शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

छाती पर गोली खा शहीद हों.


अन्ना हजारे अपना अनशन १६ अगस्त से दिल्ली में शुरू करने जा रहें हैं, ये कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं जो में आपको दे रहा हूँ, लेकिन आज में कुछ अहम् सवाल उठा रहा हूँ, इस समय देश में चल रहें वैचारिक दव्न्द पर. १६ अगस्त से जहां अन्ना अनशन करेंगें वहीं १५ अगस्त से स्वामी रामदेव सारे देश के युवाओं को पतंजलि योगपीठ में एक हफ्ते के योग शिविर के लिए बुला रहें हैं और स्वामी अग्निवेश कह रहें है (सी एन बी सी को दिए इंटरव्यू में) प्रधानमंत्री या न्यायपालिका को लोकपाल में शामिल करने के प्रति सिविल सोसायटी का रूख लचीला हो सकता है. अन्ना पहले ही कह चुकें हैं की वे मंच को रामदेव के साथ साझा नहीं करेंगे, और स्वामी अग्निवेश के इस बयान पर भी अन्ना या किसी अन्य कार्यकर्ता का कोई रूख स्पष्ट नहीं हुआ है. अन्ना की मुख्य मांग है वो प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल की परिधि में लेने की ही है. ऐसे में स्वामी अग्निवेश के इस बयान की जरूरत क्या थी? अगर देखना चाहें इस देश को इतिहास के आयने में तो कई बातें सामनें आती हैं, ये देश बिभिषणों और जयचंद की कहानियों से भरा है. ऐसा ही एक बार जब जय प्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में युवाओं का आह्वान किया था, तो ठीक उसी दिन इंदिरा गांधी ने सुपरहिट फिल्म 'बाबी' का प्रसारण दूरदर्शन पर करवा युवाओं को रोकने का प्रयास किया था. आज वही काम रामदेव और अग्निवेश कर रहें हैं. लेकिन समझ में नहीं आ रहा अन्ना ने ये बयान क्यों दिया की वे मंच रामदेव के साथ साँझा नहीं करेंगे? जब रामदेव के अनशन पर केंद्र की प्रतिक्रिया हुयी थी तो अन्ना ने उनका साथ देने का दावा किया था, फिर क्या बिगड़ा की अन्ना और रामदेव एक मंच पर नहीं आयेंगे. जब दोनों की लड़ाई एक ही मुद्दे को लेकर है, तो ये दूरियां क्यों? अगर लोकपाल पास हो जाता है तो रामदेव की मुहिम को धक्का पहुचेगा क्योंकि फिर तो काले धन को लेकर सभी विषय लोकपाल के पास होंगें. रामदेव के पास बचेगा क्या? लेकिन फिर एक बार अन्ना टीम के अग्निवेश के पास आना पडेगा, अग्निवेश ऐसा बयान क्यों दे रहें हैं? अन्ना टीम चुप क्यों है? या चुप क्यों दिख रही है? कल इन सब बातों का इतिहास लिखा जाएगा और इतिहास का एक पहलू सदा काला होता है या दिखता है. अपने आन्दोलन के शुरूआती दिनों से आज तक अन्ना का रूख भी काबिलेगौर होना चाहिए, पहले एक बार तो अन्ना संसद के फैसले को सर्वोपरि मानने की बात कहते थे लेकिन आन्दोलन की धार देख अपना सुर तो बदल दिया लेकिन अग्निवेश के रूप में एक पासा बचा के रखा है लौट के आने का, इसीलिए अग्निवेश के बयान के लिए सन्नाटा है सिविल सोसायटी में? क्या कोई जवाब देगा देश को? या फिर कामेंट्स में वही एक दूसरे की अस्मिता पर कीचड़ उछालने का काम किया जाएगा. ये आन्दोलन अन्ना या रामदेव का नहीं है, ये भारत की संप्रभुता का आन्दोलन है, लेकिन आन्दोलन जज्बातों से नहीं होश से होते हैं, आँखे खुली रखें. १६ अगस्त को देश के इतिहास में एक नयी आजादी का दिन घोषित कर दो, और तब तक संघर्ष जारी रखेंगें जब तक फिजां ना बदले, रास्ते गांधी वाले भी और और काम ना बनें तो दोस्तों छातियाँ कब काम आयेंगी, गुलामी में झुके सर को लेकर जियें इससे तो अच्छा है, छाती पर गोली खा शहीद हों.
आशुतोष पाण्डेय