गुरुवार, 4 अगस्त 2011

खतरा चीन से: हैकिंग

अमेरिका द्वारा जारी एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूरी दुनिया में भारत सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका की रक्षा कंपनियों के नेटवर्क अब तक साइबर हमलों का सर्वाधिक शिकार हुए हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन ही इनमें से अधिकतर के लिए जिम्मेदार है. इसके अलावा भी हैकिंग के मामलों में अक्सर चीनी हैकरों का हाथ होने की बात सामने आती रहती है. "वाशिंगटन पोस्ट" ने एंटी वायरस सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी मैकेफी की रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच साल की अवधि में इन हमलों में मुख्य रूप से शिकार बनी 72 संस्थानों की जानकारी जुटाई गई है। इनमें भारत सरकार, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संघ आसियान और आईओसी भी शामिल हैं. जिन संस्थानों और कंपनियों के नेटवर्क में सेंध लगाई गई है, उनमें जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ का सचिवालय, अमेरिका के ऊर्जा विभाग की प्रयोगशाला और नए हथियार तैयार करने में लगीं 12 प्रमुख अमेरिकी कंपनियां हैं. रिपोर्ट में कंपनियों के नाम नहीं बताए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर हमलों के पीछे किसी एक देश के हैकर जिम्मेदार हो सकते हैं. हालांकि इसमें किसी देश का नाम नहीं लिया गया है. लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार सबूत चीन की तरफ इशारा करते हैं. मैकेफी के उपाध्यक्ष दमित्री एल्परोवित्च ने 14 पेज की इस रिपोर्ट में कहा है कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि साइबर हमलों से जुटाई गई जानकारियों का हैकरों ने क्या किया? इसके गलत हाथों में पड़ने से बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार साइबर हमला करने वाले सैन्य व्यवस्था और सैटेलाइट संचार जैसी संवेदनशील हासिल करना चाहते थे। साइबर हमलों में सैन्य ठेकेदारों, इलेक्ट्रॉनिक फर्मों और वित्तीय संस्थानों को भी निशाना बनाया गया. उल्लेखनीय है कि  इससे पहले भी कई साइबर हमलों के बाद अमेरिका ने चीन की ओर इशारा कर चुका है.  अमेरिका ने साइबर हमलों को रोकने के लिए कुछ काफी कड़े कदम उठाए हैं, फिर भी वह अब तक इन्हें रोकने में नाकाम रहा है. 
(आशुतोष पाण्डेय)

मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ


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मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ, ये सुनने में कम ही आता है, अभागा होने का रोना रोने वाले तो करोड़ों में मिल जायेंगे लेकिन अपने भाग्य को सराहने वाला शायद ही कोई मिले. हर छोटी से छोटी बात पर भी भाग्य को कोसना, ये तो हमारी किस्मत ही खराब थी, ये सब हमारे साथ ही होना था. धिक्कार हैं! वो लोग जो भाग्य को कोस रहे हैं. हम क्या हैं? हमारा वजूद हमारा भाग्य नहीं कर्म निश्चित करते हैं. भाग्य ही एक ऐसी चीज है जिसे इंसान खुद जैसा चाहे गढ़ ले. दुनिया मैं किसी भी सफल इंसान को लो क्या वो परेशानियों से मुक्त था? जितनी बड़ी परेशानी उतना बड़ा सौभाग्य. अगर हर इंसान सिर्फ भाग्य को ही कोसता तो जानते हैं क्या होता, अभी तक हम असभ्य ही रहे होते. दुनिया भाग्य से नहीं हाथों और इन्द्रियों के मेल से चलती है. दुर्भाग्य क्या है कोई बताये मुझे?
सौभाग्य मैं जानती हूँ. "मैं सौभाग्यशाली हूँ" की इंसान के रूप में इस धरा पर आयी हूँ, मेरे पास करियत्री प्रतिभा है; ईश्वर ने मुझे अपने अंश से सर्वश्रेष्ठ भाग दिया है. शुक्रगुजार हूँ इस चमकते सूरज के लिए, मीठी चाँदनी के लिए और उसके द्वारा दी गयी उन चंद परेशानियों के लिए जिनसे वो मेरे वजूद को परखना चाह रहा है. असल मैं जन्म के बाद एक ही चीज है जिसके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए वो हैं हमें दी गयी जिम्मेदारियां जिन्हें हम दुःख या फिर दुर्भाग्य कह देतें हैं. हम क्यों भागते हैं परेशानियों से? इन्हें हल कीजिये, ये हल हो सकती हैं, आज नहीं कल इनका हल निकलेगा. आप इन्हें किसी के भरोसे ना छोड़े कम से कम भाग्य के तो कतई नहीं. क्योंकि भाग्य हमारी नकारात्मक सोच का एक ऐसा काल्पनिक बुलबुला है जिसका कोई अपना अस्तित्व होता ही नहीं है. क्यों अब भी कोई संकोच बाकी है ये कहने में कि "मैं दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान हूँ". मैं कौन हूँ जो ये कहूं की अपनी सोच बदलो. आप अपने दुर्भाग्य के साथ जितना जीना चाहें जी लें. लेकिन ये बंदी तो कभी दस्तक ही नहीं देगी दुर्भाग्य के दरवाजे. चलिए हम तो चले नई दस्तक के साथ.'मेरी दस्तक' मैं फिर आप से मिलेंगे "मैं क्यों मरूं चिंता की मौत" के साथ. अब आप लोग पढ़ सकते हैं, मेरे सारे आलेख ज्ञानपुंज पर भी. यहाँ क्लिक कर पहुँचिये खुशी के संसार में.   

(सुषमा पाण्डेय)

रुद्रपुर का रूख जरा संभल कर

आपका शहर स्तम्भ में हमें पहली खबर मिली है शहर रुद्रपुर से पढ़िए ये कहानी
रुद्रपुर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित एक शहर है जहां पिछले कुछ वर्षों में तेजी से औद्योगिक विकास हुआ है और इसी के साथ यहाँ लोगों की मुसीबतों का विकास भी हुआ है. सड़कों पर घंटों लगने वाला जाम इनमें से एक है, क्यों लगता है ये जाम? हाल ही में अमीर हुए यहाँ के लोग कारों, बाईकों का एक बाजार घरों में खड़ा कर चुके हैं और यातायात के नियमों को पालन करना यहाँ गुनाह माना जाता है, जिस की मन जहां से आये चल पड़े, दायें या बाएं इसका फर्क ही नहीं पड़ता है, कोई कुछ कहे तो मार पिटाई पर उतर आयें. प्रशासन नाम की कोई चीज उत्तराखंड में है ही नहीं तो यहाँ कहाँ से आ जायेगी. सड़कों के हाल देखें तो आप कहेंगे तौबा इसलिए कभी रुद्रपुर (उधम सिंह नगर) का रूख करें तो संभल कर रहिएगा. 
(रवि कुमार रुद्रपुर)