नाम सिविल सोसायटी, काम लोकतंत्र और संसद का मजाक, कभी संसदीय व्यवस्था को गाली तो कभी देश के संघीय ढ़ाचे के खिलाफ परिलक्षित मंशा. ये है अन्ना की टीम जो किसी भी गाली का प्रयोग कभी भी कहीं भी कभी भी कहीं भी कर ले. प्रधानमंत्री को शिखंडी कह कर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का खुला मजाक उड़ाना फिर भी सिविल कहलवाना ये तो अन्ना और टीम का शगल ही लगता है, जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की टीम लड़ रही है, उसके लिए वो जनता के बीच जाने से क्यों गुरेज कर रही है... इस देश में संसदीय व्यवस्था है और संसद ही सर्वोच्च भी है. संसद में चुने जाने वाले वहाँ खुद नहीं पहुंचे हैं इस देश की जनता ने उन्हें वहाँ भेजा है. संसद को और उसके लोकतांत्रिक ढ़ाचे की यूं मजाक बनाना कहाँ तक उचित है... अन्ना जिस देश की जनता को लेकर ये तमाम आंदोलन खड़े कर रही है उसकी क्षमताओं पर विश्वास क्यों नहीं कर रही है. संसद और उसके नुमायांदों का फैसला जनता खुद कर लेगी और इससे पहले कई मौकों पर किया भी है. दरअसल अन्ना और उनके साथी राजनितिक लिप्सा के शिकार हैं और जनता के बीच सीधे जाने से डर कर देश को अस्थिर कर कमोबेश पाकिस्तान के जैसे हालात यहाँ बनाना चाहतें हैं. अगर ऐसा नहीं है तो टीम अन्ना खुद संसद में अपना बहुमत ले और फिर खुद को साबित करे. ये सच है कि सिविल सोसायटी के किसी भी सदस्य की संसद तक पहुँच जायें ये हिम्मत नहीं दिखती है. खैर अंतिम फैसला तो जनता की अदालत में ही होगा लेकिन... क्या आज संसद की मर्यादा को भंग ना होनें दे ये जिम्मेदारी हमारी नहीं है... इस देश की जनता को सोचना होगा हम आज आदम युग में नहीं जी रहें हैं ये सभ्यता का युग है और यहाँ शुचिता बरकरार रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है. टीम अन्ना के बयानों से आज हमारी संसदीय व्यवस्था जिस पर समूचे विश्व में हम छाती फूला के चलते थे आज लांछित हुयी है.
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