गुरुवार, 9 जनवरी 2014

केजरी सर-सर-कार ये कैसी सरकार है?


Get your own Wavy Scroller


दिल्ली को काफी ना-नुकर के बाद एक आधी अधूरी सरकार तो मिल गयी लेकिन लगता है ये एक अपरिपक्व सरकार है, जिसका कोई एक केंद्र न हो ये बहुकेन्द्रित सरकार है. ये सरकार किसी नियम या कायदे से बंधी नहीं दिख रही है. तीन फैसलों के अलावा इस सरकार के पास बताने को क्या है? ये तो खुद इन्हें ही नहीं पता होगा. बिजली और पानी के लिए तो सब्सिडी की सीढ़ी चढ़ केजरीवाल ने धमाल कर दिया. भ्रष्टाचार के लिए बनी हैल्प लाइन पर शिकायत नहीं सुनी जायेगी बल्कि स्टिंग आपरेशन करने सिखाये जायेंगें. इसके अलावा पार्टी के बड़े नेता कश्मीर के बारे में एक दुखद रवैया रखते हैं. इसे सरकार ना कह सिर्फ एक दवाब समूह का शासन कहा जाय तो अच्छा होगा. क्योंकि इसके राज में जो भी हो रहा है वह सिर्फ आम आदमी पार्टी के पोर्टल पर दिख रहा है. दिल्ली सरकार के पोर्टल पर कोई भी जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं, इसका सीधा मतलब क्या है इस सरकार को अपने ही सरकारी तन्त्र से परहेज है. सत्ता में आने के बाद भी सरकार शब्द से कट कर क्या साबित करना चाहते है "आप" के लोग. कार्यशैली देखिये जीते-हारे सारे विधायक, मंत्री, वालियेंटर सब कुल मिला कर अफसरों की क्लास लेने में उलझे हैं. कहीं किसी को कुछ करने का मौक़ा ही नहीं दे रहें हैं. ऐसे में दिल्ली का क्या होगा ये सवाल काफी बड़ा है. इसके अलावा लोकसभा की 300 से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर केंद्र में भी सत्ता सुख का आभास लेना अब इसका अगला टार्गेट है. एलीट क्लास की एक बड़ी भीड़ आजकल इस पार्टी के इर्द-गिर्द दिख रही है. बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों को बाय-बाय कर ये लोग पार्टी से जुड़ रहें हैं. कुछ टिकट के जुगाड़ में तो कुछ किसी और जुगाड़ में. ये देश भी बड़ा अजीब है, कभी किसी को अर्श पर ले आता है तो किसी को फर्श पर. अभी आप का समय चल रहा है. लेकिन कहीं जनता का ये मोह अन्तोत्गत्वा जनता को महंगा साबित ना हो. आने वाले लोकसभा चुनावों में "आप" अपना वजूद जाहिर करेगी ये तो तय है और दिल्ली के तख्त की लड़ाई को मजेदार भी बनायेगी. कहीं ऐसा ना कि अभी तक बिखरे तमाम दल एक छतरी के नीचे आ जाएँ और दक्षिण और वामपंथ जैसे शब्दों की खाई भी पट जाए. वैसे केजरीवाल खुद और अपनी पार्टी को आम जनता के साथ जोड़ कर दिखा रहें हैं लेकिन इस देश में जहां एक धर्म और एक जाति के अन्दर ही ना जाने कितने विभाजन हैं वहां ये नारे कितने काम आयेंगें पता नहीं. स्वराज की बात यहाँ कौन नहीं करता... और कौन इसको स्थापित करने के लिए कोशिश करता है ये सवाल भारतीय राजनिती में काफी बड़े हो जाते हैं.


कोई टिप्पणी नहीं: