शनिवार, 21 दिसंबर 2013

क्या मैं सरकार बना लूं?


क्या जनता आप को सरकार बनाने के लिए बहुमत दे चुकी है या फिर जनता की मंशा विपक्ष को मजबूत कर सरकारों को सबक सिखाना था. आम आदमी पार्टी के नेता इसी मुद्दे पर काफी उपापोह में दिख रहें. एक ओर 28 सीट का मिलना और भाजपा को बहुमत से वंचित कर लेना उनकी उपलब्धि ही मानी जा सकती है. लेकिन भाजपा का भी आप को विपक्ष में बिठा सरकार ना बनाने का निर्णय नये राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है. केजरीवाल इस समय एक गहन धर्मसंकट में दिख रहें हैं, जहां कुछ उगलना और निगलना उनके बस में नहीं दिख पा रहा है, खुद केजरीवाल सरकार बनाने के मुद्दे पर नकारात्मक राय रखते हैं लेकिन अन्य करीब 21 विधायक सरकार बनाने के पक्ष में वे हाथ आये इस मौके को गवानें के पक्ष में नहीं दिखते हैं. जहां तक जनमत संग्रह की बात है ये भारतीय इतिहास में पहली बार हो रहा है की सरकार बनाने का मौक़ा मिलने के बाद भी कोई जनमत संग्रह करने की कोशिश कर रहा है. इसे एक मजबूत लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरूआत माने या कोई मजबूरी इस बार जनता जनार्दन की भूमिका में दिख रही है. दिल्ली के हर वर्ग के लोग खुल कर अपनी राय दे रहें हैं इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो दिल्ली में वोटर भी नहीं हैं, ऐसे 65 लोगों से हमने बातचीत की जो देश के अलग-अलग हिस्सों से दिल्ली में पर्यटक बन कर आयें हैं उनमें से 47 ऐसे हैं जो दिल्ली में केजरीवाल और टीम को देखना चाहते हैं. केवल 12 लोग थे जो इस स्थिति में सरकार बनाने की कोशिश को आप के लिए खतरनाक मान रहें हैं. शेष 6 लोग खुद केजरीवाल की तरह असमंजस में दिखे. इसके अलावा फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर भी लोग केजरीवाल का सरकार बनाने के लिए आह्वान कर रहें हैं. ऐसा क्या है जिसे लोग बदलना चाहते हैं, पिछले अनुभवों के अनुसार सरकार और उसके नुमायांदों को ख़ास मानने वाले लोग इस बार खुद को सत्ता में प्रतिभागी के रूप में देख रहें हैं. देखना है की क्या आम आदमी का ये सपना पूरा होगा? इसके लिए अभी इन्तजार करना होगा. देखना है सोमवार को केजरीवाल क्या रूख अख्तियार करते हैं? उनका ये रूख ही उनका और दिल्ली का भविष्य तय करेगा.