मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अमेरिका ने ली कई जानें:काला चेहरा

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 
अमरीका में राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से हाल ही में नियुक्त एक आयोग ने कहा है कि 1940 के दशक में ग्वाटेमाला में यौन संक्रमित रोगों के साथ शोध के क्रम में कम से कम ८३ लोगों की मौत हुई. इन लोगों को जान-बूझकर सिफ़लिस और गोनोरिया जैसे यौन रोगों से संक्रमित किया गया.ये आयोग ग्वाटेमाला में अमरीकी वैज्ञानिकों के काम और उनके द्वारा १९४६ से १९४८ तक यहाँ के नागरिकों पर किये गए परीक्षणों की जाँच कर रहा है. अमरीका ने इन शोधों के लिए ग्वाटेमाला से पिछले साल ही माफ़ी मांगी थी. आयोग ने कहा है कि इस शोध के क्रम में वैज्ञानिकों ने पेन्सिलिन ड्रग की जाँच के लिए वहाँ की अति संवेदनशील आबादी को जानबूझ कर संक्रमित किया. अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि इस संक्रमण से सीधे तौर पर कितनी मौतें हुईं. ये शोध अमरीकी जन स्वास्थ्य सेवा की ओर से वर्ष 1946 और 1948 के बीच किये गए थे. पेन्सिलिन के प्रभाव की जाँच के लिए अमरीकी वैज्ञानिकों ने ग्वाटेमाला के क़ैदियों, मानसिक रोगियों और अनाथों को इन यौन रोगों से संक्रमित किया गया था. शोध के बारे में इन लोगों से कोई सहमति नहीं ली गई थी और संक्रमण के बाद भी ये बात छिपाई गयी थी. ये काम काफ़ी गोपनीय तरीक़े से हुआ. इस मामले की जाँच कर रहे आयोग के कुछ सदस्यों ने इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया है. इससे मानवाधिकारों के प्रति अमेरिका का छद्म चेहरा भी सामने आता है. आयोग की पूरी रिपोर्ट सितंबर के शुरू में प्रकाशित होगी.
(आशुतोष पाण्डेय)

शनिवार, 27 अगस्त 2011

हीरे जैसा ग्रह

इस ब्रह्मांड में ना जाने कितने कितने रहस्य छिपे हैं, रोज नए-नए रहस्यों से पर्दा उठने के साथ ब्रह्मांड की गुत्थियां और उलझती जा रहीं हैं. अभी वैज्ञानिकों ने हीरे से बने एक ग्रह को खोज निकाला है. आकशगंगा में हमारे सौर मंडल से थोड़ा ही दूर एक चमकता ग्रह मिला है जिसके बारे में वैज्ञानिक ये मान रहें है कि ये कार्बन के अणुओं के काफी पास आ जाने के कारण भारी दवाब से हीरे में बदल गया है, जहां इसका आकार तो जुपिटर से छोटा बताया जा रहा है, लेकिन द्रव्यमान उससे कही ज्यादा होने की संभावना है. अभी इस ग्रह का नामकरण नहीं किया गया है.
वैज्ञानिक इस पर आक्सीजन और कार्बन गैसों के अस्तित्व को मान रहें हैं, लेकिन हाइड्रोजन जैसे हल्के अणुओं का पाया जाना संदिग्ध माना जा रहा है, पृथ्वी से चार हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. इसकी उत्पत्ति एक तारे से मानी जा रही है, जो टूट कर नष्ट हो गया और ये ग्रह अस्तित्व में आया होगा. काफी दवाब के कारण ही कार्बोन परमाणु हीरे के रूप में संघनित हो गये होंगे, इसी कारण इसका घनत्व अभी तक पाए गए सभी सौर मंडल के ग्रहों और ब्रह्मांडीय पिंडों से ज्यादा है. साइंस नाम के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में ये जानकारिया दी गयी हैं जिसे २५ अगस्त २०११ को आनलाइन प्रकाशित किया गया है.

(इनसाईट स्टोरी टीम)

पढिये विज्ञान के और सच और अजूबे: उलटा चलने वाला एक ग्रह

बुधवार, 24 अगस्त 2011

दूर की बीबी, लम्बे बच्चे

लम्बे बच्चे चाहिए तो शादी कहीं दूर से करें अभी पोलैंड के वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद ये निष्कर्ष निकाला है कि अगर पति पत्नी एक ही शहर या क्षेत्र के रहने वाले होंगे तो उनके बच्चों के नाटे होने की संभावना ज्यादा होगी, 2675 लड़कों और 2603 लड़कियों पर शोध करने के बाद ये वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुचें हैं. इसका कारण एक क्षेत्र विशेष के लोगों में पायी जाने वाली जेनेटिक समानता है. जिसके कारण बच्चों में भी माँ और पिता के प्रभावी लक्षण दिखतें हैं. इसमें इन लडके लड़कियों से उनके माता पिता के आर्थिक स्तर के बारे में भी पूछा गया था, इसमें पाया गया जिन लोगों की परवरिश अच्छी तरह हुयी थी उनके बच्चे ज्यादा स्वस्थ और लम्बे हैं. इसके अतिरिक्त समाज और भौगोलिक परिस्थितियों को भी संतान में पाए जाने वाले गुणों के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है.
(आशुतोष पाण्डेय)




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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

माँ का पोषण बच्चे का जीवन

शिशु का जन्म के समय का वजन उसके भावी स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधी क्षमता को निर्धारित करता है, ये मानना है प्रोफ़ेसर डेविड बार्कर का. उनके अनुसार गर्भ में पल रहे शिशु का पोषण माँ के रोजमर्रा के भोजन से नहीं बल्कि माँ के शरीर में संचित भोजन से होता है और बच्चे का स्वास्थ्य माँ के जीवन भर हुए पोषण पर निर्भर करता है. शिशु का शरीर माँ के द्वारा लिए गये भोजन के प्रति भी निश्चित प्रतिक्रिया करता है और उससे प्रभावित भी होता है. जन्म के समय शिशु का वजन गर्भावस्था और उससे पूर्व माँ को मिले पोषण पर निर्भर करता है.
भारत के कई गावों में जहां लोग काफी सक्रिय थे और खानपान में पूर्ण शाकाहारी थे भी मधुमेह से ग्रसित पाए गए हैं, ये बात चौकाने वाली थी, लेकिन प्रोफ़ेसर बार्कर के शोध ने इस गुत्थी को काफी हद तक सुलझाने में मदद की है. दरअसल इन गाँव में माँओं को मिलने वाला पोषण काफी निचले दर्जे का होता है और यही कई रोगों और कम प्रतिरोधी क्षमताओं से किसी इंसान को जीवन भर जूझने के लिए मजबूर करता है.
(इनसाईट स्टोरी टीम )

सोमवार, 22 अगस्त 2011

सेक्स एक बड़ी फंतासी है

सेक्स फंतासी या हकीकत
सेक्स फंतासी या हकीकत. 
सेक्स को लेकर हमारे समाज में कई भ्रांतियां हैं, जहां एक और सेक्स को आवश्यकता माना जाता है वहीं दूसरी ओर  इसे हवस से जोड़ कर देखा जाता है. इसी कारण देश में बलात्कार और यौन दुरूपयोग के मामले तेजी से बढ़ रहें हैं. टीनएजर्स में सेक्स को लेकर बढती उत्कंठा का परिणाम ही है कि युवाओं के बीच विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों में तेजी से इजाफा हो रहा है. लिव इन रिलेशनसिप को भी सामाजिक मान्यता मिलती दिख रही है. अभी हमने १५० युवाओं से जब लिव रिलेशनसिप के बारे में पूछा था तो ७२ फीसदी से ज्यादा इसे बुराई नहीं मानते हैं. फिर भी सेक्स को लेकर समाज में खुला ध्रुवीकरण दिखता है? समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी सेक्स या शारीरिक संबंधों की बातों पर त्योरियां चढा लेता है. ऐसा क्यों इसका जवाब किसी के पास नहीं है? जहां ओशो जैसे विचारक सम्भोग से समाधि की बात कर रहें हैं वहीं कुछ लोग सेक्स को मनोविज्ञान से जोड़कर देखतें हैं, शरीर और दिल के साथ इसे दिमागी कसरत के साथ भी जोड़ कर देखा जाता है. आज भी हमारे समाज में सेक्स एक बड़ी  फंतासी है.
(इनसाईट स्टोरी रिसर्च टीम) 

यूँ न खाएं एस्प्रिन


स्कॉटलैंड में किए गए एक शोध से संकेत मिले हैं कि मधुमेह से पीड़ित लोगों को दिल के दौरे से बचने के लिए नियमित रूप से ऐस्प्रिन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक 1300 ऐसे वयस्कों ने ऐस्प्रिन का नियमित रूप से सेवन किया जिनमें हृदय रोग के कोई लक्षण नहीं थे। उन्हें इससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ। यह अनुसंधान उन विभिन्न दिशा-निर्देशों के विपरीत हैं जिनमें दिल के दौरों से बचने के लिए ऐस्प्रिन के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है स्वास्थ्य संबंधित ख़तरे झेल रहे कई अन्य ऐसे मरीज़ हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत हो सकती है। नवीनतम अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों को दिल का दौर पड़ चुका हो या फिर जो हृदय रोग से ग्रस्त हों, उनमें ऐस्प्रिन के इस्तेमाल से भविष्य में होने वाले ख़तरों में लगभग 25 प्रतिशत कटौती होती है।
लेकिन 40 साल से ज़्यादा उम्र वाले मधुमेह से पीड़ित लोगों पर हुए ताज़ा शोध में सात साल की अवधि में ऐस्प्रिन के सेवन करने वाले और उसका सेवन न करने वाले लोगों में दिल के दौरे के संबंध में कोई फ़र्क नहीं पड़ा। अध्ययन दल की प्रमुख प्रोफ़ेसर जिल बेल्च का कहना है कि पेट में रक्त स्त्राव की शिकायत के साथ अस्पताल पहुँचने वाले अधिकतर लोग ऐस्प्रिन सेवन के शिकार होते हैं। उन्होंने कहा, ''शुरूआती स्तर पर बचाव के लिए इसके इस्तेमाल पर हमें दोबारा विचार करने की ज़रूरत है।"
इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक विशेषज्ञ पीटर सेवर का मानना है कि यह अध्ययन 'बेहद महत्वपूर्ण' है.
उन्होंने कहा, ''हज़ारों लोग दुकानों से ऐस्प्रिन ख़रीदते हैं। मैं उन मरीज़ों से हमेशा कहता हूँ कि ऐसा न करें। '' इस सब के बावजूद रॉयल कॉलेज के प्रोफ़ेसर स्टीव फील्ड का कहना है यह अध्ययन मौजूदा-दिशा निर्देशों को बदलने के लिए महत्वपूर्ण है। इनसाईट स्टोरी की टीम ने जब मधुमेह के मरीजों से बात की तो उन्होंने इस प्रकार की किसी जानकारी से इनकार किया। इनसाईट स्टोरी ने ५५० मधुमेह रोगियों से बात की जो नियमित योग करतें हैं और एक शोध रिपोर्ट दिनांक २० जुलाय को पेश की. शोध के अनुसार मधुमेह की रोकथाम योग के द्वारा सम्भव है। मधुमेह के साथ आने वाली तमाम बिमारियों का इलाज भी योग के माध्यम से हो सकता है। ३६ फीसदी लोगों का मानना है कि प्रतिदिन आधे से एक घंटा तक योग करने वाले व्यक्ति को इंसुलिन की कम मात्रा या बिलकुल जरूरत नहीं होती है. लगातार तीन महीने तक आधे घंटा नियमित योग करने वाले लोगों में ६०% का  मानना है की वे लोग कई बिमारियों से निजात पा चुके हैं।

(आशुतोष पाण्डेय)

किस उम्र से बच्चे को ट्यूशन भेजना चाहिए?

ये एक ऐसा विषय है जिस पर आज तक कोई सार्थक बहस नहीं हो पाई, आज ट्यूशन फैशन के साथ जरूरत भी बन गया है, बिना ट्यूशन बच्चा नर्सरी भी पास नहीं कर पाता है, इस स्तर पर ही बच्चे को पंगु बनाने में कोई कसर नहीं छोडी जाती है. फिर तो पूरी शिक्षा ट्यूशन भरोसे, क्या वो बच्चा कल एक स्वालम्बी नागरिक बन पायेगा. इस विषय पर आपके विचारों को आमंत्रित कर रहा हूँ, साथ ही इस बारे में किये गए खुद के शोध भी आपके साथ बाटूंगा. हमारे प्रयासों से आने वाली पीढी का सही मार्गदर्शन हो सकता है.

रविवार, 21 अगस्त 2011

आरएसएस इस गांधी को भी बर्बाद कर देगा

जनलोकपाल को लेकर अनशन में बैठे अन्ना हजारे ने आज प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वो घूसखोरों के दवाब में हैं, इसलिए जनलोकपाल विधेयक लाने में डर रहें हैं, अन्ना की ये टिप्पणी काफी आश्चर्यचकित करने वाली है, शायद अपने पीछे आये जन सैलाब को अन्ना अपना राजशाही का तमगा समझ रहें हैं, इसलिए कुछ भी बोल रहें हैं. प्रधानमंत्री के ऊपर लगातार अशोभनीय टिप्पणी कर अन्ना नेताओं वाला खेल ही खेल रहें हैं. इस देश में जो चाहे प्रधानमत्री बन जाए ये नहीं होता है, यहाँ जनता अपनी सरकार चुनती है. क्या अन्ना के साथ जुड़े सभी लोग दूध के धुले हैं, जो पार्टियाँ या दल आज अन्ना की जय कर रहें हैं क्या वो सब पवित्र हैं? क्या अन्ना इस देश की संसद से भी ऊपर हो गए हैं. न संसद की गरिमा कि चिंता, न न्यायपालिका की स्वतंत्रता की चिंता पता नहीं अन्ना सद्दाम बनना चाह रहें हैं या फिर हिटलर, कि इस देश को सिर्फ लोकपाल चलाएगा. अन्ना को अनशन करना है करें लेकिन जनता को गुमराह ना करें, जैसे रामदेव ने कालेधन को लेकर हल्ला किया और जब खुद काले धन को विदेश भेजने के आरोप लगे तो फिर योग शिविर शुरू कर दिए. किरन बेदी ने कहा है अन्ना अनशन नहीं अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करेंगे. मतलब जब तक मन आये बैठे फिर उठ लिए. इस आड़ में ये लोग देश को कमजोर कर रहें हैं, सारा देश और सरकार इसमें उलझेगी और विदेशी ताकतें इसका फायदा उठाएंगी. अगर ऐसे हालातों को रोकने के लिए सिर्फ आपातकाल ही अंतिम चारा बचता है तो सरकार क्या करे? लेकिन लोकतंत्र में जो भी हो उसकी सीमाओं में हो उसके उल्लंघन पर सजा हो. सरकार क्यूं तब्बजो दे रही है अन्ना और रामदेव को समझ नहीं आ रहा है, लोकसभा भंग करे और चुनाव करवा ले. सारा सच सामने आ जाएगा. जब इंदिरा ने आपातकाल लगाया था तो क्या कहा जा रहा था कि अब इंदिरा सिर्फ जेल में रहेगी, लेकिन फिर इंदिरा सत्ता में आयीं और लोकतंत्र के इतिहास में दुनिया की सबसे चर्चित और ताकतवर प्रधानमंत्रियों में गिनी जाती हैं. इसलिए अन्ना ब्लैकमेलिंग छोड़ जनता की अदालत में आयें और अन्ना टीम को चुनाव में खड़ा कर दें दो ढोल की पोल खुल जायेगी, आज आर एस एस के संरक्षण में बैठे अन्ना की टीम चुनाव के मैदान में आयेगी तो आरएसएस इस गांधी को भी बर्बाद कर देगा.
(आशुतोष पाण्डेय) 

बुधवार, 17 अगस्त 2011

करवा लो बिजली ठीक एमडी से

एक ओर देश में अन्ना के समर्थन में एक जोरदार आन्दोलन चल रहा है, वहीं भ्रष्टाचार और मनमानी में नौकरशाह अव्वल हैं. आज लोकपाल के लिए एक बड़ा आन्दोलन किया जा रहा है, देखने में अच्छा लग रहा है कि देश से भ्रष्टाचार मिट जाएगा. इससे पहले भी एक क़ानून आया था २००५ में सूचना का अधिकार अधिनियम, इससे के साथ भी यहीं जुमले जोड़े गए थे. कांग्रेसी नेताओं  ने इसे लागू करने के लिए अपनी पीठ भी ठोकी थी. लेकिन नौकरशाहों ने इस क़ानून की वो धज्जियां उड़ाईं की एक नए क़ानून की जरूरत आन पड़ी. इसी सूचना के अधिनियम के तहत ५ मई २०११ को हमने उत्तराखंड पावर कारपोरेशन उपमहाप्रबंधक रुद्रपुर से कुछ सूचनाएं चाही थी लेकिन तीन महीनों बाद भी कोई सूचना नहीं दी गयी उल्टा जब मेरे दवारा मेरे घर पर लगे मीटर में सील लगाने को विभाग को तो लाइनमैन (श्री जोशी) और जेई (श्री कुलदीप) ने बिजली ही काट डाली. आज दिनांक १७ अगस्त को फिर जब हमने चार दिन से बिजली नहीं आने की शिकायत महाप्रबंधक श्री एके जैन से की तो लाइनमैन श्री जोशी ने शिकायत करने के लिए जबरदस्त लताड़ दे डाली और कहा करवा लो बिजली ठीक एमडी से, इस पर जब एमडी को कहा गया तो उनका जवाब था कि मुझे परेशान ना करें, कर्मचारी को मैं कुछ कह नहीं सकता हूँ. ऐसी क्या मजबूरी रही होगी एमडी की पता नहीं, वैसे इस वाकये की जानकारी उत्तराखंड पावर कारपोरेशन के उच्च अधिकारियों को मेल से दी जा चुकी है. देखना है की अब क्या होगा लेकिन यहाँ ये बता दें की रुद्रपुर में भारी मात्रा में बिजली की चोरी करवाई जा रही है, कई घरों में कई सालों के बाद भी मीटर नहीं लगें हैं. फैक्ट्रियां  भी अवैध कनेक्शनों से चल रहीं हैं, इस बारे में करीब एक माह पूर्व खुद एमडी ए के जैन चिंता जाहिर कर अधिकारियों को निर्देश दे चुके हैं. लेकिन इस बारे में कर्मचारियों और अधिकारियों का रवैया टालमटोल का ही है. इसी विषय पर माँगी सूचना भी तीन महीनों के बाद भी मुहैया नहीं करवाई गयी है.
(इनसाईट स्टोरी टीम )
 

सोमवार, 15 अगस्त 2011

लोकपाल या तानाशाही?

१५ अगस्त १९४७, और अब १६ अगस्त २०११, जिसे एक नयी आजादी का दिन मुकर्रर कहा जा रहा है. अब सवाल ये है की अन्ना का ये आन्दोलन होना चाहिए या नहीं? अन्ना को हक़ है की वे आन्दोलन करें, अनशन करें या फिर जो चाहें करें. लेकिन इस बार जिस आन्दोलन की बात अन्ना ने की है, उसे लेकर कई लाजमी से सवाल उठने चाहिए. क्या भारतीय संसद अब विश्वास के लायक नहीं रह गयी है, अन्ना की चेष्टा तो ये ही दिखाती है और १.२ अरब की जनसंख्या के निर्वाचन के अधिकार के साथ संविधान को भी चुनौती दे रही है. लोकपाल का एक मसौदा संसद में है, उसमें संशोधन किये जा सकते हैं. संसद में सरकार ही नहीं विपक्ष भी है, अन्ना का विश्वास सरकार में ना हो कम से कम विपक्ष में तो हो. लेकिन अन्ना केवल सिविल सोसाइटी के चंद महानुभावों की राजशाही की मांग कर रहें हैं और उनके समर्थक लोकपाल को जादू बता रहें हैं जिसके आते ही सारा भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा. अनशन के लिए पाइम लोकेशन की मांग वैसी ही है जैसे लड़की के घर आये दुल्हे की फेरों से पहले मनचाहे दहेज़ की मांग. आन्दोलन में अगर सच्चाई होगी तो खुद लोग जुड़ जायेंगें. अन्ना को फ़िक्र है कि पार्किंग कहाँ होगी, समर्थक कहीं परेशान ना हों, अन्ना जी कोई कार्पोरेट ड्रामा कर रहें हैं या फिर आन्दोलन समझ नहीं आ रहा है. अब एक बात मीडिया की वो भी चाहता है कुछ हंगामा हो, टी आर पी और विज्ञापन उसे भी चाहिए. जितना बड़ा ड्रामा उतना ज्यादा प्राइम टाइम कमाई अन्ना आजकल रियलिटी शो में भी पहुच रहें हैं जैसे फ़िल्मी कलाकार फिल्मों के प्रचार के लिए आते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश की तीन चौथाई जनता जो गाँव और बीहड़ों में हैं कोई पहुचा है वहाँ तक हमें मौक़ा मिला उत्तराखंड के सूदूर गाँव में जाने का जहां का संपर्क भारी बारिश के चलते लम्बे समय से देश के अन्य भागों से कटा है? करीब १००० लोगों से बात की अन्ना की मुहिम की लेकिन किसी को कुछ मालूम नहीं है ये अन्ना कौन है या क्या कर रहा है? जो अन्ना टीम दिल्ली के चांदनी चौक में शत प्रतिशत समर्थन का दावा कर रही है, उसे कोई जानता तक नहीं इन गाँव में. इसके बाद रूख किया उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों से आये लोगों की ओर और उनसे से बात की जो कमाई के लिए उत्तराखंड के शहरों में आयें हैं, जब अन्ना के बारे में पूछा तो बोले बाबू जी अब गन्ना कहाँ बोयें जमीन बची कहाँ है , जब हमने बताया कि अन्ना बड़े समाजसेवी हैं, तो उनका जवाब था बाबू जी बख्श दो इन्हीं आन्दोलन करने वालों ने तो देश का बड़ा गर्क कर दिया है, इनके आन्दोलन होंगे, बंद होगा और गरीब मरेगा. हाँ फेसबुक और ट्विट करने वाला एक वर्ग जरूर कागजी समर्थन दे रहा है, लोगों को भडका और बहका के बड़े-बड़े कमेन्ट दे और ले रहा है. ये सब नाम के लिए या मस्ती के लिए है. इसमें से कितने हैं जो आमरण अनशन कर रहें हैं? हां कुछ ज्जबाती जरूर होते हैं, जो जान दे देते और लेते हैं यही गोधरा में हुआ, ९० के दशक में आरक्षण आन्दोलन में भी यही हुआ. तब भी किसी ने लाभ उठाया, आज भी कोई उठाएगा. जनता का क्या? अन्ना का एन जी ओ और चल जाएगा. वैसे अगर अन्ना २००५ में आयी जस्टिस पी बी सावंत की रिपोर्ट में लगे आरोपों को स्वीकार ही लेते तो अच्छा लगता, लेकिन भाई क्या करें अन्ना को ना ही संसद की गरिमा की चिंता है ना ही न्यायपालिका के न्याय का भरोसा, उन्हें बस लोकपाल चाहिए, सवाल ये है कि लोकपाल या तानाशाही?

(आशुतोष पाण्डेय)

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

छाती पर गोली खा शहीद हों.


अन्ना हजारे अपना अनशन १६ अगस्त से दिल्ली में शुरू करने जा रहें हैं, ये कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं जो में आपको दे रहा हूँ, लेकिन आज में कुछ अहम् सवाल उठा रहा हूँ, इस समय देश में चल रहें वैचारिक दव्न्द पर. १६ अगस्त से जहां अन्ना अनशन करेंगें वहीं १५ अगस्त से स्वामी रामदेव सारे देश के युवाओं को पतंजलि योगपीठ में एक हफ्ते के योग शिविर के लिए बुला रहें हैं और स्वामी अग्निवेश कह रहें है (सी एन बी सी को दिए इंटरव्यू में) प्रधानमंत्री या न्यायपालिका को लोकपाल में शामिल करने के प्रति सिविल सोसायटी का रूख लचीला हो सकता है. अन्ना पहले ही कह चुकें हैं की वे मंच को रामदेव के साथ साझा नहीं करेंगे, और स्वामी अग्निवेश के इस बयान पर भी अन्ना या किसी अन्य कार्यकर्ता का कोई रूख स्पष्ट नहीं हुआ है. अन्ना की मुख्य मांग है वो प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल की परिधि में लेने की ही है. ऐसे में स्वामी अग्निवेश के इस बयान की जरूरत क्या थी? अगर देखना चाहें इस देश को इतिहास के आयने में तो कई बातें सामनें आती हैं, ये देश बिभिषणों और जयचंद की कहानियों से भरा है. ऐसा ही एक बार जब जय प्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में युवाओं का आह्वान किया था, तो ठीक उसी दिन इंदिरा गांधी ने सुपरहिट फिल्म 'बाबी' का प्रसारण दूरदर्शन पर करवा युवाओं को रोकने का प्रयास किया था. आज वही काम रामदेव और अग्निवेश कर रहें हैं. लेकिन समझ में नहीं आ रहा अन्ना ने ये बयान क्यों दिया की वे मंच रामदेव के साथ साँझा नहीं करेंगे? जब रामदेव के अनशन पर केंद्र की प्रतिक्रिया हुयी थी तो अन्ना ने उनका साथ देने का दावा किया था, फिर क्या बिगड़ा की अन्ना और रामदेव एक मंच पर नहीं आयेंगे. जब दोनों की लड़ाई एक ही मुद्दे को लेकर है, तो ये दूरियां क्यों? अगर लोकपाल पास हो जाता है तो रामदेव की मुहिम को धक्का पहुचेगा क्योंकि फिर तो काले धन को लेकर सभी विषय लोकपाल के पास होंगें. रामदेव के पास बचेगा क्या? लेकिन फिर एक बार अन्ना टीम के अग्निवेश के पास आना पडेगा, अग्निवेश ऐसा बयान क्यों दे रहें हैं? अन्ना टीम चुप क्यों है? या चुप क्यों दिख रही है? कल इन सब बातों का इतिहास लिखा जाएगा और इतिहास का एक पहलू सदा काला होता है या दिखता है. अपने आन्दोलन के शुरूआती दिनों से आज तक अन्ना का रूख भी काबिलेगौर होना चाहिए, पहले एक बार तो अन्ना संसद के फैसले को सर्वोपरि मानने की बात कहते थे लेकिन आन्दोलन की धार देख अपना सुर तो बदल दिया लेकिन अग्निवेश के रूप में एक पासा बचा के रखा है लौट के आने का, इसीलिए अग्निवेश के बयान के लिए सन्नाटा है सिविल सोसायटी में? क्या कोई जवाब देगा देश को? या फिर कामेंट्स में वही एक दूसरे की अस्मिता पर कीचड़ उछालने का काम किया जाएगा. ये आन्दोलन अन्ना या रामदेव का नहीं है, ये भारत की संप्रभुता का आन्दोलन है, लेकिन आन्दोलन जज्बातों से नहीं होश से होते हैं, आँखे खुली रखें. १६ अगस्त को देश के इतिहास में एक नयी आजादी का दिन घोषित कर दो, और तब तक संघर्ष जारी रखेंगें जब तक फिजां ना बदले, रास्ते गांधी वाले भी और और काम ना बनें तो दोस्तों छातियाँ कब काम आयेंगी, गुलामी में झुके सर को लेकर जियें इससे तो अच्छा है, छाती पर गोली खा शहीद हों.
आशुतोष पाण्डेय 

बुधवार, 10 अगस्त 2011

राहुल बन गए प्रधानमंत्री?

सोनिया ने राहुल को पार्टी की कमान क्या सौंप दी की, उन्हें देश का प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट कर दिया जाने लगा, सोमवार को एक समाचार चैनल ने कह दिया की देश में राहुल प्रधानमंत्री के लिएलोगों की पहली और अंतिम पसंद हैं, खूब हंसी आयी ये प्रहसन सुन. सुना है दिल्ली की कोई सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसाइटीज है जिसने ये सर्वे कराया है. उनके अनुसार ४२ फीसदी लोग चाहतें हैं की राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनें. और आगे देखिये की ३४ फीसदी चाहते हैं की वो तुरंत प्रधानमंत्री बनें, वाह भाई वाह क्या सर्वे करा डाला? ये क्या बात हुयी राहुल जी दो दिन पार्टी की कमान तीसरे दिन प्रधानमंत्री का ख्वाव. वैसे मेरा कहा मान लो तो बन जाओ प्रधानमंत्री, चुनावों के बाद तो ये कौड़ी दूर की होगी. ये गौरव गाथा यहीं खत्म हो तो बताया जाय. इस सर्वे में २२ फीसदी लोग मनमोहन के साथ हैं. अजी काफी हैं २२ फीसदी तो बहुत है, जब अकेले सोनिया जी के वरदहस्त से दो बार प्रधानमंत्री बन गए तो इस बार तो २२ प्रतिशत साथ हैं, जय हो! कैग की रिपोर्ट का क्या काहे विपक्षी चिल्लाय रहें हैं, ज्यादा चिल्लाए तो हम एक और सर्वे करवा देंगें. अजी अपने योगेन्द्र जी हैं ना सर्वे स्पेलिस्ट ३९ हजार लोगों में ४२ फीसदी का साथ मिलने से जब राहुल बाबा को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलवा दें तो, दो-चार सौ लोगों से बात कर कैग की रिपोर्ट की भी... क्या कहें साहिब जहां ३९००० में पार्षद का चुनाव भी ना जीता जाय, योगेन्द्र जी राहुल को प्रधानमंत्री बना गए. मजा आ गया भाई, योगेन्द्र जी को मैं भी चाह रहा हूँ बुला लूं क्योंकि एक हजार वोट पर कम से विधायक तो बन ही जाउंगा. अगर उस पर राहुल जी हैं ही अपने, वो अपनी चाची के मामा के दोस्त के भतीजे के साले के पता नहीं क्या हैं? तुरंत प्रधानमंत्री बनाने वाले उनकी कृपा हो गयी तो, कोई कामनवेल्थ भले ही ना हों असली वैल्थ का इंतजाम तो हो ही जाएगा जैसे वढेरा जीजा का हो गया हमारा भी कुछ हो ही जाएगा. अगर ना भी हुआ तो भाई कम से अपना भी नाम भी सीबीआई वाले जान लेंगे. आज विधायक तो कल १० जनपथ तक भी, वैसे भी सोनिया अपनी ताई हुयी, अब कैसे ये मत पूछना जब कोई काम की बात पूछ ले तो हम कांग्रेस वालों को स्मृति भ्रम हो जाता है. अरे यार क्या पीछे पड़ गए, सारी सरकार अन्ना के पीछे है, और तुम भी ना हमारे पीछे. केंद्र मैं हुआ तो हल्ला, शीला जी राज्य में करें तो हल्ला. क्या लोगे चुप रहने का सुनो हम सरकारी लोकपाल बिल लाने वालें हैं, वहां तुम्हारा भी जुगाड़ करवा देंगें. कम से लोकपाल कार्यालय में कैंटीन का ठेका तुम्हारा रहा. और सुनना है, अरे छोडो हम कांग्रेसी हैं, हम नहीं बोलते, यहाँ बोलने का काम दिग्गु चाचा का है, ये दिग्गु कौन हुए भाई, अरे यार तभी तो आज तक प्रधानी का चुनाव भी न जीत पाए, कामन सेन्स ना ही है ना, कामन जनता वाला. दिग्गु माने अपने दिग्गी राजा, अब दिग्गी राजा कैसे हुए, युवराज ही राजा होंगें, अरे आप योगेन्द्र जी आ गये जी हाँ बस आप ही फोन लगा रहा था. अपना भी पपलू फिट करवा दो कम से कम १००० से बात कर, सर्वे कर ए मे ले तो बना दो वैसे हम खुद भी बहुत मैले इंसान हैं.
(आशुतोष पाण्डेय)

रविवार, 7 अगस्त 2011

फैशन के दरवाजे



जहां दुनिया में और बहुत से काम हैं, वहीं सजने सँवरने का भी एक बड़ा बाजार है. फैशन का मार्केट कपड़ों से शुरू हो, पता नहीं कहाँ तक जाता है. जीवन का एक बड़ा पहलू ये भी इसलिए इसे नजर अंदाज कैसे करें, देखिये कुछ नई दस्तक फैशन के दरवाजे पर.

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

नागचंद्रेश्वर के मंदिर के कपाट खुले

'आपके शहर' में हमें एक खबर मध्य प्रदेश के उज्जैन से मिली है. 
उज्जैन, ऐतिहासिक नगरी उज्जैन में वर्ष में एक दिन नाग पंचमी को खुलने वाले नागचंद्रेश्वर के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए विशेष पूजा अर्चना कर रहे हैं. प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में स्थित है, नागचंद्रेश्वर का मंदिर. इस मंदिर के कपाट वर्ष में एक दिन नागपंचमी की रात खुलते है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक नागपंचमी को बुधवार की रात को 12 बजे मंदिर के कपाट खोले गए. मंदिर के कपाट खुलने के बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे श्रद्धालु पूजा अर्चना करने लगे हैं. कोई दूध से स्नान करा रहा है तो कोई अनुष्ठान कर रहा है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि नागचंद्रेश्वर के दर्शन मात्र से ही समस्याओं से मुक्ति मिलती है तथा मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
संभवत: यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके कपाट वर्ष में एक दिन के लिए खुलते हैं. यह मंदिर महाकाल मंदिर के ऊपरी हिस्से में स्थित है तथा इसके निर्माण को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियां हैं। यह मंदिर आर्कषक है. इस मंदिर में उत्तरी दिशा की दीवार में नागदेवता की प्रतिमा बनी है. सर्प के सिंहासन पर भगवान विष्णु विराजमान है. वहीं सात सर्पो के आसन पर भगवान शिव विराजित है. यहां गणेश जी की भी प्रतिमा है. 
प्रस्तुति: इनसाईट स्टोरी 

ये आन्दोलन: ऐसा क्या है


इस लेख के सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं, बिना लिखित अनुमति पूर्ण या आंशिक रूप से इसका प्रकाशन, सम्पादन या कापी करना वर्जित है.


आज एक अहम सवाल देश के लोगों से क्या आन्दोलनों या हडतालों से देश सही दिशा में जाएगा? आज हर तरफ आन्दोलनों की बाढ़ है, जहां सारे देश में कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन हैं; वहीं जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है, वहां कांग्रेस आन्दोलन कर रही है. आज बैंको की हड़ताल है, रोज कहीं न कहीं हड़ताल होती है, और ये आन्दोलन किसी सेलिब्रेटी के द्वारा किया जाय तो फिर देखिये, एक जमात खड़ी हो जाती है इनके साथ भले ही उनका कुछ लेना देना हो या ना हो बस फोटो आ जाय किसी विडियो फुटेज में दिख जाएँ. आन्दोलन कैसा हो, कब हो, किसके खिलाफ हो और क्यों हो? इसके लिए क्या कोई नियम हों. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने जब लोकायुक्त की रिपोर्ट के खिलाफ बयान दिए, या उसे चैलेन्ज किया तो कोई आन्दोलन नहीं हुआ. जब देश में एक बड़ा तबका लोकपाल के पक्ष में आन्दोलन रत है तो लोकायुक्त संतोष हेगड़े की रिपोर्ट की धज्जियां उड़ाना कैसे संभव हुआ? क्या आन्दोलन प्रायोजित भी होते हैं? शायद हाँ, शायद नहीं सिर्फ हाँ, ज्यादातर आन्दोलन प्रायोजित ही होते हैं, और उन्हें करने वालों का देशहित से कुछ लेना देना नहीं होता है. हाँ कुछ लोगों को मोहरा बना कर पेश किया जाता है, वो चाहे समाजसेवी हों, छात्र हों या फिर सन्यासी हमें ९० के दशक का आरक्षण विरोधी आन्दोलन याद है. कुछ लोगों के भड़काऊ बयानों ने देश को एक आग में झोंक दिया था, कई छात्र-छात्राओं ने आत्मदाह किया था, सारे देश में अफरातफरी थी. उसके बाद बाबरी मस्जिद को लेकर हुए हंगामें. क्या हुआ सारे देश में सबको याद होगा? ३१ अक्टूबर १९८४ को जब इंदिरा गाँधी को गोली लगी तो पूरा देश कैसे जला था, कुछ ही लोग थे जिन्होंने ये आग फैलाई थी. कैसे भूल जाएँ गोधरा? क्या ये सब आन्दोलनों का कोई परिणाम सामने आया? आज आरक्षण जितना था उससे बढ़ ही गया, बाबरी मस्जिद पर जो फैसला आया उसे कोई मानेगा नहीं.
एक तबका है इस देश में जिनको कहना चाहिए "फुर्सत के बुद्धिजीवी" जिनके पास बस एक काम है, नयी थ्योरी को तैयार कर उसे जनता पर थोपना है, जनता ना माने तो आन्दोलन शुरू कर दो. लेकिन ७० फीसदी वो जनता जो अपने हाड़-मांस को सूखा हमारे लिए काम कर रही है उसके लिए आन्दोलन करने वाला कोई नहीं. १००० रूपया ना दे पाने के कारण कई किसानों की जमीने और घर कुर्क कर लिए जातें हैं; तब कहाँ होते हैं ये सब लोग. इन्हें दूर तो बहुत दिखता है लेकिन बगल वाले का गला ये बखूबी काटते हैं. जब किसी की बहन या माँ के साथ दुर्व्यवहार होता है तो कहाँ रहते हैं वो वकील जो देश को सुधारने की बात करते हैं. आन्दोलन और हड़ताल को मानवाधिकार और संविधान प्रदत्त अधिकार मानने वाले ये तथाकथित बुद्धिजीवी, अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन क्यूं नहीं करते हैं? अगर संविधान में आस्था हो तो पूरी हो. पहले अपना पाठ तो पूरा पढ़ें फिर बढ़ें देश सुधार की ओर. एक ख़ास वर्ग को आज देश के इन ठेकेदारों ने बोलने को तैयार कर छोड़ा है और ये हैं कि काठ के पुतलों की तरह अपने आकाओं का संरक्षण करने खड़े दिखते हैं चाक-चौबंद.
आप आन्दोलन कीजिये लेकिन ये जरूर ध्यान में रखें की देश पहले है, हम बाद में... मेरे कहने से तो ये देश सुधरने से रहा. इस देश में जो फैसले जनता ने किये वो ही सबसे खूबसूरत हैं, और आगे भी उसे करने दो. आजादी के बाद इस देश की सत्ता कई बार बदली लेकिन एक पार्टी बार-बार लौट के आई है, इमरजेंसी के बाद ये माना जा रहा था कि कि अब इंदिरा कभी नहीं लौटेंगी लेकिन लौटी और मरने तक सत्ता में रही. उसके बाद वी.पी सिंह के बोफोर्स के हल्ले के बाद फिर कांग्रेस का सूरज अस्त हुआ, लेकिन फिर नर्शिम्हा राव और भारत की आजादी के बाद का स्वर्ण युग रहा विकास के मायने में. फिर पतन कुछ साल फिर सत्ता मनमोहन को दो बार. हर बार हल्ला हुआ लेकिन हर बार विकल्प ना होने पर फिर लौट के आना. आज फिर कांग्रेस हाशियें पर है, लेकिन फिर एक बार लौटेगी. तो आखिर क्या हुआ इतने आन्दोलनों का इनके अनुसार तो कांग्रेस को कभी लौटना ही नहीं चाहिए था. दरअसल आन्दोलन सिर्फ सत्ता को हथियाने या बचाने को होते हैं. ऐसे आन्दोलन का कुछ होने वाला नहीं जब तक एक गरीब किसान, और मजदूर हुंकार कर खड़ा नहीं होगा, आप एसी पंडाल और सुरक्षा के बीच चाहे जितने आन्दोलन कर लें शक्ल नहीं बदलेगी. जनता के स्वत: स्फूर्त होने का इन्तजार करो, आन्दोलन शब्दों से नहीं आता, कर्मों से आता है. गांधी बनने के लिए महीनों उपवास की ताकत और अनाशक्ति योग का अभ्यास चाहिए, आजाद जैसा सीना होना चाहिए.
(आशुतोष पाण्डेय)

दुखद: एक युग का अंत

उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी से एक दुखद समाचार प्राप्त हुआ है.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंबा दत्त ढौंडियाल का गुरुवार को हल्द्वानी में देहावसान हो गया. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंबा दत्त ढौंडियाल का जन्म छह दिसंबर 1924 को आंवलाकोट गांव स्थित कोटाबाग में हुआ था. महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही 14 वर्ष की अवस्था में ही भारत छोड़ो आंदोलन व सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. स्वर्गीय ढौंडियाल पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ बरेली जेल में आठ माह तक रहे. पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के साथ भी 11 माह तक अल्मोड़ा जेल में रहे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. उत्तर प्रदेश राज्यपाल ने भी उन्हें सम्मानित किया था. उन्हें जिला पंचायत सदस्य मनोनीत किया गया था. वे ग्राम सभा आंवलाकोट के 15 वर्ष तक ग्राम प्रधान रहे. राजकीय सम्मान के साथ रानीबाग के चित्रशिला घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया.
देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले इस जाबांज सिपाही की कमी तो पूरी नहीं हो सकती है, लेकिन एक सीख हमें जरूर मिलती है कि जिस देश को आजाद करने में इन लोगों ने अपना तन, मन और धन सब लुटा दिया उसे बनाए रखें.
(इनसाईट स्टोरी) 
हल्द्वानी 

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

खतरा चीन से: हैकिंग

अमेरिका द्वारा जारी एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पूरी दुनिया में भारत सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका की रक्षा कंपनियों के नेटवर्क अब तक साइबर हमलों का सर्वाधिक शिकार हुए हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन ही इनमें से अधिकतर के लिए जिम्मेदार है. इसके अलावा भी हैकिंग के मामलों में अक्सर चीनी हैकरों का हाथ होने की बात सामने आती रहती है. "वाशिंगटन पोस्ट" ने एंटी वायरस सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी मैकेफी की रिपोर्ट के हवाले से यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच साल की अवधि में इन हमलों में मुख्य रूप से शिकार बनी 72 संस्थानों की जानकारी जुटाई गई है। इनमें भारत सरकार, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संघ आसियान और आईओसी भी शामिल हैं. जिन संस्थानों और कंपनियों के नेटवर्क में सेंध लगाई गई है, उनमें जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ का सचिवालय, अमेरिका के ऊर्जा विभाग की प्रयोगशाला और नए हथियार तैयार करने में लगीं 12 प्रमुख अमेरिकी कंपनियां हैं. रिपोर्ट में कंपनियों के नाम नहीं बताए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर हमलों के पीछे किसी एक देश के हैकर जिम्मेदार हो सकते हैं. हालांकि इसमें किसी देश का नाम नहीं लिया गया है. लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार सबूत चीन की तरफ इशारा करते हैं. मैकेफी के उपाध्यक्ष दमित्री एल्परोवित्च ने 14 पेज की इस रिपोर्ट में कहा है कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि साइबर हमलों से जुटाई गई जानकारियों का हैकरों ने क्या किया? इसके गलत हाथों में पड़ने से बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार साइबर हमला करने वाले सैन्य व्यवस्था और सैटेलाइट संचार जैसी संवेदनशील हासिल करना चाहते थे। साइबर हमलों में सैन्य ठेकेदारों, इलेक्ट्रॉनिक फर्मों और वित्तीय संस्थानों को भी निशाना बनाया गया. उल्लेखनीय है कि  इससे पहले भी कई साइबर हमलों के बाद अमेरिका ने चीन की ओर इशारा कर चुका है.  अमेरिका ने साइबर हमलों को रोकने के लिए कुछ काफी कड़े कदम उठाए हैं, फिर भी वह अब तक इन्हें रोकने में नाकाम रहा है. 
(आशुतोष पाण्डेय)

मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ


इस लेख के सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं, बिना लिखित अनुमति पूर्ण या आंशिक रूप से इसका प्रकाशन, सम्पादन या कापी करना वर्जित है.
मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ, ये सुनने में कम ही आता है, अभागा होने का रोना रोने वाले तो करोड़ों में मिल जायेंगे लेकिन अपने भाग्य को सराहने वाला शायद ही कोई मिले. हर छोटी से छोटी बात पर भी भाग्य को कोसना, ये तो हमारी किस्मत ही खराब थी, ये सब हमारे साथ ही होना था. धिक्कार हैं! वो लोग जो भाग्य को कोस रहे हैं. हम क्या हैं? हमारा वजूद हमारा भाग्य नहीं कर्म निश्चित करते हैं. भाग्य ही एक ऐसी चीज है जिसे इंसान खुद जैसा चाहे गढ़ ले. दुनिया मैं किसी भी सफल इंसान को लो क्या वो परेशानियों से मुक्त था? जितनी बड़ी परेशानी उतना बड़ा सौभाग्य. अगर हर इंसान सिर्फ भाग्य को ही कोसता तो जानते हैं क्या होता, अभी तक हम असभ्य ही रहे होते. दुनिया भाग्य से नहीं हाथों और इन्द्रियों के मेल से चलती है. दुर्भाग्य क्या है कोई बताये मुझे?
सौभाग्य मैं जानती हूँ. "मैं सौभाग्यशाली हूँ" की इंसान के रूप में इस धरा पर आयी हूँ, मेरे पास करियत्री प्रतिभा है; ईश्वर ने मुझे अपने अंश से सर्वश्रेष्ठ भाग दिया है. शुक्रगुजार हूँ इस चमकते सूरज के लिए, मीठी चाँदनी के लिए और उसके द्वारा दी गयी उन चंद परेशानियों के लिए जिनसे वो मेरे वजूद को परखना चाह रहा है. असल मैं जन्म के बाद एक ही चीज है जिसके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए वो हैं हमें दी गयी जिम्मेदारियां जिन्हें हम दुःख या फिर दुर्भाग्य कह देतें हैं. हम क्यों भागते हैं परेशानियों से? इन्हें हल कीजिये, ये हल हो सकती हैं, आज नहीं कल इनका हल निकलेगा. आप इन्हें किसी के भरोसे ना छोड़े कम से कम भाग्य के तो कतई नहीं. क्योंकि भाग्य हमारी नकारात्मक सोच का एक ऐसा काल्पनिक बुलबुला है जिसका कोई अपना अस्तित्व होता ही नहीं है. क्यों अब भी कोई संकोच बाकी है ये कहने में कि "मैं दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान हूँ". मैं कौन हूँ जो ये कहूं की अपनी सोच बदलो. आप अपने दुर्भाग्य के साथ जितना जीना चाहें जी लें. लेकिन ये बंदी तो कभी दस्तक ही नहीं देगी दुर्भाग्य के दरवाजे. चलिए हम तो चले नई दस्तक के साथ.'मेरी दस्तक' मैं फिर आप से मिलेंगे "मैं क्यों मरूं चिंता की मौत" के साथ. अब आप लोग पढ़ सकते हैं, मेरे सारे आलेख ज्ञानपुंज पर भी. यहाँ क्लिक कर पहुँचिये खुशी के संसार में.   

(सुषमा पाण्डेय)

रुद्रपुर का रूख जरा संभल कर

आपका शहर स्तम्भ में हमें पहली खबर मिली है शहर रुद्रपुर से पढ़िए ये कहानी
रुद्रपुर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित एक शहर है जहां पिछले कुछ वर्षों में तेजी से औद्योगिक विकास हुआ है और इसी के साथ यहाँ लोगों की मुसीबतों का विकास भी हुआ है. सड़कों पर घंटों लगने वाला जाम इनमें से एक है, क्यों लगता है ये जाम? हाल ही में अमीर हुए यहाँ के लोग कारों, बाईकों का एक बाजार घरों में खड़ा कर चुके हैं और यातायात के नियमों को पालन करना यहाँ गुनाह माना जाता है, जिस की मन जहां से आये चल पड़े, दायें या बाएं इसका फर्क ही नहीं पड़ता है, कोई कुछ कहे तो मार पिटाई पर उतर आयें. प्रशासन नाम की कोई चीज उत्तराखंड में है ही नहीं तो यहाँ कहाँ से आ जायेगी. सड़कों के हाल देखें तो आप कहेंगे तौबा इसलिए कभी रुद्रपुर (उधम सिंह नगर) का रूख करें तो संभल कर रहिएगा. 
(रवि कुमार रुद्रपुर)

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

भ्रष्ट हम भी हैं

इस लेख के सर्वाधिकार लेखक और सम्पादक के पास सुरक्षित हैं, बिना लिखित अनुमति पूर्ण या आंशिक रूप से इसका प्रकाशन, सम्पादन या कापी करना वर्जित है.
देश में काले धन को लेकर काफी बड़ा आन्दोलन करने वाले रामदेव का सब कुछ काला ही काला नजर आ रहा है, इस देश में अपने योग शिविरों के जरिये कालेधन की वापसी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रामदेव और उनके साथियों की पोल खुलनी शुरू हो गयी है, बालकृष्ण के फर्जी हथियारों के लाइसेंस, फर्जी डिग्री, फर्जी पासपोर्ट, और तमाम फर्जी जानकारियों के चलते इस बात पर रामदेव की मंशा पर सवाल उठने लगें हैं की क्या रामदेव वास्तव में शुचिता लाना चाहते हैं? या फिर अन्य नेताओं की तरह झूठ बोल जनता को बहला रहें हैं. अभी तक रामदेव और उनके समर्थक इस बात का दावा करते नहीं थकते थे कि बालकृष्ण अपना सब छोड़ कई सालों से पतंजलि योगपीठ की सेवा कर रहें हैं, यहीं बातें खुद रामदेव और बालकृष्ण भी कई बार मंचों से कह चुके हैं. समझ में नहीं आता की उन्होंने या उनके जानने वालों ने इन बातों पर पर्दा क्यों डाल के रखा है? बाल कृष्ण का एक कार्पोरेट साम्राज्य है जिसका टर्न ओवर हजारों करोड़ का है. जिसकी जानकारी जनता को भी सी बी आई की जांच के बाद ही मिलनी आरम्भ हुईं हैं. अब तो उनके परिवार के अन्य लोगों की जानकारियाँ भी मिल रहीं हैं जो इस गड़बड़ झाले में शामिल हैं. मेरठ में उनके भाई ब्रह्मदत्त अपनी पत्नी के साथ पतंजलि योग पीठ का काम देखते हैं. लेकिन सी बी आई के शिकंजे को कसने के बाद भाग खड़े हुए हैं. जब भी कोई इस बाबत बोलता है या लिखता है तो रामदेव के चेलों की एक जमात उसके पीछे पड़ जाती है और कहा जाने लगता है की दिग्गी राजा ये कहते है, सोनिया ये कहती है, सारी सरकार चोर है.... वाह भाई वाह!
कितना शमर्नाक है एक संत का कृत्य,राजनीति तो विद्रूप है ही, जब एक संत ही योग, धर्म और शुचिता की आड़ में ये करे तो राजनेता तो क्या कहने? यह घृणित है. इसका विरोध हो बिलकुल वैसे ही जैसे सरकार की चोरी का. अब इस सवाल का जवाब भी यहाँ आ जाय, ये लाजिमी है क्या किसी को इस बात के लिए बख्श दें कि उसका ये पहला अपराध है या वह संत है? या इससे पहले भी कई लोगों ने ऐसा किया उन्हें सजा नहीं हुयी? यदि अपराध सिद्ध होने पर ए. राजा, कलमाडी या कनिमोझी को जेल हो सकती है तो बालकृष्ण को कैसे बख्श दें, और क्यों? यही व्यक्ति अगर कल देश का प्रधानमंत्री बन गया तो क्या हाल करेगा देश के, जो अपने एक आश्रम को चलाने के लिए इतने घोटाले कर सकता है तो देश की सत्ता मिलने पर क्या करेगा? भ्रष्टाचार चाहे संत का हो या नेता का सजा और विरोध समान हो. हमारा यही दोगला रवैया देश में भ्रष्टाचार को पनपने में मददगार रहा है, हम सदा छोटे और बड़े भ्रष्टाचारी का भेद कर छोटे को छोड़ देतें हैं, और यही छोटा एक दिन बड़ा बन जाता है,  भारत की राजनिती में बाहुबलियों का प्रवेश इसका उदाहरण है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े और जनस्फूर्त आन्दोलन की जरूरत है जिसमें हर भ्रष्टाचारी को बराबर का खौफ हो. ऐसा कब होगा पता नहीं. अभी इस देश में कई आन्दोलन चल रहें हैं और इनके संचालक इस बात का दावा कर रहें हैं कि उनके साथ सारा देश खड़ा है और इसके लिए हवाला दे रहें है किन्ही जनमत सर्वेक्षणों का, क्या कहने आप के चंद मेट्रो शहरों में चंद लोगों से चंद सवाल पूछ कर इसे देश की आवाज कह रहे हैं? कभी पूछा उस किसान से जो रोज रोता है उससे पूछिए ना की प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लायें या नहीं? उसका जो जवाब हो उसे सीधा टेलीकास्ट कीजिएगा. फिर देखिएगा की भ्रष्टाचार कहाँ से खत्म करना है. 
एक नेता पांच साल में कितने करोड़ का घोटाला करता है इसकी खबर तो है आपको, लेकिन किसी ने जानने की कोशिश की चुनावों में वोटर वोट की क्या कीमत वसूलता है, कितनी शराब पीता है? तब कहाँ जातें हैं इस देश के बुद्धिजीवी, कितने करोड़पति बी पी एल कार्ड बना बैठें हैं, बाबुओं को लाइन से हटकर काम करने के लिए रिश्वत का लालच कौन देता है? बिना हेलमेट गाडी चलाने पर पकड़ने जाने पर चालान कटवानें की जगह रिश्वत कौन दे रहा है? एक बार सब मिलकर कसम खा लें की कम से कम हम अब कोई भ्रष्ट आचरण नहीं करेंगें तो देखिये फिर क्या होता है? हमारे भ्रष्ट आचरण को लोकपाल की परिधि में लाओ इसकी मांग करो? फिर देखिये क्या होता है? जितना समय हम इस बहस में जाया करें की कौन लोकपाल में हो कौन ना हो उससे तो अच्छा है कि हम खुद भ्रष्ट आचरण छोड़ दें.
(आशुतोष पाण्डेय)  

सोमवार, 1 अगस्त 2011

छात्रों को सिखाएं आधारभूत तथ्य

25 जुलाय 2011 को एजुकेशन मंत्रा  ने सफलतापूर्वक 15 सालों का सफ़र पूरा कर लिया है. इस सफ़र में कई सफलताओं की कहानिया जुडी हैं, 2000 से ज्यादा विद्यार्थी 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा में सफल हो चुके हैं. इसके अतिरिक्त 556 विद्यार्थी इस सत्र तक इंजीनियरिंग और मेडिकल में दाखिला ले चुके हैं. दिल्ली के जी. टी. बी. इन्क्लेव से शुरू ये सफ़र जिसे मात्र तीन छात्रों के साथ आरम्भ किया था. आज हजारों सफलताओं की कहानियों से जुड़ा है.एक स्वप्न के साथ आरम्भ ये संस्थान अभी अपने मुकाम से काफी दूर जरूर खडा है लेकिन मंजिल बिलकुल साफ़ दिखती है. हमारा उद्देश्य कोचिंग से पैसा कमाना मात्र नहीं रहा, हर एक को आत्मनिर्भर बना कर खुद पढ़ने और पढ़ने की तकनीक विकसित करना सिखाया है. हम शिक्षा को कोचिंग मुक्त बनाना चाहते हैं, पहली क्लास से ट्यूशन की जो प्रवृति देखी जा रही है वो काफी घातक है, हम बच्चे के विकास के बजाय विनाश के लिए कोच करें ये कहाँ तक ठीक है. छात्रों को विषय के आधारभूत तथ्यों (Fundamentals) की जानकारी ना ही स्कूलों में दी जाती है और ना ही कोचिंग सेंटरों पर. लेकिन हमने अभिनव प्रयोग किये हैं छात्रों के लिए Fundamentals को जानने के लिए कई तरीके विकसित किये हैं. आज एजुकेशन मंत्रा क्लास रूम, आनलाइन और पोस्टल कोचिंग के रूप में कुल प्रतिवर्ष १०० छात्रों का ही प्रवेश लेता है. हमारे पास उपलब्ध सीमित साधनों में इससे ज्यादा प्रवेश दे पाना अभी हमारे लिए संभव नहीं है. हम कमाई से तो समझौता कर सकतें हैं लेकिन गुणवत्ता से समझौता हो ही नहीं सकता है. 
आप किसी भी प्रकार की जानकारी हमारी टीम से ले सकतें हैं: mail: mantraedu@hotmail.com
mobile: +91-7895365453 (Time 10:00 A.M-1:00 P.M & 7:00 P.M-9:00 P.M)

(सुषमा पाण्डेय)
Course Co-ordinator
Education Mantra