मंगलवार, 9 सितंबर 2008

कैसे बना था ब्रह्माण्ड

कैसे बना था ब्रह्माण्ड? क्या हुआ था सुदूर अंतरिक्ष में लाखों साल पूर्व हुए उस जबरदस्त धमाके 'बिग बैंग' के बाद? ऐसे तमाम प्रश्नों का हल वैज्ञानिक अब तक के सबसे बड़े परीक्षण में खोजने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग से पृथ्वी के विनाश की तमाम अटकलों को सिरे से खारिज किया है।
अपने आप में अनोखे इस प्रयोग को स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर 85 देशों के करीब 2500 वैज्ञानिक अंजाम देंगे। इसमें जमीन के 80 मीटर अंदर 27 किलोमीटर लंबे एक सुरंग में 'लार्ज हेड्रोन कोलाइडर' [एलएचसी] मशीन के जरिए ठीक वैसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी जैसी 'बिग बैंग' के एक नैनो सेकेंड बाद हुई थीं। एलएचसी को जिनेवा स्थित यूरोपियन सेंटर फार न्यूक्लियर रिसर्च [सीईआरएन] ने तैयार किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्तिके रहस्यों पर से पर्दा उठ सकेगा। इस पूरी परियोजना पर कुल 9.2 अरब डालर [4.1 खरब रुपये] का खर्च आने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस प्रयोग से वे ब्रह्मांड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 'डार्क मैटर' व 'हिग्स बोसोन' संबंधित जानकारियां जुटा सकेंगे। 1964 में स्काटलैंड के वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने इन कणों की खोज की थी। इन कणों से बने पदार्थ ने ही ब्रह्मांड के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। कुछ लोगों का कहना है कि इस परीक्षण से धरती ब्लैक होल में समा सकती है। हालांकि इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों ने इन आशंकाओं को निराधार बताया है। उनका कहना है कि इस प्रयोग से बनने वाले ब्लैक होल्स से किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा। अभियान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी के मुताबिक एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है। यदि ऐसा कुछ होता तो वैज्ञानिक इस प्रयोग का जोखिम नहीं उठाते। ब्रह्मांड की उत्पत्तिलगभग 14 अरब वर्ष पहले हुई जिसमें धरती की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी घटनाएं हुई लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।
एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे के अनुसार ब्रह्मांड में उच्च ऊर्जा वाले प्रोटान आपस में टकराते हैं जबकि परीक्षण में उनकी तुलना में काफी कम ऊर्जा वाले प्रोटानों की टक्कर कराई जाएगी। प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना है कि ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला पदार्थ कैसे अस्तित्व में आया।
स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर होने जा रहे अभूतपूर्व परीक्षण पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। इस अभियान से भारत के भी तीस वैज्ञानिक जुड़े हैं। भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर जब यह परीक्षण होगा राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दंपति सुधीर और रश्मि रनिवाल की निगाहें भी उस पर लगी होंगी। दोनों ही इस अभियान में शामिल हैं। सुधीर ने बताया कि हमने लार्ज हेड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] के अंदर लगने वाली प्रोटोन मल्टीपलसिटी डिटेक्टर [पीएमडी] नामक युक्ति डिजाइन की है। यह प्रोटोंस को त्वरित करने का काम करेगी। सुधीर ने कहा कि इस परीक्षण से क्वार्क-ग्लूआन प्लाज्मा [डार्क मैटर] को पैदा करने का प्रयास किया जाएगा जो ब्रह्मांड की उत्पत्तिके समय मौजूद था।
परीक्षण से जुड़े एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी इससे धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं मानते। इस अभियान में भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे भी शामिल हैं।

आशुतोष पाण्डेय
संपादक