आखिरकार अन्ना और लोकपाल का तमाशा कहीं पहुँच नहीं पाया, ना ही सरकार और ना विपक्ष इसके लिए गंभीर था. एक सोची समझी साजिश की तरह ये सब किया गया. अन्ना को देखिये! जब पता चला की अब संसद में लोकपाल पिट जाएगा तो, आन्दोलन वापस ले लिया. वैसे भी इस बार अन्ना की जमात उनके लिए भीड़ नहीं जुटा पाई थी, जिसके चलते अन्ना को अहसास हो गया था की "काठ की हंडिया बार-बार चूल्हे पर नहीं चढती है" और एक ड्रामे के साथ आन्दोलन वापस ले लिया. ये वो ही अन्ना हैं जो कुछ दिनों पहले तक जनलोकपाल के लागू ना हो जाने तक आन्दोलन की चेतावनी दे चुके थे. अब क्या करें पांच राज्यों में चुनाव होने हैं? अन्ना टीम जिस गुप्त मिशन पर थी उसका ठीकरा अब कहीं उसी के सर ना फूटे बस इसी डर से ऐन वक्त आन्दोलन को वापस ले लिया. अब अन्ना कह रहें हैं की वे सरकार के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगें, वैसे उनके समर्थक अभी तक कर क्या रहे थे, किसी की समझ में नहीं आया. बस अन्ना को एक चुनावी आइकन बनना था वे बन गए. कुछ देर तक अपनी टीम के कुछ लोगों की लिप्सा के शिकार बने और बी जे पी के एजेंट.
खैर अब बात हो जाए अन्ना के चुनाव प्रचार की क्या अन्ना का विषवमन चुनावी गणित को बदलेगा? शुरूआत कर रहें हैं उत्तराखंड से... यहाँ ७० विधान सभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं और बीजेपी की सरकार काबिज है. जब हम मतदाता से लोकपाल के बारे में बात करतें हैं तो ८५ फीसदी लोग इसे वोट देने के लिए कोई ख़ास मुद्दा नहीं मानतें हैं. यहाँ भाजपा पहले ही लोकपाल को लागू कर चुकी है... और इसका खामियाजा भी जनता भुगतने लगी है, जो काम आम तौर पर अफसरशाही द्वारा आसानी से कर दिए जाते थे अब लोकपाल की डर से नहीं किये जा रहें हैं, सब कुछ दुरस्त करने के बाद ही फ़ाइल निपटाई जायेगी ये कह कर अफसर अपना पल्ला झाड रहें हैं, और आये दिन अन्ना के समर्थकों के द्वारा आफिस में काम काज का लेखा जोखा मांगें जाने से भी कई फाइलें प्रोसेस नहीं हो पा रहीं हैं. ऐसी स्थिति में अन्ना की मुहिम यहाँ काबिज बीजेपी सरकार के खिलाफ जा रही है. कई अधिकारी भी सरकार के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने के लिए इस अचूक अस्त्र का इस्तेमाल कर सरकार के खिलाफ माहौल बना रहें हैं. कहा जा रहा है की नियमों को तांक पर रख कोई काम करेंगें तो लोकपाल द्वारा धर लिए जायेंगें. इसके बाद अन्ना यहाँ चुनाव प्रचार के लिए आयेंगें तो क्या होगा, ये एक सवाल है? वैसे अन्ना को अब चाहिए की जनता को गुमराह करना बंद करें और अपने एन जी ओ को चलायें, कुछ संसद विरोधी ताकतें उन्हें जरूर फायनेंस कर देंगीं.
खैर अब बात हो जाए अन्ना के चुनाव प्रचार की क्या अन्ना का विषवमन चुनावी गणित को बदलेगा? शुरूआत कर रहें हैं उत्तराखंड से... यहाँ ७० विधान सभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं और बीजेपी की सरकार काबिज है. जब हम मतदाता से लोकपाल के बारे में बात करतें हैं तो ८५ फीसदी लोग इसे वोट देने के लिए कोई ख़ास मुद्दा नहीं मानतें हैं. यहाँ भाजपा पहले ही लोकपाल को लागू कर चुकी है... और इसका खामियाजा भी जनता भुगतने लगी है, जो काम आम तौर पर अफसरशाही द्वारा आसानी से कर दिए जाते थे अब लोकपाल की डर से नहीं किये जा रहें हैं, सब कुछ दुरस्त करने के बाद ही फ़ाइल निपटाई जायेगी ये कह कर अफसर अपना पल्ला झाड रहें हैं, और आये दिन अन्ना के समर्थकों के द्वारा आफिस में काम काज का लेखा जोखा मांगें जाने से भी कई फाइलें प्रोसेस नहीं हो पा रहीं हैं. ऐसी स्थिति में अन्ना की मुहिम यहाँ काबिज बीजेपी सरकार के खिलाफ जा रही है. कई अधिकारी भी सरकार के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने के लिए इस अचूक अस्त्र का इस्तेमाल कर सरकार के खिलाफ माहौल बना रहें हैं. कहा जा रहा है की नियमों को तांक पर रख कोई काम करेंगें तो लोकपाल द्वारा धर लिए जायेंगें. इसके बाद अन्ना यहाँ चुनाव प्रचार के लिए आयेंगें तो क्या होगा, ये एक सवाल है? वैसे अन्ना को अब चाहिए की जनता को गुमराह करना बंद करें और अपने एन जी ओ को चलायें, कुछ संसद विरोधी ताकतें उन्हें जरूर फायनेंस कर देंगीं.
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