
कौन बनता है खबर? कौन होता ख़बरों के केंद्र में? क्या बिकती हैं खबरें? घोटाले बनाए भी जातें हैं? ख़बरों का सच, ख़बरों का झूठ, इनसाईट स्टोरी के आईने में. आप बताएं कहाँ क्या हो रहा है? कैरियर, स्वास्थ्य, विज्ञान, फिल्म ....... और बहुत कुछ आपके लिए.
शनिवार, 30 जुलाई 2011
हिन्दुओं को एकजुट होना होगा: सुब्रहमन्यम स्वामी

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
देश रंगा हिना के रंग
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पाक विदेश मंत्री हिना रब्बानी |
हिना हमारी मेहमान हैं उनके साथ बदसलूकी ना की जाए लेकिन कम से ये तो कह दो की बस अब बर्दाश्त नहीं होता है. अगर अब भी तुम्हारी कारगुजारियां नहीं रुकेंगी तो हम भी नहीं रुकेंगे. लेकिन कौन कहे? सत्ता में जो बैठे हैं उनके होश तो पहले ही उड़ें हैं और विपक्ष इतना कमजोर है की अपने ही एक मुख्यमंत्री को हटाने के लिए उसे पापड बेलने पड़ रहें हैं. ऐसे में तो ये देश लगता ही हिना के हवाले हैं. कहीं ये हिना की चमक कारगिल-२ का आगाज ना हो. दुल्हन के हाथ में महेंदी तो अच्छी रची लेकिन अगले दिन ही रातों रात अगर दुल्हन घर को लूट प्रेमी के साथ चम्पत हो गई तो कोई क्या कर लेगा? अब बानगी इस देश की जनता की अपनों से तो लडती है, अन्ना की टीम, रामदेव की टीम, शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद् और अपने मोदी भाई ये सब यहाँ तो लड़ लेते हैं लेकिन विदेशी के आगाज को नजरअंदाज कर देते हैं. इसी कारण भारत पहले भी गुलाम रहा है और सोनिया गांधी जानती हैं भारत के इस चरित्र को इसीलिये बिंदास राज किये जा रहीं हैं.
(आशुतोष पाण्डेय)
सम्पादक इनसाईट स्टोरी
सोमवार, 25 जुलाई 2011
कांग्रेस सर्कस और उसके नट
अब कांग्रेस के दिन गुजर चुके हैं, घोटालों की जद में जकड़ी पार्टी के लिए उसी के सिपहसालार मुश्किलें खड़ी कर देतें हैं.ताजा मुश्किल पार्टी के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर की टिपण्णी से आयी है, जिसमें वो कांग्रेस को सर्कस कह रहे हैं, और काग्रेसियों को नट. चलो मणिशंकर जी को भले बुरे की पहचान तो हुयी, लेकिन जिस अवसर पर ये बात कही उस अवसर पर वे खुद सबसे बड़े नट दिग्विजय के साथ राशिद किदवई की किताब '२४ अकबर रोड' का लोकार्पण कर रहे थे. उन्होंने तो यहाँ तक कह डाला की सोनिया गांधी और अहमद पटेल का निवास कांग्रेस मुख्यालय से ज्यादा पावरफुल है वहां तक विशेष प्रभावशाली ही पहुच पातें हैं. अब देखना ये है इसी कार्यक्रम में उनके साथ आये दिग्गी बाबू भी इस बात पर हामी भरते हैं? या फिर मणिशंकर की व्यक्तिगत सोच कह कर पल्ला झाड देतें हैं. वैसे ये आरोप नए नहीं हैं, आम कांग्रेसी कार्यकर्ता मात्र प्रयोग की वस्तु है, जिसे कांग्रेसी दिग्गज अपने स्वार्थों के लिए प्रयोग करते रहे हैं. पहली बार किसी ने खुल कर ये कहने का साहस किया है. लेकिन इस सर्कस के नटों को नैतिकता के ढोल पर नचाना किसी के बूते की बात नहीं है.
पिछले कुछ सालों में जब से राहुल सक्रिय हुए हैं पार्टी के अंदरूनी हालत काफी काफी पतले हो गए हैं दरअसल राहुल की कार्पोरेट सोच पार्टी के लिए ज्यादा घातक साबित हो रही है. मनमोहन सिंह की जिन खूबियों को भुना कांग्रेस सत्ता में आयी थी वो भी उलट पड़ी हैं. जाने-माने अर्थशास्त्री का अर्थशास्त्र घोटालों में डूब गया, और उदारीकरण की सोच के चलते घोटालेबाजों को लेकर भी उदार हो गए, अब कहाँ गिने जहां घोटाले ना हुए हों. उसके बाद भी कांग्रेसी शुचिता की बात करते थकते नहीं हैं. मणिशंकर की ये टिपण्णी अब क्या गुल खिलायेगी खुदा जाने लेकिन इस देश की जनता को सर्कस के इस खेल को समझना होगा. सर्कस में रिंग मास्टर बन कर नटों को काबू करना ही होगा.
पिछले कुछ सालों में जब से राहुल सक्रिय हुए हैं पार्टी के अंदरूनी हालत काफी काफी पतले हो गए हैं दरअसल राहुल की कार्पोरेट सोच पार्टी के लिए ज्यादा घातक साबित हो रही है. मनमोहन सिंह की जिन खूबियों को भुना कांग्रेस सत्ता में आयी थी वो भी उलट पड़ी हैं. जाने-माने अर्थशास्त्री का अर्थशास्त्र घोटालों में डूब गया, और उदारीकरण की सोच के चलते घोटालेबाजों को लेकर भी उदार हो गए, अब कहाँ गिने जहां घोटाले ना हुए हों. उसके बाद भी कांग्रेसी शुचिता की बात करते थकते नहीं हैं. मणिशंकर की ये टिपण्णी अब क्या गुल खिलायेगी खुदा जाने लेकिन इस देश की जनता को सर्कस के इस खेल को समझना होगा. सर्कस में रिंग मास्टर बन कर नटों को काबू करना ही होगा.
आलेख: आशुतोष पाण्डेय
प्रस्तुति: सुषमा पाण्डेय "निहारिका"
रविवार, 24 जुलाई 2011
इंजीनियरिंग कालेजों का काला सच
देश में जहां आई आई टी की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठ रहें हैं वहीं दूसरी ओर प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों की भरमार देखने को मिल रही है, जब आई आई टी अपनी गुणवत्ता के मानक पर खरी नहीं उतर रही है तो इन इंजीनियरिंग कालेजों का क्या कहना? एक समय महानगरों तक सीमित ये प्राइवेट कालेज शहरों और कस्बों तक में खुल चुके हैं. विज्ञापन में सबसे उत्कृष्ट होने का दावा करने वाले कालेजों के पास एसी क्लास रूम और वाई फाई कनेक्टिविटी भले ही हो लेकिन अगर शैक्षणिक माहौल की बात करें तो ये शिफर नजर आतें हैं, इन कालेजों में लैब का तो सर्वथा अभाव ही दिखता है. तो फिर कैसे चल रहें हैं ये कालेज? दरअसल इन कालेजों में एडमिशन लेने वाले काफी बाद की रैंकिंग वाले वो छात्र हैं जो सरकारी कालेजों में प्रवेश नहीं ले पाए और वे इसे आशीर्वाद मान लेतें हैं. मनचाही फीस वसूलने वाले इन संस्थानों में फैकल्टी की भारी कमी है, और यू जी सी के मानकों को तांक पर रख मात्र बी. टेक.या एम. टेक योग्यता वाले अध्यापक इनका काम चला रहें हैं. इसके अलावा कुछ विजिटिंग फैकल्टी के नाम पर ये छात्रों को बेवकूफ बना ही लेते हैं और ये विजिटिंग भी महज साल में एक या दो क्लास ही लेतीं हैं. इस प्रकार इंजीनियर बनाने के ये कारखाने चल पड़ें हैं. अब सवाल ये है की ये तैयार इंजीनियरों की फसल कैसी होगी? और ये देश के विकास में क्या योगदान कर पायेंगे? ये कुछ ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनका उत्तर भले ही हमारी व्यवस्था के पास ना हो लेकिन इन्हें नजर अंदाज कर पाना भी इतना आसान नहीं होगा. कल जब ये इंजीनियर देश की मुख्या धारा मेंशामिल होंगे तो क्या करेंगे. अगर इनके बनाए पुल गिरने लगे, पटरियां उखड़ने लगें और घर जान लेने लगें तो... दोष किसके सर मढ़ा जाएगा. इस व्यवस्था को या फिर जनता की किस्मत को जो इसकी शिकार बनेगी.
शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
सभ्य समाज का सच
हल्द्वानी एक सेक्स रैकेट के खुलासे ने सभ्य समाज का नग्न रूप प्रस्तुत किया है. पिछले कुछ सालों में हल्द्वानी की फिजा इस कदर बिगड़ी है की ये अपराध नगरी के रूप में जाने जानी लगी है. भू माफियाओं और रेत माफियाओं के लिए मशहूर हल्द्वानी अब अंडरवर्ल्ड के कार्यवाही और काल गर्ल सप्लाई केन्द्रों के रूप में विकसित हो रही है. ये एक नया शगल नहीं है, दरअसल ये सिलसिला कई सालों से चल रहा है, कालगर्ल सप्लाई का और आश्चर्यजनक रूप से इसमें पत्रकारों और पुलिस की भूमिका भी इस कृत्य को और शर्मनाक बनाती है. हल्द्वानी के मुखानी कालोनी में पकडे गए सेक्स रैकेट जिसमें हल्द्वानी के अतिरिक्त दिल्ली और रामनगर की लडकियां भी शामिल हैं इस कड़ी का एक नया शगूफा है, पिछले कुछ सालों से हल्द्वानी में सेक्स रैकेट खूब पनप रहा है, इसमें अधिकतर मध्यवर्गीय परिवारों से सबंधित महिलायें हैं, बाकायदा दलालों के जरिये सुनियोजित नेटवर्क के जरिये इस धंधे को किया जा रहा है, इस बार पकड़ी गयी स्कैंडल सरगना बसन्ती बिष्ट पहले भी अपनी बेटी के साथ जेल जा चुकी है, शानदार एसी और सभी सुविधाओं से लैस हल्द्वानी की पाश कालोनी में रहने वाली बसन्ती ने आरोप लगाया है की एक स्थानीय पत्रकार और पुलिस अधिकारी को वो बाकायदा पैसा देती रहीं हैं... हल्द्वानी के पत्रकारों पर ऐसे आरोप पहले भी कई बार लग चुके हैं, लेकिन कभी कोई नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है, आम आदमी की पोल खोलने वाले मीडिया का रूख ही ऐसा हो तो क्या किया जाय? असल में मीडिया भी इस बारे में ईमानदारी से काम नहीं कर रहा है. जहां सेक्स रैकेट की संचालिका का नाम तो सार्वजनिक कर दिया लेकिन पकड़ी गयी लड़कियों का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है और नहीं इससे जुड़े ग्राहकों का नाम पता किसी को मालूम पड़ता है और लचर क़ानून के चलते जल्द ही सब आजाद हो जाते हैं. वैसे तो छोटी छोटी बातों पर सड़कों में आने वाली जनता भी इनका मूक समर्थन करती दिखती हैं. तभी तो कई बार पकडे जाने के बाद भी इनका काम बदस्तूर जारी रहता है और सच तो यह है की इन्हें एक पहचान मिल जाती है.
(इनसाईट स्टोरी रोमिंग संवाददाता)
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