सोमवार, 28 जुलाई 2014

सजा सेक्स का बाजार: क्यों ना हों बलात्कार

आज बलात्कार का विषय प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या फिर सोशल मीडिया सबमें सबसे ज्यादा पढ़ा और देखे जाने वाला विषय है. जब भी कहीं बलात्कार की घटना घटती है तो चारों ओर हो-हल्ला मचता है. विशेषकर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो बलात्कार को सबसे ज्यादा टीआरपी का विषय मानता है. बलात्कार क्यों होते है? इस बारे में भी तमाम बातें बनती हैं. कोई इसे ड्रेस तो कोई इसे मोबाइल या फिर चाउमीन से जोड़ कर तक बयान देता है. बलात्कार को लेकर बने कानूनों पर भी काफी चर्चा होती है. निर्भया काण्ड के बाद बने नये कानूनों के बाद ये माना जा रहा था कि बलात्कार की घटनाओं में काफी कमी होगी. लेकिन हुआ इसका उल्टा इस प्रकार के अपराधों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. इसका क्या मतलब निकाला जाय? अभी उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे बलात्कारों के लिए अखिलेश सरकार की काफी आलोचना हो रही है. मुलायम सिंह के बयान बच्चों से गलती हो जाती है या फिर इतने बड़े राज्य में बलात्कार को रोक पाना आसान नहीं है पर भी तमाम आलोचनाएँ होती हैं. इससे पहले दिल्ली में भी बलात्कार की कई घटनाएँ एक के बाद एक लगातार सामने आयी थी. इस पर शीला सरकार और मनमोहन सरकार की काफी किरकिरी भी हुयी थी. 

आकड़ों के उलझाव से दूर हम एक विशेष विशलेष्ण प्रस्तुत कर रहें हैं.

जब हमने बलात्कार के कारणों को ढूढना शुरू किया तो कई नये पहलू सामने आये, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, नैतिक के साथ सेक्स के लिए तैयार बाजार का बड़ा हाथ दिखा. बलात्कार विषय पर जब भी बहस हुयी ज्यादातर संवेदनाओं के दायरे में ही हुयी है. इस विशेष रपट में हम बलात्कार के लिए जिम्मेदार कुछ कमर्शियल बिन्दुओं पर चर्चा करेंगें. आइये पहले सेक्स के लिए तैयार बाजार पर नजर डालें जो अंततः बलात्कार जैसी वीभस्तता पर जाकर खत्म होता है. सेक्स विषय पर आज समाज बहस जरूर करता है लेकिन सेक्स के इस बाजार के बारे में बात करने में उसकी नैतिकता को चोट पहुचती है. आज सरकारी योजनाओं के साथ मीडिया और बाजार खुले सेक्स की ओर समाज को धकेलने का काम कर रही है. सेक्स के लिए जरूरी या बचने के उपायों का खूब प्रचार किया जाता है. एक बड़ा बाजार जिस पर आम आदमी की नजर भी नहीं पड़ती है एक पानवाडी से लेकर बड़े से बड़े माल तक में सजा दिखता है. क्या ये सब भी बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं? इस विषय पर कोई बहस आज तक नहीं दिखी. देश में गर्भ निरोधकों का एक बड़ा बाजार है. जिसमें अनवांटेड 72, आई-पिल्स, कांडोम खुले आम बिकते हैं. इनके कई पन्नों के विज्ञापन रोज समाचार पत्र और पत्रिकाओं में छपते हैं. टीवी में इनके विज्ञापन काफी आम हैं. जिसमें इनसे मिलने वाली चरम अनुभूतियों के साथ लाभ भी गिनाएं जाते हैं. अब बात करते हैं इनके ग्राहकों की, इसमें तमाम वे लोग हैं जिन्हें इनकी आवश्यकता नहीं है. टीनएजर के साथ अविवाहितों का बड़ा वर्ग भी इसका खुल कर प्रयोग कर रहा है. अविवाहित जोड़ें इनका प्रयोग क्यों कर रहें हैं? इन उत्पादों को उन्हें क्यों बेचा जा रहा है. क्या इनके उपयोगकर्ताओं का कृत्य बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है? आज बाजार में सेक्स पावर को बढाने के साथ गर्भधारण करने से बचने के तमाम तरीके मौजूद हैं और आसानी से उपलब्ध भी हैं और इन्हें काफी लुभावने विज्ञापनों के साथ बेचा जा रहा है. किसी भी मीडिया की बात कर लें सब जगह इनकी चर्चे आम हैं. विशेषकर इन्टरनेट और मोबाइल की दस्तक ने इसे आम आदमी से जोड़ने में बड़ी मदद की है. पोर्न साइट्स खुलेआम उपलब्ध हैं जहां पर सेक्स खुला बिक रहा है. एक फोन पर मेल या फीमेल एस्कॉर्ट हाजिर, हर छोटे-बड़े शहर में एक बड़ी कम्युनिटी इससे जुडी है. मल्टीमीडिया फोन पर अश्लील क्लिप और फुल लेंथ फ़िल्में कोई भी कहीं भी डाऊनलोड करवा सकता है. ये फ़िल्में 10 रूपये की सीडी या डीवीडी से लेकर 500 रूपये की सदस्यता लेकर भी डाउनलोड करवाई जा सकती हैं. और देश में ही पिछले साल करीब 500 करोड़ का बिजनेस सिर्फ महानगरों में किया गया है वह भी पूर्णतया अवैध तरीके से. कई साइट्स तो खुल्मखुला सेक्स स्टोरी परोस रही हैं जो एक आम मन को विचलित करने के लिए काफी हैं. तमाम भारतीय भाषाओं में इन साइट्स पर उत्तेजक कहानियां उपलब्ध हैं. अन्तर्वासना डॉट कॉम जैसी तमाम साइट्स इन उत्तेजक कहानियों को भारतीय नामों के साथ जोड़कर प्रकाशित करती हैं. रेड ट्यूब डॉट कॉम जैसी साइट्स बिलकुल फ्री में सेक्स फिल्मों को डाउनलोड करने की सुविधा दे रहीं हैं. ये सब जनता और सरकारों के सामने है. लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता और फेसबुक और ट्विटर पर बलात्कार या महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले एक्टिविस्ट और संस्थान भी कुछ नहीं बोलते. इस वैश्विक बाजार पर ना ही न्यायपालिका को कुछ गलत नजर आता है और ना ही कार्यपालिका को. आम जनता भी बलात्कार और छेड़खानी घटनाओं पर तो भड़कती है लेकिन इन विषयों के साथ काफी खामोश नजर आती है. तो क्या ये मान लिया जाय की सभी की मौन सहमति इस बाजार के साथ है? जी हाँ कुछ ऐसा ही हम बलात्कारियों की सेक्स भावना भड़काने वाले इन कारणों के साथ अपनी सहमति जताकर कर रहे हैं. अभी एक विश्लेष्ण में सामने आया है की देश में वियाग्रा के 66 सबस्टीट्यूट उपलब्ध हैं जिन की कीमत प्रति गोली Sxx (100 Mg) (Roselabs Healthcare Pvt. Ltd.) 5.73 रूपये से लेकर Viagra (100 Mg) 621.85 रूपये (Pfizer) तक है जो बिना डाक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के किसी के लिए भी आसानी से उपलब्ध हैं. कई आनलाइन साइट्स आपको 15% तक छूट के साथ इसकी होम डिलीवरी भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के कर देती हैं.

अब आप बताये जब सारा बाजार तैयार है और सभी को सुलभ भी है तो फिर सेक्स भावनाएं भड़कती हैं और उनकी परिणिति बलात्कार के रूप में होती है तो उसे कौन रोक पायेगा. दिल्ली की सबसे बड़ी एसी मार्केट में सेक्स टॉयज बेचने वाले आपको सीधे ऑफर करते हुए मिलते हैं. किसी को उनसे कोई परेशानी नहीं होती है. इस बाजार के साथ उत्तेजना और वह्शीयत के इस इस सच को स्वीकार करना होगा और इससे निपटना भी होगा तभी रेप और रेपिस्ट को रोका जा सकेगा.



(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

अगर यशवंत सिन्हा खुद मुख्यमंत्री बने तो

रांची 1 जुलाय 2014, झारखंड में विधान सभा चुनाव में अगर भाजपा जीती तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस सवाल के जवाब में भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा अपना आपा खो बैठे. उनका जवाब इतना अशोभनीय था की भाजपा के नेताओं के पास सफाई देने के लिए भी शब्द नहीं बचे हैं. यशवंत सिन्हा रांची स्थित झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स में प्रदेश के बजट पर एक प्रोग्राम को संबोधित कर रहे थे. हाल ही में पूर्व विदेश मंत्री सुर्खियों में थे जब उन्होंने झारखंड में बिजली को लेकर आंदोलन शुरू किया था. इस सिलसिले में वह हजारीबाग में 15 दिनों तक जेल में भी रहे. 
जेल में जब बीजेपी से सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी उनसे मिलने गये थे तो उन्होंने ने कहा था कि यशवंत सिन्हा  झारखंड में नेतृत्व संभालने के लिए बेहद सक्षम नेता हैं. केंद्र की राजनीति से मोदी सरकार से बाहर होने के बाद सिन्हा झारखंड में फिलहाल खुद को सक्रिय रख रहे हैं. सिन्हा के आपत्तिजनक बयान के बाद झारखंड की राजनीति में एक नया बवाल खड़ा हो गया है. राजनीतिक पार्टियों ने तीखी आलोचना की है. बीजेपी के ज्यादातर नेताओं ने इस अशोभनीय कथन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. झारखंड के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा कि इतने सम्मानित और अनुभवी नेता से ऐसी आपत्तिजनक और असंसदीय भाषा की उम्मीद नहीं थी. इससे पहले भी भाजपा के नेता अपनी पार्टी पर ही खीस निकालते रहें हैं. 
यदि कभी सिन्हा खुद मुख्यमंत्री बनते हैं तो क्या खुद को उस अशोभनीय शब्द से ही संबोधित करेंगें? जहां भाजपा के नेता एक ओर आदर्शों का ढोंग खुले आम करते हैं वहीं इन नेताओं की इन भद्दी टिप्पणियों पर चुप्पी साधे बैठे रहते हैं.