शुक्रवार, 20 मई 2011

अभी तो काव्य का सोता फूटा ही है: वन्दना गुप्ता

"जो मन में आता है लिख देती हूँ भाषा और शैली के पाश में कविता को बाधना नहीं चाहती, जो देखती हूँ महसूस होता है उसके लिए अनायास ही शब्द बन जातें हैं", ये उदगार हैं .... श्रीमती वन्दना गुप्ता के. वन्दना पिछले कई सालों से कविता और साहित्य की अन्य विधाओं में लिख रही हैं, लेकिन उनके काव्य की मोहकता मन को बरबस आकृष्ट कर लेती है.... भाषा और शैली के पाश में न बधने के कारण ही उनके काव्य में रहस्यवाद की गूढता, भक्तिकाल की शालीनता, श्रृंगार की मोहकता और प्रगतिशील काव्य की प्रगतिवादी रोमांचकता की झलक खुल कर दिखती है, उनके काव्य की विशेषता मानवीय मनोभावों में उनकी गहरी पकड़ है. प्रकृति और मानवीय मनोभावों का सामंजस्य किसी भी समीक्षक के लिए परेशानी पैदा कर देता है.. कई बार लगता है की वन्दना सूफी विचारधार से प्रेरित लगती हैं तो कई बार खुल कर वर्तमान उपादान का दोहन करती भी प्रतीत होती हैं . लिखने के लिए उन्होंने सोशियल नेटवर्किंग का सहारा लिया, काफी नाम भी कमाया है, आज हिंदी में लगातार ब्लोगिंग करती हैं, एक ही ब्लाग में उनकी २५० से ज्यादा कवितायें हैं, दिन दुनिया और साहित्यिक सरोकारों से बेखबर लगने वाली वन्दना दिल्ली के आदर्श नगर में रहती हैं, पेशा गृहणी, शौक लेखन, शिक्षा स्नातक बस इतना सा परिचय है, काव्य की इस चितेरी का. ये पूछने पर की उनकी रचनाएं किससे प्रभावित हैं' एक सपाट सा जवाब आता है जो दिल में आया लिख दिया, सोचती नहीं हूँ, क्या लिखना है? शायद यही कारण है उनकी रोज एक दो नयी कविता पढने को मिलती हैं. अगर उनकी सारी कविताओं को एक साथ रख दिया जाय तो एक महाकाव्य तैयार हो जाए लेकिन अभी तक साहित्य की कसौटी पर कविताओं की समीक्षा ना हो पाने के कारण ही उपेक्षित हैं. कविता के वर्त्तमान उपादानों पर कविता की व्याख्या करें तो उन्मुक्त भाषा का प्रयोग उनकी कविताओं आम आदमी की पसंद बनाता है, लेकिन जो कवितायेँ रहस्यवाद के पुट में हैं उनका सौंदर्य तो देखने के लायक है, हाँ हो सकता है की आम पाठक को वो समझ ना आयें या फिर वह उसे कसौटी पर कस न पाए. कुछ कवितायेँ जरूर निरन्तरता के अभाव में रची प्रतीत होती हैं लेकिन मनोभावों के चित्रण में लेखन की निरंतरता अक्सर बाधित हो ही जाती है. मनुष्य जीवन के लगभग सभी पहलूँ पर कवितायें लिख चुकी वन्दना मानती हैं की अभी तो काव्य का सोता फूटा ही है बस. प्रकाशन के सवाल पर मुस्कराते हुए जवाब देती हैं, "कोई छाप देता है तो ठीक है, मेरा काम है लिखना शेष मेरा कान्हा जाने". कृष्ण भक्तिधारा की कुछ कविताओं में वन्दना मीरा बन जाती हैं. बस बिंदास वन्दना लिखती जाएँ तो अच्छा लगता है.

(ये आलेख हमारी वन्दना जी से हुयी बातचीत और उनकी कविताओं की समीक्षा पर आधारित है. जल्द ही ही हम मूल साक्षात्कार को प्रकाशित करेंगें .)
आलेख: आशुतोष पाण्डेय

भारत फिर से विदेशी उपनिवेश न बन जाए

फिरोज अब्दुल रशीद खान
पी. चिदम्बरम
यूपीए सरकार का बुरा वक्त ख़त्म होता नजर नहीं आ रहा है... एक -आध राज्यों राज्यों में विधान सभा चुनावों के नतीजों पर इतरा रही सरकार आज फिर सी बी आई और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय के आला अधिकारियों की कारगुजारियों से शर्मसार हो गई है, पाकिस्तान को भेजे ५० मोस्ट वांटेड की सूची का एक आतंकी तो मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद है, १९९३ में मुंबई बम काण्ड में संलिपत्ता के चलते फिरोज अब्दुल रशीद खान उर्फ़ 'हमजा' के खिलाफ १९९४ में इंटरपोल के द्वारा रेड कार्नर नोटिस जारी किया गया था. उसके बाद पिछले साल २०१० फरवरी में इसे नवी मुंबई से सी बी आई द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और तभी से ये आर्थर रोड जेल में बंद है, लेकिन एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद ही सीबीआई के द्वारा अभी तक रेड कार्नर नोटिस वापस नहीं लिया गया. अब हद तो तब हो गई जब इस आतंकी का नाम ५० मोस्ट वांटेड की सूची में पाकिस्तान को भेज दिया गया, किसने ये सूची तैयार की? उसकी जाँच क्यों नहीं की गयी? गृहमंत्रालय ने भी इसे भेजने से पहले जांच करना जरूरी क्यों नहीं समझा? अब एक सीबीआई इन्स्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया है और एक डी एस पी का ट्रांसफर कर दिया गया, अब गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने सीबीआई और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय के आला अधिकारियों को झाड़ लगाईं है, लेकिन इतने बड़े मुद्दे पर चिदम्बरम साहब की पूर्व अनभिज्ञता समझ से परे है, इससे पहले भी एक आतंकी बजुहल खान को को लेकर सीबीआई की लापरवाही सामने आयी थी जिसे पाकिस्तान में कहा जा रहा था वह मुंबई थाणे में था. अब तमाम प्रकार की सफाई मंत्रालय के द्वारा और सीबीआई के द्वारा डी जायेगी, लेकिन इस देश में आज कोई भी सुरक्षित नहीं है, जब हमारी सुरक्षा एजेंसियों को जेल में बंद अपराधियों की जानकारी नहीं है तो खुले घूम रहे आतंकवादियों की जानकारियाँ क्या ख़ाक होंगी? आज जब हम इस देश के हालात देखें तो सच सामने आ जाता है, पहले घोटाले दर घोटाले अब सुरक्षा एजेंसियों की ये लापरवाही, कहीं इस देश को बेचने की साजिश तो नहीं चल रही है, इस देश के आंतरिक हालात इतने खराब कर दियें जाएँ की अमेरिका जैसे किसी देश को हस्तक्षेप करना पड़े और भारत फिर से विदेशी उपनिवेश न बन जाए. 
 आलेख: आशुतोष पाण्डेय

नेत्र दान, महादान

नेत्र दान महादान, आपकी एक प्रतिज्ञा दो लोगों की जिन्दगी में रंग भर सकता है। आपकी नेत्रदान की इच्छा दुनिया को एक नई राह दिखायेगी। आइये मिलकर एक शपथ लें दो लोगों की जिन्दगी में रंग भरने की। इनसाईट स्टोरी नेत्रदान को एक अभियान के रूप में चलाना चाहता है। हमारी सारी टीम के सदस्य एक साथ नेत्रदान की घोषणा कर रहें हैं अन्धता-निवारण के लिए कार्य कर रहे कई संगठनों  और इनसाईट स्टोरी टीम की जागरूकता के साथ आप भी किन्ही दो लोगों को रोशनी प्रदान करने की शपथ लें। इस संदर्भ में आपकी सहायता के लिए इनसाईट स्टोरी टीम हर समय तैयार हैं। आप अधिक जानकारी के लिए इमेल के जरिये जानकारी ले सकतें हैं।
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