इस समय दिल्ली में सबसे ज्यादा बैचेन कोई है तो वो हैं कांग्रेसी नेता, जिनके कई मामले ऐसे हैं जिनकी जांच केजरीवाल करा सकते हैं. इसमें कामनवेल्थ घोटाला, शीला सरकार के मंत्रियों के द्वारा पद के दुरूपयोग का मामला और विधायक निधि के साथ कई योजनाओं की जांच की जा सकती है. इसी कारण कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा कांग्रेस के आप को समर्थन का विरोध कर रहा लेकिन कांग्रेस पर इस समय डैमेज कंट्रोल का दवाब ज्यादा है, इस लिए कुछ नेताओं की बलि भी कांग्रेस देने को तैयार है. 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान निर्माण कार्यों में की गई भारी गड़बड़ी की खबरें देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी थी. सुरेश कलमाड़ी तो इस मामले में जेल भी जा चुके हैं. आम आदमी पार्टी इस घोटाले को जोर-शोर से उठाती रही है. अगर आम आदमी पार्टी की सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की जांच शुरू करवाती है, तो शीला सरकार के कई मंत्री इसके फंदे में आ सकते हैं. इसके अलावा कई अन्य फाइलें भी खोली जा सकती हैं, कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के विधायकों की भी जांच करवाई जा सकती है. इसकी ओर केजरीवाल एक 2 मिनट का विडियो जारी कर इशारा भी कर चुके हैं. इन मामलों में कई मामले तो केंद्र सरकार से भी जुड़े हैं और अगर कोई जांच करवाई जाती है और करवाई ही जायेगी तो गाज केंद्र सरकार पर भी गिर सकती है और कुछ मामलों में तो पीएमओ सीधे लपेटे में आ सकता है. लोकसभा चुनाव से पहले यदि कोई नया मामला खुलता है और उसमें कोई कांग्रेसी नेता लपेटे में आता है तो कांग्रेस के लिए जवाबदेही मुश्किल हो सकती है. यही बैचेनी कांग्रेस को खाए जा रही है जिस तरीके से दिल्ली के कांग्रेस नेताओं को बलि का बकरा बनाया जा रहा है उनमें गुस्सा जायज है और इसका परिणाम भी जल्द सामने आ सकता है. बस केजरीवाल अपनी टीम को अनुशासित रख लें जो काम कल बिन्नी ने किया उसकी पुनरावृति ना हो तो शायद केजरीवाल स्वराज के पहले अध्याय को सच कर सकें.
कौन बनता है खबर? कौन होता ख़बरों के केंद्र में? क्या बिकती हैं खबरें? घोटाले बनाए भी जातें हैं? ख़बरों का सच, ख़बरों का झूठ, इनसाईट स्टोरी के आईने में. आप बताएं कहाँ क्या हो रहा है? कैरियर, स्वास्थ्य, विज्ञान, फिल्म ....... और बहुत कुछ आपके लिए.
बुधवार, 25 दिसंबर 2013
केजरीवाल का लोकपाल : केजरीवाल कहीं ना हो जायें फेल
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मैं क्या करूं ये कानून ही ऐसा था, कांग्रेस ने छिपा कर रखा था. |
A.K-47 के जनक ने ली दुनिया से विदा
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मिखाइल कलाशनिकोफ़ |
क्या होगा केजरीवाल का: शपथ लेगें या फिर कोई नया ड्रामा
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अरविन्दर सिंह लवली |
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और ख़ास
आप की हंडिया फोड़ दी बिन्नी ने:आप में बगावत
मंगलवार, 24 दिसंबर 2013
आप की हंडिया फोड़ दी बिन्नी ने:आप में बगावत

102 साल के अमिताभ बच्चन
जी हाँ आप जल्द ही 102 साल के अमिताभ से रूबरू होंगें... लेकिन 71 साल के अमिताभ अब 102 के कैसे हो गये? अजी ये अमिताभ हैं बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर रोल को क्या बखूबी निभाते हैं और इस बार 102 साल के एक वृद्ध का किरदार अदा कर रहें है फिल्म "102 नॉट आउट" में. उनके 75 साल के बेटे की भूमिका में मिलेंगें परेश रावल. फिल्म का निर्देशन ओ एम जी के निर्देशक उमेश शुक्ला कर रहें हैं.
नितीश की हत्या मोदी के हाथ?
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गिरिराज सिंह |

सोमवार, 23 दिसंबर 2013
आप के साथ दिल्ली की जनता भी ईमानदार हो जायेगी
आप रिश्वत ना भी मांगें तो भी ऑफर की जाती है, यदि रिश्वत लेकर कोई काम करने से मना कर दे तो उसके खिलाफ जनता की भृकुटी भी तन जाती है, कई ईमानदार अधिकारियों को रोज इन समस्याओं से दो चार होना ही पड़ता है, पोस्टिंग के लिए रिश्वत, तबादले के लिए रिश्वत और तो और 100 रूपये के बिल को पास कराने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है. "लोग खुद आकर रिश्वत ऑफर करते हैं, ले लो तो ठीक भगा दो तो आन्दोलन. अब बताएं क्या ठीक है"? दिल्ली सरकार के एक अफसर ने ये बात काफी खेद के साथ कही जब उनसे पूछा गया की आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार पर कितनी रोक लगेगी, उनका कहना था एक सरकारी स्कूल में जहां मुफ्त शिक्षा मिलती है हम में से कितने लोग वहां बच्चों को भेज रहे हैं, भारी डोनेशन लेने वाले स्कूल अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि ज्यादा बड़ा डोनेशन स्टेट्स सिम्बल बन गया है. जिस स्कूल में बिना डोनेशन एडमिशन मिल जाए उसमें कौन अपने बच्चे भेजना पसंद करता है, उसे तो दोयम दर्जे का स्कूल कहा जाता है. क्या आप लोगों को इस मानसिकता से बाहर निकाल लेंगें? घर बैठे काम कराने की परिपाटी ने ही दलाल संस्कृति को जन्म दिया है. यदि नियमानुसार ड्राइविंग लाइसेंस बनने लगें तो दिल्ली में आधे लोग ही लाइसेंस प्राप्त कर पायें. आप खुद देखिये कितने लोग ऐसे हैं जो समाचार पत्रों का प्रकाशन सही नियमों के अनुसार कर रहें है. देश में बी पी एल की लिस्ट उठा लो कितने ऐसे लोग हैं जो करोड़पति हैं और बीपीएल की सुविधा ले रहें हैं. सब झूठ में चल रहा है उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करना भी एक अपराध है. तमाम दवाब ग्रुप हल्ला शुरू कर देते हैं. वास्तव में इन महानुभाव की ये बात काबिलेगौर है. जिस देश में बहुतायत लोग रेडलाईट को तोड़ चालान कटवाने के बजाय ले दे कर या धौंसबाजी से बचने का रास्ता निकालते हैं. सरकार रहने को मकान दे दे तो सामने की सड़क को अपने बाप की जायजाद मानते हैं, उनसे क्या ईमानदारी की उम्मीद की जा सकती है. अब देखना है "आप" का भ्रष्टाचार विरोध इन्हें कितना सुधार सकता है या फिर आप भी इन्हीं के रंग में रंग जाती है. देखते रहिये ये देश है जिसके कई रंग हैं कई रूप.
रविवार, 22 दिसंबर 2013
आप और साँप की सरकार
आप के साथ सांप की सरकार: फोटो सौजन्य इनसाईट स्टोरी |
अभी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं बनी है लेकिन भाजपा के बड़े नेताओं ने उन पर तंज कसने आरम्भ कर दिए हैं, जन्तर मंतर में भाजपा के द्वारा प्रायोजित एक अनशन के मौके पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजय गोयल ने आप और कांग्रेस के गठबंधन पर कहा देखिये आप और सांप की सरकार, उन्होंने कहा कि एक ओर आप के नेता कांग्रेस को दो मुँहा साप कहते हैं लेकिन उन्हीं के साथ सरकार बना रहें हैं. आम आदमी पार्टी की सफलता का असर विजय गोयल के तेवरों पर काफी दिखा इस बार उनका वार सीधा आप पर था.
पढ़िए: क्या मैं सरकार बना लूं?
इसी मंच से भाजपा के मुख्यमंत्री प्रत्याशी हर्षवर्धन भी आप को चुनौती देते दिखे कि जनता से किये वादे तो पूरे कर दिखाओ. इससे पहले कांग्रेस के नवनिर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली भी आप के वादों पर यही कह चुके हैं. इस पर आप समर्थकों का कहना है की अगले 6 माह में दिल्ली से भाजपा और कांग्रेस का पत्ता साफ़ हो जाएगा. वैसे उनकी ये टिप्पणी उनके अति उत्साह का प्रतीक लगे लेकिन दिल्ली में मोदी की कई रैलियों के बाद भी भाजपा बहुमत नहीं जुटा पाई, इस सच से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है और इसके चलते ही कांग्रेस को दिल्ली में एतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. जिस गति से आप ने अपना जनाधार अर्जित किया है अगर इस गति से ही आगे गई तो आगामी लोकसभा चुनावों में भी एक चुनौती कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दलों के लिए पैदा कर सकती है. विशेषकर बड़े शहरों में आप अपने झंडे गाड़ सकती है. दिल्ली और आस-पास के इलाकों में भी आप एक बड़े विकल्प के रूप में खडी दिख रही है.
(आशुतोष पाण्डेय)पढ़िए: क्या मैं सरकार बना लूं?
इसी मंच से भाजपा के मुख्यमंत्री प्रत्याशी हर्षवर्धन भी आप को चुनौती देते दिखे कि जनता से किये वादे तो पूरे कर दिखाओ. इससे पहले कांग्रेस के नवनिर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली भी आप के वादों पर यही कह चुके हैं. इस पर आप समर्थकों का कहना है की अगले 6 माह में दिल्ली से भाजपा और कांग्रेस का पत्ता साफ़ हो जाएगा. वैसे उनकी ये टिप्पणी उनके अति उत्साह का प्रतीक लगे लेकिन दिल्ली में मोदी की कई रैलियों के बाद भी भाजपा बहुमत नहीं जुटा पाई, इस सच से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है और इसके चलते ही कांग्रेस को दिल्ली में एतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. जिस गति से आप ने अपना जनाधार अर्जित किया है अगर इस गति से ही आगे गई तो आगामी लोकसभा चुनावों में भी एक चुनौती कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दलों के लिए पैदा कर सकती है. विशेषकर बड़े शहरों में आप अपने झंडे गाड़ सकती है. दिल्ली और आस-पास के इलाकों में भी आप एक बड़े विकल्प के रूप में खडी दिख रही है.
शनिवार, 21 दिसंबर 2013
क्या मैं सरकार बना लूं?
मंगलवार, 3 दिसंबर 2013
मोदी के चोचलें नहीं चल रहें है दिल्ली में
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दिल्ली विधान सभा चुनाव 70 सीटों पर होने हैं. इन 70 सीटों पर इस बार रोचक मुकाबला होना है. लगभग 1.15 करोड़ मतदाताओं के साथ शीला, हर्षवर्धन और केजरीवाल का भविष्य दांव पर लगा है. इस बार भाजपा मोदी कार्ड खेल रही है और इसी कार्ड के साथ चुनावों में है और कांग्रेस के पास इस बार मुद्दों के नाम पर कुछ भी नहीं है उनके खिलाफ सिर्फ सवाल ही खड़े दिख रहें हैं. विकास और रफ्तार के तमाम दावों के साथ भी कांग्रेस भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दों पर घिरी दिख रही थी, लेकिन मोदी के जासूसी प्रकरण और आम आदमी पार्टी के खिलाफ सरकार मीडिया डाट काम के स्टिंग के बाद कांग्रेस की पतली हालत में थोड़ा सुधार हुआ है. 2008 में मिली 43 सीटों के मुकाबले इस बार कितनी सीटें मिलेंगी कहा नहीं जा सकता है. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी चौथी पारी को लेकर खुद विश्वास नहीं कर पा रहीं हैं. लेकिन भाजपा भी इस बार विजय गोयल को दांव पर तो लगा चुकी है लेकिन हर्षवर्धन के साथ खेला उसका दांव कोई खास कमाल कर सके ये लगता नहीं हैं. "आप" के अरविन्द केजरीवाल भी मुख्यमंत्री की दौड़ में बेतहाशा भाग रहें हैं. केजरीवाल ने राजनिती के मैदान में गजब फील्डिंग सजाई है. अब देखना ये है क्या रन आउट कर कुर्सी कैच कर पाते हैं या नहीं? खुद नयी दिल्ली सीट से शीला दीक्षित के लिए चुनौती पैदा करने वाले भाजपा के विजेंद्र गुप्ता के भी सिरदर्द बन गये हैं, लेकिन इस सीट पर उनके लिए जीतना आसान नहीं है. अभी आप और केजरीवाल को काफी कुछ सीखना बाकी है, सिर्फ आदर्शों की हंडिया से दाल नहीं गलती है. आप जो एक समय एक निर्णायक दौर में था और करीब 20 सीटों में प्रभावित करने की स्थिति में था चुनाव आने तक वे एक से दो सीटों पर सिमटा दिख रहा हैं. मोदी के चोचलें यहाँ पर नहीं चल रहे हैं और विजय जौली के ड्रामा के बाद तो भाजपा की भत पीट रही है. पिछले चुनावों में 23 सीटों पर अटकी भाजपा इस बार 7-8 सीटों पर फायदा उठा सकता है. भाजपा इस बार अगर 30 का आकड़ा छू ले तो भी कांग्रेस कम से कम 30 सीटें लेने की स्थिति में दिख रही है. दो सीटों पर बसपा और एक पर लोकदल को जीत मिलती है तो भी 36 का जादुई आकड़ा जुटा लेना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए काफी कठिन लगता है. 2 से 3 सीटें भी अगर आप को मिलती है तो भी वे किंग मेकर की भूमिका में दिखेंगे. अभी तक तो आप किसी भी पार्टी का समर्थन ना करने की बात कर रही है लेकिन खुद शीला दीक्षित गाहे-बगाहे आप के साथ के साथ गठजोड़ की संभावना व्यक्त कर चुकी हैं और दूसरी ओर आप समर्थक प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को ज्यादा लोकप्रिय उम्मीदवार मान रहें हैं इसका सीधा अर्थ ये है की आने वाले कल में केजरीवाल समर्थकों की दुहाई दे भाजपा का पल्ला थाम सकते हैं. इसमें अन्ना और रामदेव काफी अहम रोल निभा सकते हैं. 4 दिसम्बर को दिल्ली के भविष्य की इबारत ईवीएम में कैद हो जायेगी लेकिन परिमाणों के लिए 9 दिसम्बर का इन्तजार करना ही पड़ेगा.
(आशुतोष पाण्डेय)

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