मनमोहन सिंह अब वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से छुटकारा चाहतें हैं. वे चाहते हैं कि प्रणव बाबू का नाम जल्द ही यूपीए के द्वारा राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाय. आर्थिक मोर्चों पर हर जगह विफल रहने वाले प्रणव मुखर्जी के खिलाफ सीधे कोई कदम उठाना मनमोहन सिंह के लिए संभव नहीं दिखता है. भले ही कांग्रेस अगला चुनाव मनमोहन के नेतृत्व में लड़ने का लाख दावा करें लेकिन २०१४ में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने वाले नहीं हैं, चाहे कांग्रेस की सरकार ही क्यों ना बने. अपने बचे हुए कार्यकाल के लिए मनमोहन सिंह खुद वित्त मंत्रालय की कमान संभालना चाहते हैं और आर्थिक असफलताओं का दंश झेल रही सरकार की इमेज सुधारना चाह रहें हैं. वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है. पीएमओ के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अब इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल के अध्यक्ष सी रंगराजन को वित्त मंत्रालय में मुख्य भूमिका देना चाह रहें हैं. ये खुलासा अंग्रेजी समाचार पत्र डीएनए की एक खबर में किया गया है. मनमोहन सिंह अगले दो सालों में कुछ कठिन और बड़े आर्थिक फैसले लेकर पुन: मनमोहनी अर्थशास्त्र की उपादेयता सिद्ध करना चाहते हैं. देखने वाली बात है कि पिछले कुछ समय से पीएमओ और वित्त मंत्रालय के बीच दूरियां बढनें की खबरें आम रहीं हैं क्योंकि एक वित्त मंत्री के रूप में प्रणव हर मोर्चे पर विफल ही रहें हैं लेकिन यूपीए के अंदर प्रणव का कद देख प्रधानमंत्री खुद किसी सार्वजनिक मंच पर उनका विरोध नहीं कर पा रहें हैं. अब वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए वे रंगराजन को अपना जरनल बनाना चाहतें हैं. लेकिन यूपीए के घटक दलों के साथ नितीगत तालमेलों को देखते हुए तो ये संभव नहीं लगता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उठाये गए ठोस क़दमों का समर्थन तृणमूल कांग्रेस या अन्य सहयोगी दल करेंगें. कौन बनता है खबर? कौन होता ख़बरों के केंद्र में? क्या बिकती हैं खबरें? घोटाले बनाए भी जातें हैं? ख़बरों का सच, ख़बरों का झूठ, इनसाईट स्टोरी के आईने में. आप बताएं कहाँ क्या हो रहा है? कैरियर, स्वास्थ्य, विज्ञान, फिल्म ....... और बहुत कुछ आपके लिए.
शनिवार, 2 जून 2012
मनमोहन कहें अब बख्श दो प्रणव
मनमोहन सिंह अब वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से छुटकारा चाहतें हैं. वे चाहते हैं कि प्रणव बाबू का नाम जल्द ही यूपीए के द्वारा राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाय. आर्थिक मोर्चों पर हर जगह विफल रहने वाले प्रणव मुखर्जी के खिलाफ सीधे कोई कदम उठाना मनमोहन सिंह के लिए संभव नहीं दिखता है. भले ही कांग्रेस अगला चुनाव मनमोहन के नेतृत्व में लड़ने का लाख दावा करें लेकिन २०१४ में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने वाले नहीं हैं, चाहे कांग्रेस की सरकार ही क्यों ना बने. अपने बचे हुए कार्यकाल के लिए मनमोहन सिंह खुद वित्त मंत्रालय की कमान संभालना चाहते हैं और आर्थिक असफलताओं का दंश झेल रही सरकार की इमेज सुधारना चाह रहें हैं. वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है. पीएमओ के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अब इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल के अध्यक्ष सी रंगराजन को वित्त मंत्रालय में मुख्य भूमिका देना चाह रहें हैं. ये खुलासा अंग्रेजी समाचार पत्र डीएनए की एक खबर में किया गया है. मनमोहन सिंह अगले दो सालों में कुछ कठिन और बड़े आर्थिक फैसले लेकर पुन: मनमोहनी अर्थशास्त्र की उपादेयता सिद्ध करना चाहते हैं. देखने वाली बात है कि पिछले कुछ समय से पीएमओ और वित्त मंत्रालय के बीच दूरियां बढनें की खबरें आम रहीं हैं क्योंकि एक वित्त मंत्री के रूप में प्रणव हर मोर्चे पर विफल ही रहें हैं लेकिन यूपीए के अंदर प्रणव का कद देख प्रधानमंत्री खुद किसी सार्वजनिक मंच पर उनका विरोध नहीं कर पा रहें हैं. अब वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए वे रंगराजन को अपना जरनल बनाना चाहतें हैं. लेकिन यूपीए के घटक दलों के साथ नितीगत तालमेलों को देखते हुए तो ये संभव नहीं लगता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उठाये गए ठोस क़दमों का समर्थन तृणमूल कांग्रेस या अन्य सहयोगी दल करेंगें.
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