गुरुवार, 7 अगस्त 2008

अमेरिकी आपदा एड्स

सारी दुनिया को अपनी मुठ्ठी में रखने का दावा करने वाला अमेरिका आज एड्स की त्रादसी का शिकार है। अमरीकी स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि हर साल एचआईवी से संक्रमित होनेवाले अमरीकी लोगों की संख्या अनुमान से कहीं अधिक है। अमरीकी संस्था सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि 2006 में 56 हज़ार एचआईवी संक्रमण के मामले सामने आए। ये अनुमानों से 40 हज़ार अधिक हैं। हालांकि सीडीसी का कहना है कि संख्या में बढोत्तरी संक्रमण पता लगाने के नए तरीकों की वजह से हुई है न कि संक्रमण के कारण हुई है। हालांकि एड्स से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि ये संख्या खतरनाक है। सीडीसी के रिचर्ड वोलित्सकी का कहना है,'' नए तथ्यों से एचआईवी को लेकर समलैंगिक युवाओं में सावधानी बरतने की ज़रूरत सामने आई है। साथ ही अफ़्रीकी-अमरीकी पुरुषों और महिलाओं को भी जागरूक करने की आवश्यकता है।''
इसके पहले अंतरराष्ट्रीय राहत संस्थाओं रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट ने कहा था कि अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में स्थित कुछ देशों में एड्स महामारी इतनी बढ़ गई है कि इसे अब आपदा की संज्ञा देना उचित होगा। संयुक्त राष्ट्र उस स्थिति को आपदा की संज्ञा देता है जिसका कोई भी समाज अपने आप सामना करने में सक्षम न हो। रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि एड्स महामारी एक आपदा का रूप ले चुकी है क्योंकि इससे हर साल 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है। इसमें कहा गया था कि लगभग 3.3 करोड़ लोग एचआईवी या फिर एड्स से जूझ रहे हैं और लगभग सात हज़ार लोग हर रोज़ इससे संक्रमित हो रहे हैं। आख़िर तमाम जागरूकता कार्यक्रमों और अरबों रूपये खर्च करने के बाद भी एड्स की ये त्रासदी दिन प्रतिदिन आपदा का रूप ले रही है। इस सन्दर्भ में हमारे प्रधान संपादक आशुतोष पाण्डेय ने कई लोगों को विचार जानने चाहे, अधिकांश लोगों का मानना है की इसके लिए आज का स्वच्छंद समाज ही दोषी है। सेक्स एजुकेशन के बजाय लोगों को संयम की शिक्षा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
इनसाईट स्टोरी टीम