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दिल्ली विधान सभा चुनाव 70 सीटों पर होने हैं. इन 70 सीटों पर इस बार रोचक मुकाबला होना है. लगभग 1.15 करोड़ मतदाताओं के साथ शीला, हर्षवर्धन और केजरीवाल का भविष्य दांव पर लगा है. इस बार भाजपा मोदी कार्ड खेल रही है और इसी कार्ड के साथ चुनावों में है और कांग्रेस के पास इस बार मुद्दों के नाम पर कुछ भी नहीं है उनके खिलाफ सिर्फ सवाल ही खड़े दिख रहें हैं. विकास और रफ्तार के तमाम दावों के साथ भी कांग्रेस भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दों पर घिरी दिख रही थी, लेकिन मोदी के जासूसी प्रकरण और आम आदमी पार्टी के खिलाफ सरकार मीडिया डाट काम के स्टिंग के बाद कांग्रेस की पतली हालत में थोड़ा सुधार हुआ है. 2008 में मिली 43 सीटों के मुकाबले इस बार कितनी सीटें मिलेंगी कहा नहीं जा सकता है. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी चौथी पारी को लेकर खुद विश्वास नहीं कर पा रहीं हैं. लेकिन भाजपा भी इस बार विजय गोयल को दांव पर तो लगा चुकी है लेकिन हर्षवर्धन के साथ खेला उसका दांव कोई खास कमाल कर सके ये लगता नहीं हैं. "आप" के अरविन्द केजरीवाल भी मुख्यमंत्री की दौड़ में बेतहाशा भाग रहें हैं. केजरीवाल ने राजनिती के मैदान में गजब फील्डिंग सजाई है. अब देखना ये है क्या रन आउट कर कुर्सी कैच कर पाते हैं या नहीं? खुद नयी दिल्ली सीट से शीला दीक्षित के लिए चुनौती पैदा करने वाले भाजपा के विजेंद्र गुप्ता के भी सिरदर्द बन गये हैं, लेकिन इस सीट पर उनके लिए जीतना आसान नहीं है. अभी आप और केजरीवाल को काफी कुछ सीखना बाकी है, सिर्फ आदर्शों की हंडिया से दाल नहीं गलती है. आप जो एक समय एक निर्णायक दौर में था और करीब 20 सीटों में प्रभावित करने की स्थिति में था चुनाव आने तक वे एक से दो सीटों पर सिमटा दिख रहा हैं. मोदी के चोचलें यहाँ पर नहीं चल रहे हैं और विजय जौली के ड्रामा के बाद तो भाजपा की भत पीट रही है. पिछले चुनावों में 23 सीटों पर अटकी भाजपा इस बार 7-8 सीटों पर फायदा उठा सकता है. भाजपा इस बार अगर 30 का आकड़ा छू ले तो भी कांग्रेस कम से कम 30 सीटें लेने की स्थिति में दिख रही है. दो सीटों पर बसपा और एक पर लोकदल को जीत मिलती है तो भी 36 का जादुई आकड़ा जुटा लेना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए काफी कठिन लगता है. 2 से 3 सीटें भी अगर आप को मिलती है तो भी वे किंग मेकर की भूमिका में दिखेंगे. अभी तक तो आप किसी भी पार्टी का समर्थन ना करने की बात कर रही है लेकिन खुद शीला दीक्षित गाहे-बगाहे आप के साथ के साथ गठजोड़ की संभावना व्यक्त कर चुकी हैं और दूसरी ओर आप समर्थक प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को ज्यादा लोकप्रिय उम्मीदवार मान रहें हैं इसका सीधा अर्थ ये है की आने वाले कल में केजरीवाल समर्थकों की दुहाई दे भाजपा का पल्ला थाम सकते हैं. इसमें अन्ना और रामदेव काफी अहम रोल निभा सकते हैं. 4 दिसम्बर को दिल्ली के भविष्य की इबारत ईवीएम में कैद हो जायेगी लेकिन परिमाणों के लिए 9 दिसम्बर का इन्तजार करना ही पड़ेगा.
(आशुतोष पाण्डेय)
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