सोमवार, 25 जुलाई 2011

कांग्रेस सर्कस और उसके नट

अब कांग्रेस के दिन गुजर चुके हैं, घोटालों की जद में जकड़ी पार्टी के लिए उसी के सिपहसालार मुश्किलें खड़ी कर देतें हैं.ताजा मुश्किल पार्टी के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर की टिपण्णी से आयी है, जिसमें वो कांग्रेस को सर्कस कह रहे हैं, और काग्रेसियों को नट. चलो मणिशंकर जी को भले बुरे की पहचान तो हुयी, लेकिन जिस अवसर पर ये बात कही उस अवसर पर वे खुद सबसे बड़े नट दिग्विजय के साथ राशिद किदवई की किताब '२४ अकबर रोड' का लोकार्पण कर रहे थे. उन्होंने तो यहाँ तक कह डाला की सोनिया गांधी और अहमद पटेल का निवास कांग्रेस मुख्यालय से ज्यादा पावरफुल है वहां तक विशेष प्रभावशाली ही पहुच पातें हैं. अब देखना ये है इसी कार्यक्रम में उनके साथ आये दिग्गी बाबू भी इस बात पर हामी भरते हैं? या फिर मणिशंकर की व्यक्तिगत सोच कह कर पल्ला झाड देतें हैं. वैसे ये आरोप नए नहीं हैं, आम कांग्रेसी कार्यकर्ता मात्र प्रयोग की वस्तु है, जिसे कांग्रेसी दिग्गज अपने स्वार्थों के लिए प्रयोग करते रहे हैं. पहली बार किसी ने खुल कर ये कहने का साहस किया है. लेकिन इस सर्कस के नटों को नैतिकता के ढोल पर नचाना किसी के बूते की बात नहीं है. राहुल की कार्पोरेट सोच भी नहीं चली........... चाटुकारों की पार्टी बन गयी है कांग्रेस........... जनता परेशान.......... क्या फिर अज्ञातवास में जायेगी?

पिछले कुछ सालों में जब से राहुल सक्रिय हुए हैं पार्टी के अंदरूनी हालत काफी काफी पतले हो गए हैं दरअसल राहुल की कार्पोरेट सोच पार्टी के लिए ज्यादा घातक साबित हो रही है. मनमोहन सिंह की जिन खूबियों को भुना कांग्रेस सत्ता में आयी थी वो भी उलट पड़ी हैं. जाने-माने अर्थशास्त्री का अर्थशास्त्र घोटालों में डूब गया, और उदारीकरण की सोच के चलते घोटालेबाजों को लेकर भी उदार हो गए, अब कहाँ गिने जहां घोटाले ना हुए हों. उसके बाद भी कांग्रेसी शुचिता की बात करते थकते नहीं हैं. मणिशंकर की ये टिपण्णी अब क्या गुल खिलायेगी खुदा जाने लेकिन इस देश की जनता को सर्कस के इस खेल को समझना होगा. सर्कस में रिंग मास्टर बन कर नटों को काबू करना ही होगा. 
आलेख: आशुतोष पाण्डेय 
प्रस्तुति: सुषमा पाण्डेय "निहारिका"