लोग इस घटना को भूल जायेंगें और शीला जी अपनी नैतिकता को। फिर इन्तजार करना पड़ेगा किसी और हादसे का कि जनता चीत्कार करे और नेता अफ़सोस। हमारे गृह मंत्री शिंदे साहिब ने भी कहा था कि वे भी बेटियों के बाप हैं। लेकिन अब कैसे याद आया उन्हें की वे बेटियों के बाप हैं जिस देश में रोज हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार होता है उनकी अस्मत लूटी जाती है तो... शीला और शिंदे को याद हादसों के बाद ही आती है।  क्या जनता इस नैतिकता की दुहाई पर शीला दीक्षित से ये नहीं पूछेगी की आखिर कब तक हम ऐसे जियेंगें?
(आशुतोष पाण्डेय) 






गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

इनसाईट स्टोरी: अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति

इनसाईट स्टोरी: अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति: कुछ समय पहले तक देश में अन्ना हर मुद्दे पर मुखर दिखे थे लेकिन अब लगता है एक लम्बे वनवास में किसी जंगल में चले गये हैं, एक ऐसी शख्शियत ...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...: गुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्या...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...: गुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्या...

अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति

कुछ समय पहले तक देश में अन्ना हर मुद्दे पर मुखर दिखे थे लेकिन अब लगता है एक लम्बे वनवास में किसी जंगल में चले गये हैं, एक ऐसी शख्शियत जिसे हर दशा में सरकार और नौकरशाहों में खोट दिखता था आज जब दिल्ली एक बलात्कार के लिए चीत्कार रहा है अन्ना कहाँ हैं... किसी को पता नहीं। सच और न्याय के इस बड़े पैरोकार को आज क्या हो गया जो वो चुप है या फिर यहाँ कोई बड़ा स्पांसर नहीं मिल रहा है. ये अन्ना टाईप सेलिब्रेटी हर समय किसी बहकाने वाले को खोजते रहते हैं। देश के साथ धोखा करने वालों को ये देश पूजता है, भारतीय मानस हर बार ठगा जाता है। कभी नेताओं द्वारा और कभी अन्ना जैसे षड्यंत्रकारियों द्वारा देश की लोकतांत्रिक  आत्मा के साथ बलात्कार करने वाला ये शख्स आज बलात्कारियों के कृत्यों पर चुप है आखिर क्यों? क्योंकि  इसे कोई फर्क पड़ता है। अगर यहाँ भी कोई प्रायोजक मिल जाए तो अन्ना कल ही धरने पर होंगें। धत अन्ना एक बेटी की अस्मत लूटी गयी और तुम्हारी चुप्पी.....कल तक इस देश ने आपको आदर्श माना था लेकिन आप तो इन नेताओं से भी बदतर निकले इन्हें कम से कम संवेदना को शब्द तो मिले। अगर अब भी ये देश ऐसे छद्म अन्ना की बाँट जोह रहा है तो देश बिक जाएगा और अन्ना प्रायोजक तलाशता रहेगा। ये देश अब उठ अपने बल बूते लड़ने की कुव्वत कर अन्ना को कोई फर्क नहीं पड़ता की तेरी माँ या बहिन की अस्मत लूटी जाय। 

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...


narendra-modiगुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्यादा उत्साहित दिखता है. मोदी की वापसी कई मायनों में एतिहासिक होगी इसका सबसे बड़ा असर खुद बीजेपी पर पड़ना तय है. बीजेपी के पुराने दिग्गज नेताओं की पूरी जमात मोदी के लौट आने के बाद अपना वजूद खो देगी और पार्टी के बड़ा हिस्सा कई भागों में बंट जाएगा. इससे मोदी को उस सफ़र में नुकसान होगा जिसका ख्वाब उन्होंने देखा है. केशुभाई, आडवानी जैसे नेता मोदी के साथ आ जाएँ लगता नहीं है और अन्य सेक्यूलर दलों का समर्थन भी मिलना मोदी को संभव नहीं होगा जिसमें बिहार के नितीश कुमार भी शामिल हैं. ऐसे में फिर मोदी को गुजरात में ही अपनी ताकत को खोना पड़ सकता है. बीजेपी का इतिहास रहा है की इस पार्टी ने लम्बे समय तक किसी व्यक्ति विशेष में अपनी आस्था नहीं दिखाई है. ऐसे में मोदी के संग पार्टी के सिपहसालार कितने दिन टिक पायेंगें कहा नहीं जा सकता है. एक समय में दिल्ली को याद करें तो मदन लाल खुराना, साहिब सिंह और सुषमा स्वराज इन तीनों को लड़ा कर बीजेपी लंबे वनवास में चली गयी थी. इस बार फिर यही मोदी के साथ दोहराया जाय तो कोई नई बात तो नहीं होगी. देखना तो ये है की मोदी कब तक बीजेपी के लिए ख़ास बने रहते हैं. 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

आम आदमी की टोपी के साथ केजरीवाल

शीला दीक्षित अरविन्द केजरीवाल को मान हानि का नोटिस भेज चुकी हैं लेकिन केजरीवाल ने कहा है जब तक शीला का यही रवैया रहेगा तब तक वे उनकी मानहानि करते ही रहेंगे. केजरीवाल को अपने वक्तव्य पर कोई अफ़सोस है, होना भी नहीं चाहिए क्योंकि सच को कहने में अफ़सोस क्यों किया जाय? दूसरी खबर जो आज नुमाया हुयी है की बिजली के नये स्लैबों में कुछ राहत दी गयी है. ये राहत भी ऐसी है की क्या कहें शब्दों का अकाल पड़ गया है. वाड्रा साहब और बेगम खुर्शीद के साथ नितिन जी पोल खोल केजरीवाल ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि इस समय  देश की राजनीति में सब लुटेरे हैं. असल में केजरीवाल के इन खुलासों ने देश के सामने राजनैतिक निर्वात की स्थिति पैदा कर दी है. लेकिन केजरीवाल के इस आन्दोलन के साथ भी कई सवाल जुड़े हैं? जैसे उनके साथियों पर लगे आरोप, अन्ना और सिविल सोसायटी के अन्य सदस्यों  की दूरी. अन्ना जिस आन्दोलन को पूरे जोर शोर से चला रहे थे लेकिन राजनितिक विकल्प के सामने आने के बाद उनके लिए ये सब अछूत हो गया. जिस लोकपाल को अन्ना लाना चाहते थे उसे पास करवाने के लिए नितिन, खुर्शीद और पवार जैसे नेताओं के का समर्थन ही चाहिए और ये समर्थन क्यों देने लगे इनमें से कोई भी इतना बेवकूफ नहीं दिखता की अपनी रसद लाइन ही काट डाले. ऐसे में जो विकल्प बचता है वह केवल चुनाव के साथ संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ पहुचने पर ही पूरा हो पायेगा. इस बात को तो अन्ना और किरण बेदी जानते ही होंगें लेकिन ऐन मौके पर अपने हाथ पीछे खीच वे क्या दिखाना चाह रहे थे. दरअसल अन्ना का आन्दोलन एक प्रायोजित कार्यक्रम ही था जिसमें कांग्रेसी नेताओं को बदनाम कर भाजपा को सीधा फायदा पहुंचाना ही था. लेकिन जब अरविन्द ने राजनितिक विकल्प पर सहमति दी तो अन्ना ने आन्दोलन को खत्म ही कर डाला. अब भी आम आदमी जिसके नाम की टोपी अरविन्द के सर पर है वही अरविन्द के साथ     जुड़ कर भी ठगा नहीं जाएगा इस बात की क्या गारंटी है? लेकिन अच्छा होगा यदि ये आन्दोलन आम आदमी को फिर से संसद और विधायिका के प्रति विश्वास करने का मौक़ा देगा.
और अरविन्द एक ख़ास बात आपके लिए ये जो जनता आज आपके साथ है और नेताओं से जवाब मांग रही है एक दिन उन्हीं नेताओं की जय जयकार करती थी लेकिन आज उन्हें उखाड़ने के लिए आप के साथ है. कल अगर आप भी उन्हीं नेताओं की कतार में खड़ें हो गये तो जनता आप को भी यही सबक देगी.

शनिवार, 4 अगस्त 2012

अन्ना की कशीदाकारी: जनता के साथ धोखा


तू भी अन्ना, मैं भी अन्ना.... जैसे नारों के फेर में पड़ कर लाखों भारतवासियों की भावनाओं के साथ लंबा खिलवाड़ किया गया. राजनीति को गाली और नेताओं को चोर बताने वाली टीम अन्ना जिस छद्म आंदोलन का सहारा लेकर संसद और लोकतंत्र को गुमराह कर रहे थी उसका हस्र तो होना ही था लेकिन देश और उसकी भावनाओं से जो खिलवाड़ किया गया वह आश्चर्यजनक है. लोकतंत्र का जो दुरूपयोग अन्ना और उनकी सिविल सोसायटी ने किया वैसा इससे पूर्व कहीं नहीं देखा गया. भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी अन्ना की टीम खुद जनता के साथ एक बड़ा खेल खेल गयी. जनता की मेहनत की कमाई से चलाया गया ये आंदोलन टीम अन्ना की लिप्सा की भेंट चढ गया. अन्ना जिस भावना को लेकर इस आंदोलन का आजाग कर चुके थे उसका विषय था जन लोकपाल लेकिन जन लोकपाल से ये आंदोलन कुछ मंत्रियों के खिलाफ व्यक्तिगत बयान बाजी तक सिमट गया और अंत होने तक शुचिता की तमाम सीमायें लांघकर ये आंदोलन सरकार, मीडिया और व्यक्तिगत आक्षेप का अखाड़ा बन गया. जब ये आंदोलन चला था तो लोगों को आस जगी थी की भ्रष्टाचार के खिलाफ ये लड़ाई किसी मुकाम तक पहुचेगी लेकिन आंदोलन के साथ ही टीम अन्ना कई प्रकार की व्यक्तिगत अपेक्षाओं की शिकार होती गयी. कभी आर एस एस और भाजपा का गुणगान करने और कभी अपने ही सदस्यों पर जासूसी का आरोप लगाकर इस समूह ने खुद  का राजनितिक दलदल में फंसा होना साबित कर दिया था. जंतर मंतर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सेलिब्रिटी के साथ नाम जोड़ने की तमन्ना रखने वालों से ये आंदोलन आगे नहीं जा पाया. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं के द्वारा तमाम मुद्दों पर सरकारी कार्यालयों पर छापेमारी के अभियान तक चलाए गए, लेकिन ना तो इसके बाद कहीं कुछ कार्रवाई की गई और ना ही कोई आंदोंलन इन अनियमिताओं के खिलाफ किया गया, तो ये सब क्यों किया गया इसका सीधा जवाब किसी के पास नहीं है. इसके बाद इन लोगों ने अपने व्यक्तिगत कार्य सिद्ध करवाए. गैस सिलेंडरों की कालाबाजारी के खिलाफ आंदोलन करने वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों के द्वारा ठेकेदार से उनके घर प्राथमिकता के तौर पर सिलेंडर की डिलीवरी करने पर ये आंदोलन यहीं सिमट गया. कई ठेके और अन्य काम भी इन लोगों ने ब्लैकमेल कर करवा लिए. क्या जब ये लोग अन्ना पार्टी के सांसद या विधायक होंगें तो इनका रवैया क्या होगा? ये सोचने वाली बात है. भ्रष्टाचार हटना चाहिए लेकिन पुराने भ्रष्टाचार को हटाने के लिए नए भ्रष्टाचारियों की टीम खड़ी करना कहाँ की सोच है? सत्याग्रह जिसकी तुलना गांधी के सत्याग्रह से की जा रही थी और अन्ना को गांधी कह कर प्रचारित किया जा रहा था इस गांधी के पास ना तो लोकतंत्र का सम्मान करने का माद्दा है और ना ही वो सोच. कहने को गांधीवादी हों लेकिन अन्ना इस आंदोलन में तो प्रोफेशनल ही लगे हर घटना के साथ बेलेंस सीट बना कर आंदोलन को चलाया जा रहा था. भीड़ का गणित तक लगाया गया, पूरे कार्पोरेट तमाशे किये गए, डैमेज कंट्रोल और विज्ञापनों का सहारा लिया गया. गांधी जी ने वैचारिक हिंसा का सहारा कभी नहीं लिया, व्यक्तिगत आक्षेप के लिए उनके दर्शन में कोई जगह नहीं थी, लेकिन अन्ना का आंदोलन तो था ही वैचारिक हिंसा का आंदोलन. गांधी कहलवा लेना आसान है लेकिन गांधी बनना काफी कठिन है. टोपी पहन गांधी बन देश से खिलवाड तो देशद्रोह की श्रेणी में आना चाहिए और इसके लिए एक सजा मुकरर होनी चाहिए.
(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

तन्हाई में हो तो मुझसे दिल की बातें करें


मुझसे दोस्ती करोगे! तन्हाइयों में हमसे बातें करें... जैसे सन्देश आपको अपने मोबाइलों पर रोज मिलते होंगें और यदि कभी आपने इन नम्बरों पर फोन किया होगा तो पता चला होगा कि आप को चूना लग चुका है. ऐसे सैकड़ों सन्देश मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों द्वारा रोज उपभोक्ताओं को भेजे जातें हैं और रोज लाखों रूपये ये कंपनियां इन फर्जी काल के जरिये करवा रहीं हैं. हद तो यह है कि ये कंपनियां कुछ लड़कियों को बिठा कर अश्लील बातें करवा रहीं हैं और ये धंधा खुले आम चल रहा है. इनसाईट स्टोरी ने एक ऐसे ही सन्देश में दिए गए नंबर पर जब काल कर बात की तो पता चला की कुछ लडकियां अपने फर्जी नामों से बात करती हैं और बात करने वालों को अश्लील बातें करने के लिए उकसाती हैं. कई बार ऐसी काल्स में फंसा कर बाद में ब्लैकमेलिंग और जिस्म फरोशी का काम भी किया जा रहा है. उपभोक्ता इनके चक्कर में फंस कर काफी देर तक बातें करतें हैं. इस प्रकार ये सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां प्रतिदिन मोटी कमाई कर रही हैं. इस बारे में जब किसी सर्विस प्रोवाइडर के कस्टमर केयर में बात की जाती है तो वे  ऐसे किसी सन्देश के उनके नेटवर्क से आये होने से मना कर देतें हैं. डी एन डी (डू नाट डिस्टर्ब) सेवा के चालू होने के बाद भी ये सन्देश उपभोक्ता के मोबाइल तक पहुंच ही जातें हैं. ये सब कैसे होता है समझ से परे है और इन संदेशों का रिकार्ड होने  से ये कंपनियां साफ़ मना क़र देती हैं. मोबाइल ही नहीं समाचार पत्रों में भी ऐसे कई विज्ञापन भरें होते हैं जिनमें दोस्त बना फोन पर बात करवाई जाती है. ये विज्ञापन पहले महानगरों से छपते थे लेकिन अब ऐसे कई क्लब जो फोन पर दोस्ती करवातें हैं छोटे शहरों में भी मिल जायेंगें. यहाँ दोस्ती के नाम पर खुला जिस्म फरोशी का धंधा भी चलाया जाता है. इन मोबाइल कंपनियों और दोस्ती के क्लबों के लिए कोई नियम क़ानून भी नहीं हैं. इस प्रकार के धंधों के जाल में फंसने वाले भी इसकी शिकायत नहीं करना चाहतें हैं. बकायदा पुलिस और राजनीतिक संरक्षण भी इन्हें प्राप्त है. तन्हाई में हो तो मुझसे दिल की बातें करें जैसे संदेशों से सावधान कहीं आप किसी मुसीबत में ना फंस जाएँ. 



(इनसाईट स्टोरी टीम)

शनिवार, 7 जुलाई 2012

आपका मोबाइल फोन हो सकता है हैक

ओह ये क्या मैंने मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया और मेरे पैसे कट गए ऐसी समस्या से मोबाइल रखने वाले रोज दो चार होते ही रहतें हैं. यदि आपको लगता है कि आपके मोबाइल फोन का बिल ज्यादा आ रहा है या पैसा ज्यादा कट रहे है तो तुरंत सावधान होने की जरूरत है क्योंकि आप शैतानी सॉफ्टवेयर मालवेयर के शिकार हो सकते हैं. अधिकाँशत: लोग ये सोचते हैं कि कम्प्यूटर पर काम करते वक्त ही वायरस या फिर मालवेयर के शिकार होते हैं तो वे लोग अपनी इस सोच को बदल लें क्योंकि आईटी विशेषज्ञों और टेलीकॉम क्षेत्र से जुड़े जानकारों के मुताबिक देश में वे मोबाइल फोन उपभोक्ता मालवेयर के शिकार हो रहे हैं जो मोबाइल से इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। खासकर फेसबुक, ऑरकुट और ट्विटर का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर मोबाइल वायरस के शिकार हो रहे हैँ।

मालवेयर क्या है? मालवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो आपकी इजाजत के वगैर आपके मोबाइल फोन पर जाकर बैठ जाते हैं और कुछ परिस्थितियों में आपके डॉटा को आपकी इजाजत के बगैर मोबाइल के बाहर भेजते हैं। कई बार मालवेयर की वजह से आपके मोबाइल फोन का बिल बढ़ जाता है और अनावश्यक कॉल आती है.
एक आईटी विशेषज्ञ के अनुसार ग्राहकों को कभी +92 जैसे कुछ अजीबोगरीब नंबरों से फोन कॉल आने की यही वजह है कि फोन मालवेयर का शिकार हो गया है. कॉल उठाने पर फोन से पैसे कट जाते है. यही नहीं यह मालवेयर इतने ताकतवर होते है कि कई मामलों में देखा गया है कि मालवेयर हमलावर आपके फोन पर कब्जा कर कंपनी की बिलिंग प्रणाली से जुड़कर आपके मोबाइल फोन का बिल भी बढ़ा देते है. एंटी वायरस सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी एवीजी टेक्नोलॉजी के सर्वेक्षण में भी मोबाइल फोन पर सबसे ज्यादा मालवेयर हमलों का खुलासा हुआ है. मालवेयर से संक्रमित मोबाइल फोन का ग्राहक जब सोशल मीडिया पर जाता है और अपनी प्रोफाइल खोलने के लिए पासवर्ड का इस्तेमाल करता है तो मालवेयर तुरंत आपका पासवर्ड चुराकर आपसे जुड़ी सारी जानकारियां चुरा लेते है. अगर आपको अपने फोन की सुरक्षा की परवाह नहीं की तो संभावना है कि आपको नुकसान हो सकता है। आज के समय में सिर्फ कंप्यूटर में ही नहीं बल्कि मोबाइल फोन में भी एंटी वायरस सॉफ्टवेयर प्रयोग करने की जरूरत है. ब्लू टूथ का इस्तेमाल करने से भी वायरस का शिकार हो सकते हैं ब्लूटूथ से सबसे ज्यादा संक्रमण होता है. इसके अलावा फेसबुक पर भी फर्जी प्रोफाइल के जरिए मालवेयर हमले देखने को मिल रहे हैं। इसमें लुभावने ऑफर देकर आपको जाल में फंसाया जाता है. लुभावने आफरों के जरिए भेजे गए मालवेयर सॉफ्टवेयर में इतनी क्षमता होती है कि वह आपके सिम कार्ड को अपने मनमुताबिक काम में लेकर इसका दुरुपयोग कर सकते हैं. एंड्रायड क्षमता युक्त फोनों में एंड्रायड मार्केट से मुफ्त में एंटी वायरस और एंटी मालवेयर साफ्टवेयर डाउनलोड कर सकते हैं. 
(आशुतोष पाण्डेय)

रविवार, 3 जून 2012

कुत्ते की 1800 किमी की यात्रा


कभी जानवर भी मनुष्य से बड़े कारनामे कर इंसान के लिए प्रेरणा बन जाता है. चीन में एक आवारा कुत्ते ने तिब्बत की यात्रा पर निकले साइकिल सवारों के एक समूह का पीछा किया और उनके साथ-साथ 20 दिन में 1,800 किमी से अधिक दूरी तय कर ली. शियाओसा नामक इस कुत्ते ने हर दिन 50 से 60 किमी की दूरी तय की और पूरी यात्रा के दौरान कभी पीछे नहीं गया. सूत्रों के अनुसार, यह कुत्ता 4,000 मीटर ऊंचे 12 से अधिक पहाड़ों पर चढ़ा और उसे खराब मौसम का भी सामना करना पड़ा. एक साइकिल सवार शियाओ योंग ने कहा कि पूरे रास्ते यह कुत्ता उन्हें प्रोत्साहित करता रहा. अब योंग इस कुत्ते को सेंट्रल हुबेई प्रांत स्थित अपने गृह नगर ले जाकर अपने साथ रखना चाह रही है. 

ऐश और आराध्या

कॉन फिल्म फेस्टिवल २०१२ में हिस्सा ले वापस भारत लौटती ऐश्वर्या राय बच्चन और बेटी आराध्या . 

शनिवार, 2 जून 2012

इनसाईट स्टोरी: कैटरीना इन एक्शन

इनसाईट स्टोरी: कैटरीना इन एक्शन: कैटरीना अब अपनी रोमांटिक इमेज को छोड़ एक्शन क्वीन बनने जा रही हैं. पहले सल्लू के साथ 'एक था टाइगर' में और फिर धूम-३ में भी एक्शन करने जा रह...

कैटरीना इन एक्शन

कैटरीना अब अपनी रोमांटिक इमेज को छोड़ एक्शन क्वीन बनने जा रही हैं. पहले सल्लू के साथ 'एक था टाइगर' में और फिर धूम-३ में भी एक्शन करने जा रहीं हैं. वह आजकल थाईलैंड में 'एक था टाइगर' की शूटिंग में व्यस्त हैं, दिन में शूटिंग के बाद वे रात को धूम३ के एक्शन सीन की तैयारियां करती रहती हैं. इस व्यस्त शेड्यूल के चलते उनकी नींद भी पूरी नहीं हो पा रही है. धूम-३ में वे आमिरखान के साथ काम कर रहीं हैं. धूम३ के एक्शन सीन करने के लिए आदित्य चोपड़ा ने  तीन बाडी ट्रेनर नियुक्त किये हैं. देखना है कि रोमांटिक इमेज वाली कैटरीना क्या एक्शन कर पाती है. अभी थोड़ा इन्तजार करना पडेगा. 

मनमोहन कहें अब बख्श दो प्रणव


मनमोहन सिंह अब वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से छुटकारा चाहतें हैं. वे चाहते हैं कि प्रणव बाबू का नाम जल्द ही यूपीए के द्वारा राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाय. आर्थिक मोर्चों पर हर जगह विफल रहने वाले प्रणव मुखर्जी के खिलाफ सीधे कोई कदम उठाना मनमोहन सिंह के लिए संभव नहीं दिखता है. भले ही कांग्रेस अगला चुनाव मनमोहन के नेतृत्व में लड़ने का लाख दावा करें लेकिन २०१४ में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने वाले नहीं हैं, चाहे कांग्रेस की सरकार ही क्यों ना बने. अपने बचे हुए कार्यकाल के लिए मनमोहन सिंह खुद वित्त मंत्रालय की कमान संभालना चाहते हैं और आर्थिक असफलताओं का दंश  झेल रही सरकार की इमेज सुधारना चाह रहें हैं.  वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है. पीएमओ के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अब इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल के अध्यक्ष सी रंगराजन को वित्त मंत्रालय में मुख्य भूमिका देना चाह रहें हैं. ये खुलासा अंग्रेजी समाचार पत्र डीएनए की एक खबर में किया गया है. मनमोहन सिंह अगले दो सालों में कुछ कठिन और बड़े आर्थिक फैसले लेकर पुन: मनमोहनी अर्थशास्त्र की उपादेयता सिद्ध करना चाहते हैं. देखने वाली बात है कि पिछले कुछ समय से पीएमओ और वित्त मंत्रालय के बीच दूरियां बढनें की खबरें आम रहीं हैं क्योंकि एक वित्त मंत्री के रूप में प्रणव हर मोर्चे पर विफल ही रहें हैं लेकिन यूपीए के अंदर प्रणव का कद देख प्रधानमंत्री खुद किसी सार्वजनिक मंच पर उनका विरोध नहीं कर पा रहें हैं. अब वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए वे रंगराजन को अपना जरनल बनाना चाहतें हैं. लेकिन यूपीए के घटक दलों के साथ नितीगत तालमेलों को देखते हुए तो ये संभव नहीं लगता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उठाये गए ठोस क़दमों का समर्थन तृणमूल कांग्रेस या अन्य सहयोगी दल करेंगें.
    (आशुतोष पाण्डेय )





गुरुवार, 31 मई 2012

अन्ना की टीम ने बनाया संसदीय व्यवस्था का मजाक


नाम सिविल सोसायटी, काम लोकतंत्र और संसद का मजाक, कभी संसदीय व्यवस्था को गाली तो कभी देश के  संघीय ढ़ाचे के खिलाफ परिलक्षित मंशा. ये है अन्ना की टीम जो किसी भी गाली का प्रयोग कभी भी कहीं भी कभी  भी कहीं भी कर ले. प्रधानमंत्री को शिखंडी कह कर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का खुला मजाक उड़ाना फिर भी सिविल कहलवाना ये तो अन्ना और टीम का शगल ही लगता है, जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की टीम लड़ रही है, उसके लिए वो जनता के बीच जाने से क्यों गुरेज कर रही है... इस देश में संसदीय व्यवस्था है और संसद ही सर्वोच्च भी है. संसद में चुने जाने वाले वहाँ खुद नहीं पहुंचे हैं इस देश की जनता ने उन्हें वहाँ भेजा है. संसद को और उसके लोकतांत्रिक ढ़ाचे की यूं मजाक बनाना कहाँ तक उचित है... अन्ना जिस देश की जनता को लेकर ये तमाम आंदोलन खड़े कर रही है उसकी क्षमताओं पर विश्वास क्यों नहीं कर रही है. संसद और उसके नुमायांदों का फैसला जनता खुद कर लेगी और इससे पहले कई मौकों पर किया भी है. दरअसल अन्ना और उनके साथी राजनितिक लिप्सा के शिकार हैं और जनता के बीच सीधे जाने से डर कर देश को अस्थिर कर कमोबेश पाकिस्तान के जैसे हालात यहाँ बनाना चाहतें हैं. अगर ऐसा नहीं है तो टीम अन्ना खुद संसद में अपना बहुमत ले और फिर खुद को साबित करे. ये सच है कि सिविल सोसायटी के किसी भी सदस्य की संसद तक पहुँच जायें ये  हिम्मत नहीं दिखती है. खैर अंतिम फैसला तो जनता की अदालत में ही होगा लेकिन... क्या आज संसद की मर्यादा को भंग ना होनें दे ये जिम्मेदारी हमारी नहीं है... इस देश की जनता को सोचना होगा हम आज आदम युग में नहीं जी रहें हैं ये सभ्यता का युग है और यहाँ शुचिता बरकरार रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है. टीम अन्ना के बयानों से आज हमारी संसदीय व्यवस्था जिस पर समूचे विश्व में हम छाती फूला के चलते थे आज लांछित हुयी है. 

बुधवार, 30 मई 2012

इनसाईट स्टोरी: खुदा जाने क्या होगा बहुगुणा का

इनसाईट स्टोरी: खुदा जाने क्या होगा बहुगुणा का: शह और मात के खेल में कब किसका मोहरा पिट जाए कहा नहीं जा सकता है, कमोबेश यही कुछ आजकल उत्तराखंड में चल रहा है. मुख्यमंत्री बहुगुणा के लिए...

खुदा जाने क्या होगा बहुगुणा का

शह और मात के खेल में कब किसका मोहरा पिट जाए कहा नहीं जा सकता है, कमोबेश यही कुछ आजकल उत्तराखंड में चल रहा है. मुख्यमंत्री बहुगुणा के लिए सितारगंज के भाजपा विधायक किरण मंडल से इस्तीफा दिला कर कांग्रेस ने सीट तो खाली करा ली लेकिन साथ ही मौक़ापरस्ती और जोड़-तोड़ की राजनिती को सिरपरस्ती करने का मौक़ा दे दिया. चूंकि किरण मंडल बंगाली समुदाय से आते हैं, जिनका प्रतिशत इस सीट पर २५ से भी ज्यादा है... इसी के चलते भाजपा ने उन्हें टिकट भी दिया था. सरकार ने यहाँ बंगालियों को जमीन पर भूमिधरी हक देने की बात कह कर जनहित में किरण मंडल के इस्तीफे को भुनाने की कोशिश की जरूर है लेकिन      इस सीट को खोने देने के हक में बीजेपी भी नहीं है... और पार्टी हाई कमान खुद इस सीट पर तवज्जो ले रहा है, आगामी तीन जून के मुख्यमंत्री के द्वारा खुद सितारगंज में ही अपने इस सीट से चुनाव लड़ने का खुलासा करने की योजना है. अभी तो शह और मात के इस खेल में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है लेकिन कब किसका कौन सा मोहरा कब और कौन पीट दे ये कहना राजनीती में संभव नहीं दिखता है. भाजपा एक बार फिर इस सीट पर बंगाली उम्मीदवार को उतार कर बहुगुणा की मुसीबतों को कई गुना बढ़ा सकती है और खुद कांग्रेस का एक गुट भी बहुगुणा के खिलाफ लामबंद हो सकता है. यहाँ एक बाहरी व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारने को भी मुद्दा बनाया जा सकता है. ऐसा कर मुख्यमंत्री ना बन पाने की खुर्नस भी निकाली जा सकती है. शायद कांग्रेस का ये गुट बसपा और समाजवादी उम्मीदवार को भी इस सीट पर ना उतरने के लिए तैयार कर सकता है. अगर ऐसा हो गया तो बहुगुणा खुद के बुने जाल में फंस सकतें हैं.
(आशुतोष पाण्डेय) 


मंगलवार, 29 मई 2012

बालिकाएं फिर अव्वल: उत्तराखंड बोर्ड का परीक्षा परिणाम

उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद की हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट परीक्षा में इस बार छात्राओं ने बाजी मारी है। हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम 70.26 % और इंटरमीडिएट का परीक्षा परिणाम 78.49% रहा है। हाईस्कूल में 76.10 प्रतिशत बालिकाओं और 64.97 प्रतिशत बालकों ने सफलता पाई है। जबकि इंटरमीडिएट में 83.44 प्रतिशत बालिका एवं 73.84 बालकों ने सफलता हासिल की है।
इंटरमीडिएट में पूर्णानंद इंटर कालेज जसपुर की इरम सैफी ने 92.40 प्रतिशत हासिल कर राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया है जबकि हाईस्कूल में जीआईसी रामनगर के समीर रियाज 95.80 अंकों के साथ टॉपर रहे हैं। अन्य दो टॉपरों में इंटर में शुभम गुप्ता (विद्या मंदिर बाबूगढ़, विकासनगर, देहरादून) 91.80 प्रतिशत अंक लेकर दूसरे और संजीव कुमार (आरकेएम विद्या मंदिर इंटर कालेज बाजपुर) 90.20 प्रतिशत अंकों के साथ तीसरे स्थान पर रहे हैं। हाईस्कूल में हरगोविंद सुयाल विद्या मंदिर हल्द्वानी की अदिति मंमगाई 94.60 प्रतिशत अंक लेकर दूसरे और विद्या मंदिर मुनस्यारी के सिद्धार्थ कुमार ने 93.80 प्रतिशत अंकों के साथ तीसरा स्थान पाया है। बोर्ड सचिव डॉक्टर डीके मथेला के मुताबिक सभापति के रूप में माध्यमिक शिक्षा निदेशक चंद्र सिंह ग्वाल ने परीक्षाफल घोषित किया। प्रदेश में 12 से 30 मार्च तक 1226 केंद्रों पर हाईस्कूल, इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा हुई थी। इसमें पंजीकृत 3.16 लाख में से करीब आठ हजार परीक्षार्थी अनुपस्थित रहे थे। इन केंद्रों में से 188 केंद्र संवेदनशील थे। मूल्यांकन कार्य 10 से 25 अप्रैल तक हुआ था। एजुकेशन मंत्रा की निदेशक श्रीमती सुषमा पाण्डेय ने सभी छात्र छात्राओं को उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बधाई दी है. उन्होंने कहा उत्तराखंड बोर्ड के विद्यार्थियों के द्वारा भी अब काफी हद तक उच्चतम प्रदर्शन किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के द्वारा 96 फीसदी तक नंबर लाने के कारण अब विद्यार्थियों का रुझान इस और बढ़ेगा.
उत्तराखंड  10 वीं और 12 वीं का रिजल्ट जानने के लिए यहां क्लिक करें।

रविवार, 27 मई 2012

अधिकारी और कर्मचारी ही लगा रहें हैं विभाग का पलीता

इस साल भीषण गर्मी और देशव्यापी बिजली कटौती से जीना दूभर हो रहा है. लेकिन बिजली चोरी भी खुलेआम चल रही है. उत्तराखंड के रुद्रपुर शहर में बिजली चोरी का अपना एक रिकार्ड है. यहाँ विद्युत वितरण की जिम्मेदारी उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन के पास है. जिन्हें जिम्मेदार बनाया गया है वे ही इस चोरी में शामिल हो विभाग को चूना लगा रहें हैं. यहाँ आलम ये है कि बड़ी संख्या में उपभोक्ता किसी ना किसी रूप में चोरी में शामिल हैं. इसमें पोल से सीधे कटिया डालकर, मीटर के साथ छेड़खानी कर, बाईपास करवा या कनेक्शन लेने के तीन सालों बाद भी बिना मीटर के बिजली जला रहें हैं. ये सब व्यापक स्तर पर हो रहा है, एक ही कालोनी में कई घर ऐसे हैं जहां ये सब चल रहा है. अधिकारी और कर्मचारी इस बारे में कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं... जब भी इस बाबत कुछ पूछा जाता है तो सब ठीक किया जा रहा कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। वास्तविकता तो यह है की कर्मचारियों और अधिकारियों मिलीभगत के बिना इतने व्यापक स्तर पर चोरी नहीं की जा सकती है। यदि कहीं किसी व्यक्ति के द्वारा ऐसी शिकायत की भी जाती है तो अधिकारी कहीं कोई कार्रवाई नहीं करते दिखते हैं. इस प्रकार घाटे में चल रहे यूपीसीएल को प्रति माह करोड़ों के राजस्व की हानि हो रही है. अब यूपीसीएल चोरी पकडवाने वाले व्यक्ति या संस्था को प्रोत्साहन राशि देने की बात भी कह रहा है (पढ़िए कार्यालय ज्ञाप, प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड पावर कारर्पोरेशन), लेकिन जब हमाम में सभी नंगे हों तो इस प्रकार की योजनायें महज खानापूर्ति ही कही जा सकती हैं. ये कहानी कमोबेश सारे उत्तराखंड की है. हमारी टीम ने कई उपभोक्ताओं से बात की जो अवैध तरीके से बिजली जला रहे थे. तो उनका जवाब था कि हम बकायदा हर महीने पैसा दे रहें हैं तो फिर चोरी कैसी? जब उनसे पूछा गया कि आप मीटर क्यों नहीं लगवा लेते हैं तो उनका जवाब था हम कई बार कर्मचारियों को पैसा दे चुके हैं वो मीटर लगा ही नहीं रहें हैं. अगर ये सब सच है तो स्थिति काफी दयनीय है और यूपीसीएल को तुरंत कड़े कदम उठाने ही पड़ेंगें. यदि सही तरीके से विद्युत् वितरण किया जाय और चोरी को पूर्ण तया रोक दिया जाय तो निश्चित तौर पर यूपीसीएल को बड़ा राजस्व प्राप्त होगा और बिजली की कमी से जूझ रहे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी.

(इनसाईट स्टोरी टीम)
उधमसिंह नगर

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

Check out बोले निर्मल बाबा की जय « इनसाईट स्टोरी

Check out बोले निर्मल बाबा की जय « इनसाईट स्टोरी

बोले निर्मल बाबा की जय


आज निर्मल बाबा को लेकर हल्ला मचा हुआ है... कल तक बाबा का गुणगान करने वाले चैनल और मीडिया आज उन्हें फ्राड बता रहें हैं और कल तक उनकी भक्ति करने वाले आज पुलिस  स्टेशन में जाकर कार्यवाही की मांग कर रहें हैं. ये पहला मौक़ा नहीं जबकि किसी बाबा के खिलाफ ऐसी शिकायतें मिल रहीं हैं, इससे पहले भी कई बार ऐसा होता रहा है. दरअसल ये भारतीय जनमानस की कमजोरी है कि पहले बिना सोचे समझें किसी को सर आखों पर बिठा लेता है और उतनी ही जल्दी किसी के खिलाफ आंदोलनरत भी हो जाता है. एक नट की तरह कभी काले पर्स को खरीदवाने वाले बाबा या कभी गोलगप्पे या भुट्टा खाने की उल-जलूल सलाह देने वाले बाबा के पास अरबों की संपत्ति कैसे इकठ्ठी हुयी ये शोध का विषय है, जब “इनसाईट स्टोरी” ने बाबा के भक्तों से इस अंध भक्ति का कारण जानना चाहा तो ज्यादातर  लोगों ने बताया कि उन्हें उनके किसी जानने वाले ने बाबा के चमत्कारों के बारे में बताया और फिर टीवी चैनलों पर लगातार निर्मल बाबा के चमत्कारों की चर्चा ने उन्हें उनकी ओर आकृष्ट किया, इनमें से कई तो बाबा के लिए दश्वांश के रूप में हजारों रूपया भी भेज चुके हैं. क्या उनके जीवन में कुछ चमत्कार हुआ? इस पर लोगों की प्रतिक्रिया नकारात्मक ही थी, लेकिन कोई लाभ ना होने पर भी बाबा कि ख्याति कैसे बढ़ती गयी तो इस प्रश्न का उत्तर भी काफी दिलचस्प मिला दरअसल बाबा उनके कुछ एजेंट लगातार लोगों के बीच सन्देश देते रहें कि उनके द्वारा पूजा या दैनिक दिनचर्या में कुछ ना कुछ गडबडी की जा रही है , जैसे समोसे अकेले खाना, मंदिर के गुल्लक में मात्र सौ रूपये डालना. इस प्रकार कई मनगढंत  कहानियाँ सुनाकर लोगों को लूटने का सिलसिला जारी है. इस प्रकार मीडिया और बाबा के पेड एजेंटों के चलते बाबा की दुकान चल निकली है. गूगल पर आज निर्मल बाबा फ्राड के नाम से रोज हजारों सर्च किये जा रहें हैं और इतनी ही तादात में सोशल नेटवर्क साईट पर भी पोस्ट किये जा रहें हैं, फेसबुक पर बाबा के एजेंट भी सक्रिय हो गयें हैं जो बाबा के चमत्कार की कहानियाँ सुना रहें हैं और बाबा को अपना भगवान बता रहें हैं. ताजा खबरों के अनुसार अब बाबा अपने अकाउंट खाली कर चुके हैं. लोग कह रहें हैं कि बाबा  का बुरा वक्त शुरू हो गया है लेकिन बाबा इतना कमा चुके हैं कि उन्हें सारे धंदे बंद हो जाने पर भी कोई असर नहीं पड़ने वाला. यदि कोई नेता या बड़ा अधिकारी धोखाधड़ी करे तो तमाम हल्ला होता है सिविल सोसायटी के सदस्य उसके खिलाफ मोर्चा खोल देतें हैं, लेकिन निर्मल बाबा के खिलाफ अन्ना ने ना तो उनके समागम स्थल पर धरना देने की घोषणा की है ना ही केजरीवाल जैसे सिविल सोसायटी के सदस्य जो संसद की गरिमा को तो तार-तार कर सकतें हैं लेकिन निर्मल बाबा के खिलाफ एक भी शब्द उनके मुंह से ना निकलना क्या इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि आने वाले समय में अन्ना टीम भी निर्मल बाबा के कारनामों की पुनरावृति करे. कई जगह पर अन्ना के नाम पर अधिकारियों और राजनेताओं को ब्लैक मेलिंग का काम भी किया जा रहा है. सिविल सोसायटी के नाम पर कई स्वयंभू अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं. इस देश को लूटने के लिए हर कोई अपनी भूमिका में काम कर रहा है और देश लूट कर भी जय नाद कर रहा है. कहीं निर्मल बाबा की जय तो कहीं सोनिया की पूजा. संसद से लेकर न्यायपालिका और सेना तक सब जगह एक ही चीज कामन है वह है, भ्रष्टाचार. फिर भी भारत चल रहा है, इसीलिए कहा जाता है “मेरा भारत महान”.