शनिवार, 6 अगस्त 2016

गौ रक्षक गुमराह करते हैं: मोदी


(वक्त के साथ बदलते सुर) 
आज लोगों से सीधी बात के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौ रक्षा के नाम पर चल रही तथाकथित दुकानों को बंद करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कुछ लोग अपनी बुराइयों को छिपाने के लिए गौ रक्षा के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहें हैं. पीएम मोदी ने टाउनहॉल कार्यक्रम में कहा कि असामाजिक कामों में लिप्त रहने वाले ऐसे लोग गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं. राज्य सरकारें ऐसे लोगों का डॉजियर तैयार करें. प्रधानमंत्री ने कहा कि अधिकतर गायें कत्ल नहीं की जातीं, बल्कि पॉलीथिन खाने से मरती हैं. अगर ऐसे समाजसेवक प्लास्टिक फेंकना बंद करा दें, तो गायों की बड़ी रक्षा होगी. उन्होंने कहा उन्हें ऐसे लोगों पर काफी गुस्सा आता है. मोदी का ये वक्तव्य ऐसे वक्त आया है जब देश में गौ रक्षा के नाम पर कई दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ मारपीट और उत्पीडन की खबरें आम हैं. अभी गुजरात के उना में भी कुछ गौ रक्षकों के द्वारा दलित उत्पीडन का मामला सामने आया था. यहाँ गौरतलब बात ये है कि अधिकांश गौ भक्त खुद को भाजपा से जुड़ा बताते हैं. हालिया दयाशंकर का मायावती को अपमानित करने के मामले में भी भाजपा की हालत खराब हो चुकी है, इन घटनाओं के चलते दलित वोट भाजपा से दूर होता दिखने लगा है, पार्टी के अन्दर भी बगावत के सुर सुने जाने लगे हैं. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां दलित और अल्पसंख्यक दोनों ही निर्णायक भूमिका में हैं, भाजपा को अपनी छवि को सुधारने के लिए कुछ ठोस कदमों की दरकरार थी. मोदी के इस बयान से उनकी पार्टी के कुछ गर्म दल के नेता सकते में हैं. हो सकता है कि मोदी को इसके लिए कुछ कट्टरवादी नेताओं से पार्टी के अन्दर भी निपटना पड़ सकता है. 

गुजरात की कहानी में भाजपा का लोकतंत्र

भाजपा सिर्फ चंद लोगों के हाथों में खेल रही है, इसके सबसे बड़े खिलाड़ी अमित शाह ही साबित हो रहें हैं. कल गुजरात में विजय रूपानी को जिस तरह मुख्यमंत्री बनाने में अमित शाह की भूमिका रही उससे ये साफ़ हो गया है कि पार्टी में खुली राजशाही है. नितिन पटेल को अंतिम क्षणों में उपमुख्यमंत्री का झुनझुना थमा दिया गया. सच कहें तो मोदी और शाह की टीम अपनी जिद के आगे किसी को ना टिकने देने के सिद्धांत पर काम कर रही है. लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या इस सब का कोई फायदा भाजपा को मिलना है, अगले साल होने वाले चुनावों में भाजपा को गुजरात सहित कई राज्यों में अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा. कुछ चुनावी सफलताओं ने मोदी और शाह को अति अभिमानी बना दिया है, बिहार चुनाव में मोदी ने जिस तरह बिहार के डीएनए को ललकारा था उसके चलते बिहार में भाजपा की लोटिया डूब गयी, उत्तराखंड और अरूणांचल में चंद भाजपाइयों की अतिशयता ने पार्टी को बदनाम कर डाला है. गुजरात में रूपानी को अम्बानी और अदानी के साथ जोड़ कर सोशल मीडिया में खासी चुटकियाँ ली जा रही हैं. सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों की धार काफी कुंद हुयी है, दरअसल महंगाई, आंतकवाद, कश्मीर और दलित उत्पीडन के मुद्दे पर सवालों पर घिरे समर्थक कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं. यही सोशल मीडिया मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक लाने की मुख्य कड़ी था. दिल्ली में राज्य सरकार को परेशान करना भी लोगों को नहीं सुहा रहा है, लोग इसे केंद्र की गुंडागर्दी करार दे रहें हैं, इसका सीधा फायदा "आप" पंजाब में उठायेगी ये तय है.