गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

मोटापा एक बड़ी चुनौती


ब्रिटेन के एक वरिष्ठ डाइटिशियन का कहना है कि लोगों में मोटापे की समस्या जलवायु परिवर्तन की समस्या से कम गंभीर नहीं है। उन्होंने इसके समाधान के लिए तत्परता से क़दम उठाने और दुनिया भर के नेताओं से समान कार्यनीति पर सहमति क़ायम करने की अपील की है। अंतरराष्ट्रीय मोटापा कार्यबल के अध्यक्ष और लंदन में 'स्कूल ऑफ़ हाईजीन एडं ट्रॉपिकल' के प्रोफ़ेसर फ़िलिप जेम्स ने कहा कि मोटापा एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि विकल्पों की परवाह किए बग़ैर इससे निपटने के लिए शीघ्र तैयारी की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि इस पर काबू पाने के लिए सभी को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मुहैया कराना ज़रूरी है और वो चाहते हैं कि दुनिया भर के नेता इस बारे में एक वैश्विक समझौते पर सहमत हों. बोस्टन में अमरीकी एसोसिएशन फ़ॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जेम्स ने कहा, "यह एक सामुदायिक महामारी है।" उन्होंने कहा, "औद्योगिक और व्यापारिक विकास की वजह से आए परिवर्तनों के कारण शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम हुई. अब बड़े उद्योग अपने फ़ायदे के उद्देश्य से खाद्य और पेय पदार्थों के ज़रिए बच्चों को निशाना बना रहे हैं."
उन्होंने कहा," इसे बदलना होगा और ये तब तक संभव नहीं होगा जब तक सरकार की ओर से कोई सुसंगत कार्यनीति नहीं होगी. सवाल है कि क्या हमारे पास इस मसले पर राजनीतिक इच्छाशक्ति है?"
प्रोफ़ेसर जेम्स ने कहा कि खाद्य पदार्थों की लेबलिंग इस तरह की होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता उसमें मौजूद वसा, चीनी और लवण तत्वों का फ़ौरन अनुमान लगा सके. उनके मुताबिक विश्व के 10 प्रतिशत बच्चे या तो मोटापे की बीमारी से ग्रस्त हैं या ज़्यादा वज़न के हैं और इस संख्या के लगभग दोगुने बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. उन्होने कहा "बड़ी संख्या में किए गए विश्लेषण दिखाते हैं कि हम बच्चों के पोषण और उचित रख-रखाव पर पूरा ध्यान नहीं दे रहे है."
नए आँकड़ों के अनुसार सात से 12 साल के ज़्यादा भार वाले बच्चे ह्रदय रोगों और ऐसी ही अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं और उनकी असमय मौत हो जाती है. बोस्टन में संपन्न एएए की बैठक में एक अन्य विशेषज्ञ प्रोफ़ैसर रेना विंग ने इस विषय में किए गए एक शोध परिणाम को पेश किया.
मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े बदलाव की ज़रूरत है
उन्होंने कहा कि मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है। उन्होंने क़रीब पाँच हज़ार ऐसे पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया जिन्होंने अपना वज़न तीस किलो तक घटाया है और छः महीनों तक यही वज़न बरक़रार रखा यानी वज़न बढ़ने नहीं दिया. उनके मुताबिक इन लोगों ने अपनी दिनचर्या में बड़े परिवर्तन किए हैं जिनमें एक दिन में 60 से 90 मिनट का व्यायाम शामिल है। उनका कहना है कि हालाँकि पुरानी आदतों की वजह से मोटापे की महामारी पर क़ाबू पाना उतना आसान नहीं है। इससे निजात पाने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.

आशुतोष पाण्डेय