गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

भारतीय सद्दाम साबित ना हों मोदी

ये कुर्सी भी कितनी अजीब चीज है कि इंसान की नीयत और सिद्धांतों दोनों की ऐसी-तैसी कर देती है. २००२ गुजरात दंगों के बाद मोदी ने जिन आरोपियों को मंत्री तक बनाया था आज वह उन्हीं के लिए फांसी की मांग कर रहें हैं. माया कोडनानी और बजरंगी के साथ अन्य हिन्दू नेताओं को जब २००२ के दंगों के लिए आबद्ध किया गया था तो मोदी ने उन्हें निर्दोष बताया था. जबकि एक आईपीएस संजीव भट्ट ने इन दंगों के लिए मोदी और गुजरात सरकार पर अंगुली उठाई थी तो उनका क्या हस्र हुआ सबको याद होगा. लेकिन आज खुद मोदी सरकार इन दंगों के लिए इन लोगों को दोषी मान इनकी उम्र कैद को फांसी में बदलने की मांग कर रही है. अगर ये लोग और विशेष माया कोडनानी दोषी हैं तो मोदी क्यों नहीं. इससे पहले भी मोदी अपने खिलाफ खड़ें होने वालों को ठिकाने लगा चुके है. मोदी समर्थक चीख-चीख कर मोदी के इस एजेंडे को प्रचारित कर रहे थे कि ये दंगें मुसलमानों ने करवाए हैं और मोदी ने हिन्दूओं को एक सुरक्षित गुजरात दिया है. इन समर्थकों ने मोदी को अगला प्रधानमंत्री तक घोषित कर दिया था. ये समर्थक किसी की सुनने को तैयार नहीं थे. मोदी को शेर कहा जा रहा था.
अब मोदी का असल चेहरा सामने आ चुका है. मोदी के कोई भी दावे सच तो क्या सच के आस-पास भी नहीं हैं इसाई मिशनरीयों के द्वारा खुल कर धर्म-परिवर्तन किये जा रहें हैं. साम्प्रदायिकता का डर दिखा लोगों को गुमराह किया जा रहा है. दिल्ली में महिलाओं को लेकर बड़ी सोच बघारने वाले मोदी के सामने जब महिला आरक्षण का प्रस्ताव एक महिला राज्यपाल द्वारा रखा गया था तब उन्होंने उसे पास करवाने के लिए प्रयास क्यों नहीं किये? बकायदा मोदी ने तो उस पर गौर तक नहीं किया. दरअसल मोदी का एकमात्र एजेंडा है प्रधानमंत्री का पद और उसके मिल जाने के बाद देश में तानाशाह बन राज्य करना जो बोले उसकी हत्या. उनके सभी समर्थकों को माया की तरह फांसी दे दी जायेगी. जो बोलेगा उसकी हत्या कर दी जायेगी. इतना खौफ की सत्ता सुख बार-बार जनता ही देगी जैसे सद्दाम को देती थी. जो सद्दाम ने किया उसी राह पर मोदी भी हैं, बस फर्क इतना है कि वह भारत में हैं? भारत को इराक ना बनने दें. 

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

एक करोड़ बेटियों के कातिल हम भारतवासी

आज सारी दुनिया में जहां महिला अधिकारों और कन्या भ्रूण हत्या पर बहस शुरू हो रही है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं और बच्चियों के प्रति अत्याचार कम नहीं हो रहें हैं। क्या कारण है इस सब का, आखिर कौन जिम्मेदार है इसके लिए. अल्ट्रासाउंड कराने वाले सेंटर या गर्भपात करवाने वाले डाक्टर, अगर सही मायनों में देखें तो एक माँ ही आज कातिल की भूमिका में दिख रही है. बिना माँ की सहमति के शत-प्रतिशत केसों में भ्रूण हत्या नहीं करवाई जा सकती है. आधुनिकता की कसमें खाने वाली आज की माएँ खुद एक कन्या को गर्भ में खत्म करने को तैयार रहती है, समाज में चाहे वह खुद को लड़के और लडकी में कोई अंतर ना करने वाली दिखाने की कितनी भी कोशिश करे लेकिन सच तो ये है कि वह खुद ऐसा नहीं कर पाती है. 
इस देश में जहाँ नारी को नवदुर्गा और ना जाने कितने रूपों में पूजा जाता है लेकिन वास्तव में वही नारी एक बेटी को जन्म नहीं देना चाहती है ऐसा क्यों? क्या वास्तव में नारी खुद ऐसा करती है? यह एक बड़ा सवाल है? आज जब महिलाओं को काफी अधिकार मिलें हैं तब भी कन्या भ्रूण हत्या रूक क्यों नहीं रही है? दरअसल महिलाओं के लिए बने सारे क़ानून और अधिकार ना तो उसकी रक्षा कर पायें हैं और ना ही उसे समाज में समान अधिकार दें पायें हैं. एक महिला जब खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेगी तो कैसे एक कन्या को जन्म देना मंजूर कर पायेगी. आज भी धर्म और समाज एक बेटे के बिना परिवार को अधूरा मानता है. बिना बेटे के वंश कैसे चलेगा? ये एक सवाल हर समय समाज पूछता है, अगर विज्ञान की कसौटी पर इसे कसे तो ये एक बिलकुल ही बेहूदा तथ्य है, जिस तरह से माता-पिता के डीएनए बेटे को मिलते हैं बिल्कुल वैसे ही बेटी को भी तो फिर ये अंतर क्यों? हमारा ये बेहूदा राग अलापना कहाँ तक ठीक है। अगला सवाल ये है कि अब और कितना समय लगेगा हमारी मानसिकता बदलने में? 
आइये बदलें और एक बिटिया को जन्म दें उसे पालें और अपना वंश आगे ले जाएँ क्योंकि चाहे बेटा हो बेटी वह नौ माह तो पलेगा एक नारी के गर्भ में ही.
जो आकड़े उपलब्ध हैं उनके अनुसार पिछले बीस सालों में १ करोड़ लडकियों को भारत देश में पैदा होने से पहले ही मार दिया गया है? ये है मेरा भारत जो नवदुर्गा  की पूजा तो करता है लेकिन.....

(सुलेखा)
लेखिका Institute of Generation Education and Empowerment से जुड़ी हैं।