बुधवार, 30 मई 2012

खुदा जाने क्या होगा बहुगुणा का

शह और मात के खेल में कब किसका मोहरा पिट जाए कहा नहीं जा सकता है, कमोबेश यही कुछ आजकल उत्तराखंड में चल रहा है. मुख्यमंत्री बहुगुणा के लिए सितारगंज के भाजपा विधायक किरण मंडल से इस्तीफा दिला कर कांग्रेस ने सीट तो खाली करा ली लेकिन साथ ही मौक़ापरस्ती और जोड़-तोड़ की राजनिती को सिरपरस्ती करने का मौक़ा दे दिया. चूंकि किरण मंडल बंगाली समुदाय से आते हैं, जिनका प्रतिशत इस सीट पर २५ से भी ज्यादा है... इसी के चलते भाजपा ने उन्हें टिकट भी दिया था. सरकार ने यहाँ बंगालियों को जमीन पर भूमिधरी हक देने की बात कह कर जनहित में किरण मंडल के इस्तीफे को भुनाने की कोशिश की जरूर है लेकिन      इस सीट को खोने देने के हक में बीजेपी भी नहीं है... और पार्टी हाई कमान खुद इस सीट पर तवज्जो ले रहा है, आगामी तीन जून के मुख्यमंत्री के द्वारा खुद सितारगंज में ही अपने इस सीट से चुनाव लड़ने का खुलासा करने की योजना है. अभी तो शह और मात के इस खेल में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है लेकिन कब किसका कौन सा मोहरा कब और कौन पीट दे ये कहना राजनीती में संभव नहीं दिखता है. भाजपा एक बार फिर इस सीट पर बंगाली उम्मीदवार को उतार कर बहुगुणा की मुसीबतों को कई गुना बढ़ा सकती है और खुद कांग्रेस का एक गुट भी बहुगुणा के खिलाफ लामबंद हो सकता है. यहाँ एक बाहरी व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारने को भी मुद्दा बनाया जा सकता है. ऐसा कर मुख्यमंत्री ना बन पाने की खुर्नस भी निकाली जा सकती है. शायद कांग्रेस का ये गुट बसपा और समाजवादी उम्मीदवार को भी इस सीट पर ना उतरने के लिए तैयार कर सकता है. अगर ऐसा हो गया तो बहुगुणा खुद के बुने जाल में फंस सकतें हैं.
(आशुतोष पाण्डेय) 


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