शुक्रवार, 11 जून 2010

मैं चुप हूँ कि मेरा कोई नहीं मरा............

भोपाल  गैस कांड भले ही कौन भूल पायेगा. १५००० से ज्यादा लोगों की मौत और फिर २६ साल के इन्तजार के बाद दोषियों को मात्र दो साल की सजा. माननीय कोर्ट ने तो साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला सुनाया होगा. लेकिन अफ़सोस तो उन लोगों पर किया जाना चाहिए जिन्होंने ऐसे साक्ष्य पेश किये की फैसला ऐसा मिला. पर अब क्या वो लोग जिनके परिवार उजड़ गए कोर्ट के फैसले का सम्मान कर पाएंगे. इसलिए तो कोर्ट के फैसले पर लोगों में तीखी प्रतिक्रिया मिली. लेकिन क्या सारा देश उन लोगों के साथ खड़ा था?
कुछ लोग जरूर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकेंगें. सवाल तो वहीं का वहीं रहेगा. आखिर हमारी संवेदनाएं तब ही क्यों जाग्रत होतीं हैं जब हम खुद शिकार होतें हैं.
क्या सारे देश को एक पल के लिए ही सही इस त्रादसी से त्रस्त लोगों के साथ बोलना नहीं चाहिए था? आपकी ये चुप्पी समझ नहीं आती है. खैर किया भी क्या जा सकता है क्योंकि आपके साथ तो कुछ बीता ही नहीं. इन्तजार  कीजिये जब आप भी ऐसी ही त्रासदियों के शिकार हों और अकेले खड़ें हों? मेरी सहानुभूति सिर्फ आप लोगों से है जो चुप हैं.

(आशुतोष पाण्डेय)

1 टिप्पणी:

अजय कुमार झा ने कहा…

ओह आपने लेबल में लिखा था खोज खबर ..मुझे न खोज दिखाई दी न खबर ..आप जरा विस्तार से लिखते तो और प्रभावित करती बात । इसमें कोई संदेह नहीं कि भोपाल गैस कांड के बाद जो कुछ हुआ या अब भी हो रहा है वो देश का काला अध्याय है । लेकिन इसके लिए वे लोग किस तरह से दोषी हो गए जो आज घरों से निकल कर अन्ना की लडाई में शामिल हो गए । दूसरों पर प्रश्न चिन्ह खडा करने से पहले अपने प्रयास देखने चाहिए कि हमने खुद देश के लिए क्या किया ? उस समस्या के लिए क्या किया जिसके लिए हम दूसरों से आगे आकर लडने की अपेक्षा कर रहे हैं । आम आदमी जैसा आपके भीतर रहता है मेरे भीतर भी रहता है ...और वो अलग नहीं है इस बात को समझिएगा दोस्त ...लडाई को एक करिए बांटिए मत ..। शुभकामनाएं