मंगलवार, 2 अगस्त 2011

भ्रष्ट हम भी हैं

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देश में काले धन को लेकर काफी बड़ा आन्दोलन करने वाले रामदेव का सब कुछ काला ही काला नजर आ रहा है, इस देश में अपने योग शिविरों के जरिये कालेधन की वापसी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रामदेव और उनके साथियों की पोल खुलनी शुरू हो गयी है, बालकृष्ण के फर्जी हथियारों के लाइसेंस, फर्जी डिग्री, फर्जी पासपोर्ट, और तमाम फर्जी जानकारियों के चलते इस बात पर रामदेव की मंशा पर सवाल उठने लगें हैं की क्या रामदेव वास्तव में शुचिता लाना चाहते हैं? या फिर अन्य नेताओं की तरह झूठ बोल जनता को बहला रहें हैं. अभी तक रामदेव और उनके समर्थक इस बात का दावा करते नहीं थकते थे कि बालकृष्ण अपना सब छोड़ कई सालों से पतंजलि योगपीठ की सेवा कर रहें हैं, यहीं बातें खुद रामदेव और बालकृष्ण भी कई बार मंचों से कह चुके हैं. समझ में नहीं आता की उन्होंने या उनके जानने वालों ने इन बातों पर पर्दा क्यों डाल के रखा है? बाल कृष्ण का एक कार्पोरेट साम्राज्य है जिसका टर्न ओवर हजारों करोड़ का है. जिसकी जानकारी जनता को भी सी बी आई की जांच के बाद ही मिलनी आरम्भ हुईं हैं. अब तो उनके परिवार के अन्य लोगों की जानकारियाँ भी मिल रहीं हैं जो इस गड़बड़ झाले में शामिल हैं. मेरठ में उनके भाई ब्रह्मदत्त अपनी पत्नी के साथ पतंजलि योग पीठ का काम देखते हैं. लेकिन सी बी आई के शिकंजे को कसने के बाद भाग खड़े हुए हैं. जब भी कोई इस बाबत बोलता है या लिखता है तो रामदेव के चेलों की एक जमात उसके पीछे पड़ जाती है और कहा जाने लगता है की दिग्गी राजा ये कहते है, सोनिया ये कहती है, सारी सरकार चोर है.... वाह भाई वाह!
कितना शमर्नाक है एक संत का कृत्य,राजनीति तो विद्रूप है ही, जब एक संत ही योग, धर्म और शुचिता की आड़ में ये करे तो राजनेता तो क्या कहने? यह घृणित है. इसका विरोध हो बिलकुल वैसे ही जैसे सरकार की चोरी का. अब इस सवाल का जवाब भी यहाँ आ जाय, ये लाजिमी है क्या किसी को इस बात के लिए बख्श दें कि उसका ये पहला अपराध है या वह संत है? या इससे पहले भी कई लोगों ने ऐसा किया उन्हें सजा नहीं हुयी? यदि अपराध सिद्ध होने पर ए. राजा, कलमाडी या कनिमोझी को जेल हो सकती है तो बालकृष्ण को कैसे बख्श दें, और क्यों? यही व्यक्ति अगर कल देश का प्रधानमंत्री बन गया तो क्या हाल करेगा देश के, जो अपने एक आश्रम को चलाने के लिए इतने घोटाले कर सकता है तो देश की सत्ता मिलने पर क्या करेगा? भ्रष्टाचार चाहे संत का हो या नेता का सजा और विरोध समान हो. हमारा यही दोगला रवैया देश में भ्रष्टाचार को पनपने में मददगार रहा है, हम सदा छोटे और बड़े भ्रष्टाचारी का भेद कर छोटे को छोड़ देतें हैं, और यही छोटा एक दिन बड़ा बन जाता है,  भारत की राजनिती में बाहुबलियों का प्रवेश इसका उदाहरण है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े और जनस्फूर्त आन्दोलन की जरूरत है जिसमें हर भ्रष्टाचारी को बराबर का खौफ हो. ऐसा कब होगा पता नहीं. अभी इस देश में कई आन्दोलन चल रहें हैं और इनके संचालक इस बात का दावा कर रहें हैं कि उनके साथ सारा देश खड़ा है और इसके लिए हवाला दे रहें है किन्ही जनमत सर्वेक्षणों का, क्या कहने आप के चंद मेट्रो शहरों में चंद लोगों से चंद सवाल पूछ कर इसे देश की आवाज कह रहे हैं? कभी पूछा उस किसान से जो रोज रोता है उससे पूछिए ना की प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लायें या नहीं? उसका जो जवाब हो उसे सीधा टेलीकास्ट कीजिएगा. फिर देखिएगा की भ्रष्टाचार कहाँ से खत्म करना है. 
एक नेता पांच साल में कितने करोड़ का घोटाला करता है इसकी खबर तो है आपको, लेकिन किसी ने जानने की कोशिश की चुनावों में वोटर वोट की क्या कीमत वसूलता है, कितनी शराब पीता है? तब कहाँ जातें हैं इस देश के बुद्धिजीवी, कितने करोड़पति बी पी एल कार्ड बना बैठें हैं, बाबुओं को लाइन से हटकर काम करने के लिए रिश्वत का लालच कौन देता है? बिना हेलमेट गाडी चलाने पर पकड़ने जाने पर चालान कटवानें की जगह रिश्वत कौन दे रहा है? एक बार सब मिलकर कसम खा लें की कम से कम हम अब कोई भ्रष्ट आचरण नहीं करेंगें तो देखिये फिर क्या होता है? हमारे भ्रष्ट आचरण को लोकपाल की परिधि में लाओ इसकी मांग करो? फिर देखिये क्या होता है? जितना समय हम इस बहस में जाया करें की कौन लोकपाल में हो कौन ना हो उससे तो अच्छा है कि हम खुद भ्रष्ट आचरण छोड़ दें.
(आशुतोष पाण्डेय)