शनिवार, 29 नवंबर 2008

हार गया आतंक, भारत जीत गया




२६ नवंबर २००८, मुंबई आतंकवाद का कहर धमाके, मौत, खौफ के बीच आख़िर हम जीत गए। वे हार गए हमारी हिम्मत से। चंद डरपोक लोगों ने कोशिश की भारत को तोड़ने की। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे, हम सारे देशवासी एक साथ हैं। जो हमसे टकराएगा उसे हम नेस्तनाबूद कर देंगे। हम चुप हैं इसका मतलब ये नहीं की हम डरते हैं। आज समय आ गया है जब की सारा देश एक आवाज से ये कहे बस बहुत हो गया। अब बस करो नहीं तो मिटा दिए जाओगे। हमारी पुलिस, सेना, ओर कमांडों ने साबित कर दिखाया की वे हर आतंक खात्मा करने का जज्बा रखतें हैं। सारे देश की ओर से सलाम हमारे जाबाजों को। जो शहीद हुये हैं, उनकी शहादत बेकार नहीं जायेगी। हर भारतीय अब लडेगा, इस आतंक से। हम सब अपनी सरकार के साथ खड़े हैं। सरकार को इनसाईट स्टोरी का संदेश, हम काम करेंगे इस ब्लॉग मैगजीन के जरिये अपने देश की अखंडता की रक्षा की।
(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मोटापे के लक्षण

एक शोध के अनुसार गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से भ्रूण के मस्तिष्क में बदलाव आते हैं जिससे बच्चे की ज़िंदगी की शुरूआत में ही ज़्यादा खाने और मोटापे के लक्षण विकसित हो जाते हैं.
चूहों पर किए गए शोध बताते हैं कि जो बच्चे ऐसी माँओं से पैदा होते हैं जो ज़्यादा वसायुक्त भोजन करती हैं, उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं ज़्यादा भूख लगाने वाली प्रोटीन का उत्पादन करती हैं.
रॉकफ़ैलर यूनिवर्सिटी की टीम का कहना है कि ये खोज यह बताने में मदद करती है कि क्यों पिछले कुछ वर्षों में मोटे चूहे बढ़ते जा रहे हैं?
इस अध्ययन के परिणाम न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। वयस्क जानवरों पर किए पिछले शोध बताते हैं कि ट्राइग्लिसरॉयड नाम के वसा कण जब रक्त में पहुँचते हैं तो वे मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टॉयड नाम की प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो भूख बढ़ाते हैं। ताज़ा अध्ययन संकेत देते हैं कि माँ के भोजन के माध्यम से ट्राइग्लिसरॉयड पहुँचने से विकसित हो रहे भ्रूण के मस्तिष्क पर भी वही असर होता है और जिसका असर अगली पीढ़ी की पूरी ज़िंदगी पर पड़ता है.
वैज्ञानिकों ने दो सप्ताह तक चूहों के ऐसे बच्चों की तुलना की जिनकी माँओं ने ज़्यादा वसायुक्त भोजन किया और जिनकी माँओं ने साधारण भोजन किया था। उन्होंने पाया कि ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने वाली माँओं के बच्चों ने ज़्यादा खाया और पूरी ज़िंदगी उनका वजन ज़्यादा रहा.
साथ ही उनमें साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों के मुक़ाबले काफ़ी पहले वयस्कता के लक्षण भी देखे गए।
जन्म के वक्त उनके रक्त में ट्राइग्लिसरॉयड का स्तर भी ज़्यादा पाया गया और वयस्क होने के बाद उनके मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन भी ज़्यादा हुआ।
इसकी ज़्यादा विस्तृत समीक्षा बताती है कि जन्म से पहले भी वसायुक्त भोजन करने वाले चूहे के बच्चे में ऐसी मस्तिष्क कोशिकाओं की संख्या ज़्यादा थी जो ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन करती थीं और ऐसा पूरी ज़िंदगी होता था।
उनकी माँओं का वसायुक्त भोजन इन कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ाने वाला प्रतीत होता है.
दूसरी ओर इसके विपरीत साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों में ये कोशिकाएं बहुत कम नज़र आईं और वे भी जन्म के काफ़ी समय बाद दिखीं।
प्रमुख शोधार्थी डॉ सारा लीबोविज़ ने कहा, "हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि गर्भावस्था के दौरान माँ के रक्त की वसा कोशिकाएं भ्रूण में जन्म के बाद ज़्यादा खाने के लक्षण और वजन बढ़ाना भी तय करती हैं।"
शोधार्थी संकेत देते हैं कि भ्रूण का मस्तिष्क इस तरह प्रोग्राम हो जाता है कि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी माँ की तरह ही भोजन करें। वे मानते हैं कि मानव में भी ऐसा ही हो सकता है। डॉ लीबोविज़ कहती हैं, " हम ही अपने बच्चों को मोटापे के लिए प्रोग्राम करते हैं।"
चेरिटी वेट कंसर्न के मेडिकल डायरेक्टर डॉ इयान कैंपबैल करती हैं, " यह तो मालूम है कि गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से बच्चे में भी ज़्यादा वसायुक्त खाने की इच्छा आती है लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है।"
उन्होंने कहा, " स्पष्ट है कि हमारी आदतें सिर्फ़ अपने भोजन पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि काफ़ी हद तक हमारी आदतें अपनी माँ के भोजन पर आधारित हैं।"
उनका कहना है कि अपने बच्चे को स्वस्थ भोजन कराने का समय गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है।

आशुतोष पाण्डेय

बुधवार, 12 नवंबर 2008

जीवन जीने के मंत्र

  • मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति, उसके द्बारा चाहे गए परिणामों को प्राप्त करना है।
  • आप जैसा चाहेंगे पा लेंगे।
  • आप जैसा बनना चाहेंगे बन जायेंगे।
  • सफलता की सीढ़ी सदा ऊपर की ओर जाती है।

(आशुतोष पाण्डेय)

बुधवार, 5 नवंबर 2008

इतिहास बदलाव और बदलने का नाम है

इतिहास बदलाव और बदलने का नाम है। अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास को धता देते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा अमरीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए हैं। उन्हें 52 प्रतिशत वोट मिले जबकि रिपब्लिकन जॉन मैक्केन को 47 प्रतिशत मत मिले हैं। मतदान में लगभग 11 करोड़ अमरीकियों ने भाग लिया है। जातीय संघर्ष के इतिहास के गवाह रहे अमेरिका के वह पहले अश्वेत राष्ट्रपति है जो कभी बहुत कम आमदनी में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया करते थे। आख़िरकार ओबामा ने वो कर दिखाया जो वे अक्सर खा करते थे की एक दिन युगांतरकारी परिवर्तन होगा। उनकी जीत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि 45 साल पहले मानवाधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग ने समानता का जो सपना देखा था वह आज सच हो गया। आमतौर पर भारत समर्थक माने जाने वाले 47 वर्षीय ओबामा अपने नाम और जाति के कारण जानते थे कि व्हाइट हाउस तक पहुंचने का उनका सफर कितना मुश्किल होगा। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यह एक युगांतकारी परिवर्तन होगा। केन्याई पिता और श्वेत अमेरिकी माता की संतान ओबामा ने यह कर दिखाया। अमेरिकी जनता को उनमें वह सब नजर आया जिसकी उसे इस कठिन वक्त में दरकार है। हारवर्ड में पढे़ ओबामा ने 21 माह के कठिन प्रचार अभियान के बाद दुनिया का सबसे ताकतवर ओहदा हासिल किया। पार्टी का उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने पहले अपनी ही पार्टी की हिलेरी क्लिंटन और फिर वियतनाम युद्ध के सेना नायक जान मैक्केन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका में एक बडे़ बदलाव के संकेत के साथ व्हाइट हाउस की दौड़ में बाजी मार ली। ओबामा की जीत ने अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। देश सदियों जातीय वैमनस्यता का कोपभाजन बना रहा। आज से 200 साल पहले जिस सामाजिक बुराई का अंत हुआ उसकी सुखद अनुभूति का भी यह जीत प्रतीक है। शिकागो केएक सामुदायिक कार्यकर्ता ओबामा के लिए व्हाइट हाउस की पहली पायदान इलिओनिस की सीनेट रही। सन् 1996 में इस जीत से लोकप्रिय हुए ओबामा सन् 2004 में संघीय सीनेट तक जा पहुंचे। अपने सहज व्यक्तित्व से ओबामा जल्द मीडिया की सुर्खियां बनने लगे। उन्होंने इसे बहुआयामी स्वरूप दिया और लेखन में जल्द बुलंदी हासिल की। उनकी दो पुस्तकें द आडेसिटी ऑफ होप तथा ड्रीम फ्राम माई फादर बेहद सराही गई। आठ साल से सत्ता के शीर्ष पद से दूर डेमोक्रेट पार्टी में ओबामा ने एक नई जान फूंक दी। उनका नामांकन वाकई पार्टी के लिए जादुई साबित हुआ।

महत्वपूर्ण अमरीकी प्रांतों - फ़्लोरिडा, ओहायो और पेन्नसिलवेनिया में जीत के बाद ओबामा ने आसानी से 538 इलेक्टॉरल कॉलेज मतों में से 270 का आँकड़ा पार कर लिया। अभी चुनावी नतीजों के रुझान आ ही रहे थे कि मैक्केन ने हार स्वीकार कर ली। इसके बाद अपने भावुक समर्थकों को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, "अमरीकी लोगों ने घोषणा की है कि बदलाव का समय आ गया है। अमरीका एक शताब्दी में सबसे गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है मैं सभी अमरीकियों को साथ लेकर चलना चाहता हूँ - उनकों भी जिन्होंने मेरे लिए वोट नहीं डाला....". ओबामा ने कहा, "ये नेतृत्व का एक नया सवेरा है. जो लोग दुनिया को ध्वस्त करना चाहते हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूँ कि हम तुम्हें हराएँगे. जो लोग सुरक्षा और शांति चाहते हैं, हम उनकी मदद करेंगे..."

इनसाईट स्टोरी के लिए ये विशेष आलेख सम्पादक आशुतोष पाण्डेय ने अपने तमाम सहयोगियों के साथ मिलकर तैयार किया है।

शनिवार, 1 नवंबर 2008

शिक्षा मौलिक अधिकार

भारत सरकार ने लंबे समय से लटके शिक्षा को मौलिक अधिकार प्रदान करने वाले विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। इस विधेयक में छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा देने का प्रावधान रखा गया है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने नई दिल्ली में पत्रकारों को मंत्रिमंडल के फ़ैसले की जानकारी दी। मंत्रिमंडल की बैठक गुरुवार रात को हुई थी। उन्होंने बताया, "कई स्तर पर मंत्रियों के समूह ने इस विधेयक पर विचार-विमर्श किया। अब मंत्रिमंडल ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दे दी है।" इसके बाद अब यह केंद्र और राज्य सरकारों का क़ानूनी दायित्व होगा कि वे छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दें। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय चुनाव आयोग से सलाह-मशविरा करने के बाद विधेयक का मसौदा जारी कर देगा.
मंत्रियों के समूह को यह काम सौंपा गया था कि वे इस विधेयक की समीक्षा करें. इस महीने के शुरू में मंत्रियों के समूह ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दे दी थी. मंत्रियों के समूह ने किसी भी विवादित प्रावधान को हटाने की कोशिश नहीं की. इनमें वो प्रावधान भी शामिल है जिसमें कहा गया था कि प्राइवेट स्कूलों में शुरुआती स्तर पर विपन्न बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण रहेगा।
विधेयक में यह भी प्रावधान है जाँच प्रक्रिया के नाम पर बच्चों या उनके माता-पिता से ना तो साक्षात्कार होगा, न डोनेशन देना होगा औ न ही कैपिटेशन फ़ीस ही लगेगा.
शिक्षा के अधिकार वाला विधेयक से ही संविधान के 86वाँ संशोधन को अधिसूचित किया जा सकेगा। इस संशोधन के तहत छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है. संसद ने इसे दिसंबर 2002 में पास किया था।

आशुतोष पाण्डेय