कौन बनता है खबर? कौन होता ख़बरों के केंद्र में? क्या बिकती हैं खबरें? घोटाले बनाए भी जातें हैं? ख़बरों का सच, ख़बरों का झूठ, इनसाईट स्टोरी के आईने में. आप बताएं कहाँ क्या हो रहा है? कैरियर, स्वास्थ्य, विज्ञान, फिल्म ....... और बहुत कुछ आपके लिए.
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
मूल्यपरक शिक्षा का अभाव
अपराध, आतंक, हत्या, बलात्कार, लूट ये सब अब हमारे देश की नियति बन चुकी है। आर्थिक विकास औरबौद्धिक विकास का दावा करने वाले भारतीय समाज का ये वीभत्स रूप आख़िर क्यों दिख रहा है? मोबाइल औरतमाम अन्य सुविधाओं से लबरेज इस समाज की मत्ती मारी जा चुकी है। इसका मुख्य कारण मूलय्परक शिक्षा का पूर्णतया अभाव है। बच्चे के लिए प्रायमरी शिक्षा के साथ मीड - डे मील देने की व्यवस्था तो कर दी गई लेकिन जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयास करने की सुध किसी को नही रही। आतंकी कौन बनते हैं? कौन करता है अपराध? इन सवालों की तह तक जायें तो एक बात साफ़ सामने आती है की बिना जीवन आदर्शों ओर संवेदनशीलता के साथ जवान होने वाला बचपन आसानी से गुमराह किया जा सकता है। न ही सरकारी ओर न ही पब्लिक स्कूल इस बात की परवाह कर रहें हैं की वे बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दे रहें हैं। हर एक सिर्फ़ पैसा कमाना चाहता है। शिक्षा को बेचने और खरीदने वालों की भरमार है। लेकिन आख़िर कब तक ये देश बिना मूल्यों के चल पायेगा। ये बात शर्म की है कि एक समय दुनिया को नैतिकता कि शिक्षा देने वाला ये देश आज अपने नैतिक पतन के चरम पर है। आख़िर हम क्यों नहीं सोच रहें हैं इस बारे में? क्या नैतिक शिक्षा और जीवन आदर्शों कि स्थापना के लिए भी मीड - डे मील की तरह का कोई कार्यक्रम विश्व बैंक के सहयोग से चलाना होगा। जो भीं पाठक इस लेख को पढे इस पर अपने विचार अवश्य भेजे। हम आप सभी के विचार इनसाईट स्टोरी के माध्यम से दुनिया तक पहुचायेंगे।
अपने विचार geetedu@gmail.com पर भेजें।
आशुतोष पाण्डेय
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
जागे लेकिन काफी देर बाद
आशुतोष पाण्डेय
संपादक 'इनसाईट स्टोरी'
शनिवार, 29 नवंबर 2008
हार गया आतंक, भारत जीत गया


मंगलवार, 18 नवंबर 2008
मोटापे के लक्षण
चूहों पर किए गए शोध बताते हैं कि जो बच्चे ऐसी माँओं से पैदा होते हैं जो ज़्यादा वसायुक्त भोजन करती हैं, उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं ज़्यादा भूख लगाने वाली प्रोटीन का उत्पादन करती हैं.
रॉकफ़ैलर यूनिवर्सिटी की टीम का कहना है कि ये खोज यह बताने में मदद करती है कि क्यों पिछले कुछ वर्षों में मोटे चूहे बढ़ते जा रहे हैं?
इस अध्ययन के परिणाम न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। वयस्क जानवरों पर किए पिछले शोध बताते हैं कि ट्राइग्लिसरॉयड नाम के वसा कण जब रक्त में पहुँचते हैं तो वे मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टॉयड नाम की प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो भूख बढ़ाते हैं। ताज़ा अध्ययन संकेत देते हैं कि माँ के भोजन के माध्यम से ट्राइग्लिसरॉयड पहुँचने से विकसित हो रहे भ्रूण के मस्तिष्क पर भी वही असर होता है और जिसका असर अगली पीढ़ी की पूरी ज़िंदगी पर पड़ता है.
वैज्ञानिकों ने दो सप्ताह तक चूहों के ऐसे बच्चों की तुलना की जिनकी माँओं ने ज़्यादा वसायुक्त भोजन किया और जिनकी माँओं ने साधारण भोजन किया था। उन्होंने पाया कि ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने वाली माँओं के बच्चों ने ज़्यादा खाया और पूरी ज़िंदगी उनका वजन ज़्यादा रहा.
साथ ही उनमें साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों के मुक़ाबले काफ़ी पहले वयस्कता के लक्षण भी देखे गए।
जन्म के वक्त उनके रक्त में ट्राइग्लिसरॉयड का स्तर भी ज़्यादा पाया गया और वयस्क होने के बाद उनके मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन भी ज़्यादा हुआ।
इसकी ज़्यादा विस्तृत समीक्षा बताती है कि जन्म से पहले भी वसायुक्त भोजन करने वाले चूहे के बच्चे में ऐसी मस्तिष्क कोशिकाओं की संख्या ज़्यादा थी जो ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन करती थीं और ऐसा पूरी ज़िंदगी होता था।
उनकी माँओं का वसायुक्त भोजन इन कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ाने वाला प्रतीत होता है.
दूसरी ओर इसके विपरीत साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों में ये कोशिकाएं बहुत कम नज़र आईं और वे भी जन्म के काफ़ी समय बाद दिखीं।
प्रमुख शोधार्थी डॉ सारा लीबोविज़ ने कहा, "हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि गर्भावस्था के दौरान माँ के रक्त की वसा कोशिकाएं भ्रूण में जन्म के बाद ज़्यादा खाने के लक्षण और वजन बढ़ाना भी तय करती हैं।"
शोधार्थी संकेत देते हैं कि भ्रूण का मस्तिष्क इस तरह प्रोग्राम हो जाता है कि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी माँ की तरह ही भोजन करें। वे मानते हैं कि मानव में भी ऐसा ही हो सकता है। डॉ लीबोविज़ कहती हैं, " हम ही अपने बच्चों को मोटापे के लिए प्रोग्राम करते हैं।"
चेरिटी वेट कंसर्न के मेडिकल डायरेक्टर डॉ इयान कैंपबैल करती हैं, " यह तो मालूम है कि गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से बच्चे में भी ज़्यादा वसायुक्त खाने की इच्छा आती है लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है।"
उन्होंने कहा, " स्पष्ट है कि हमारी आदतें सिर्फ़ अपने भोजन पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि काफ़ी हद तक हमारी आदतें अपनी माँ के भोजन पर आधारित हैं।"
उनका कहना है कि अपने बच्चे को स्वस्थ भोजन कराने का समय गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है।
आशुतोष पाण्डेय
बुधवार, 12 नवंबर 2008
जीवन जीने के मंत्र
- मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति, उसके द्बारा चाहे गए परिणामों को प्राप्त करना है।
- आप जैसा चाहेंगे पा लेंगे।
- आप जैसा बनना चाहेंगे बन जायेंगे।
- सफलता की सीढ़ी सदा ऊपर की ओर जाती है।
(आशुतोष पाण्डेय)
बुधवार, 5 नवंबर 2008
इतिहास बदलाव और बदलने का नाम है
महत्वपूर्ण अमरीकी प्रांतों - फ़्लोरिडा, ओहायो और पेन्नसिलवेनिया में जीत के बाद ओबामा ने आसानी से 538 इलेक्टॉरल कॉलेज मतों में से 270 का आँकड़ा पार कर लिया। अभी चुनावी नतीजों के रुझान आ ही रहे थे कि मैक्केन ने हार स्वीकार कर ली। इसके बाद अपने भावुक समर्थकों को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, "अमरीकी लोगों ने घोषणा की है कि बदलाव का समय आ गया है। अमरीका एक शताब्दी में सबसे गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है मैं सभी अमरीकियों को साथ लेकर चलना चाहता हूँ - उनकों भी जिन्होंने मेरे लिए वोट नहीं डाला....". ओबामा ने कहा, "ये नेतृत्व का एक नया सवेरा है. जो लोग दुनिया को ध्वस्त करना चाहते हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूँ कि हम तुम्हें हराएँगे. जो लोग सुरक्षा और शांति चाहते हैं, हम उनकी मदद करेंगे..."
इनसाईट स्टोरी के लिए ये विशेष आलेख सम्पादक आशुतोष पाण्डेय ने अपने तमाम सहयोगियों के साथ मिलकर तैयार किया है।
शनिवार, 1 नवंबर 2008
शिक्षा मौलिक अधिकार
मंत्रियों के समूह को यह काम सौंपा गया था कि वे इस विधेयक की समीक्षा करें. इस महीने के शुरू में मंत्रियों के समूह ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दे दी थी. मंत्रियों के समूह ने किसी भी विवादित प्रावधान को हटाने की कोशिश नहीं की. इनमें वो प्रावधान भी शामिल है जिसमें कहा गया था कि प्राइवेट स्कूलों में शुरुआती स्तर पर विपन्न बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण रहेगा।
विधेयक में यह भी प्रावधान है जाँच प्रक्रिया के नाम पर बच्चों या उनके माता-पिता से ना तो साक्षात्कार होगा, न डोनेशन देना होगा औ न ही कैपिटेशन फ़ीस ही लगेगा.
शिक्षा के अधिकार वाला विधेयक से ही संविधान के 86वाँ संशोधन को अधिसूचित किया जा सकेगा। इस संशोधन के तहत छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है. संसद ने इसे दिसंबर 2002 में पास किया था।
आशुतोष पाण्डेय
बुधवार, 29 अक्टूबर 2008
प्राइवेसी मानवाधिकार है

बुधवार, 24 सितंबर 2008
नशे की लत एचआईवी की बढ़ती वजह

मंगलवार, 9 सितंबर 2008
कैसे बना था ब्रह्माण्ड
अपने आप में अनोखे इस प्रयोग को स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर 85 देशों के करीब 2500 वैज्ञानिक अंजाम देंगे। इसमें जमीन के 80 मीटर अंदर 27 किलोमीटर लंबे एक सुरंग में 'लार्ज हेड्रोन कोलाइडर' [एलएचसी] मशीन के जरिए ठीक वैसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी जैसी 'बिग बैंग' के एक नैनो सेकेंड बाद हुई थीं। एलएचसी को जिनेवा स्थित यूरोपियन सेंटर फार न्यूक्लियर रिसर्च [सीईआरएन] ने तैयार किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्तिके रहस्यों पर से पर्दा उठ सकेगा। इस पूरी परियोजना पर कुल 9.2 अरब डालर [4.1 खरब रुपये] का खर्च आने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस प्रयोग से वे ब्रह्मांड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 'डार्क मैटर' व 'हिग्स बोसोन' संबंधित जानकारियां जुटा सकेंगे। 1964 में स्काटलैंड के वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने इन कणों की खोज की थी। इन कणों से बने पदार्थ ने ही ब्रह्मांड के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। कुछ लोगों का कहना है कि इस परीक्षण से धरती ब्लैक होल में समा सकती है। हालांकि इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों ने इन आशंकाओं को निराधार बताया है। उनका कहना है कि इस प्रयोग से बनने वाले ब्लैक होल्स से किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा। अभियान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी के मुताबिक एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है। यदि ऐसा कुछ होता तो वैज्ञानिक इस प्रयोग का जोखिम नहीं उठाते। ब्रह्मांड की उत्पत्तिलगभग 14 अरब वर्ष पहले हुई जिसमें धरती की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी घटनाएं हुई लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।
एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे के अनुसार ब्रह्मांड में उच्च ऊर्जा वाले प्रोटान आपस में टकराते हैं जबकि परीक्षण में उनकी तुलना में काफी कम ऊर्जा वाले प्रोटानों की टक्कर कराई जाएगी। प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना है कि ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला पदार्थ कैसे अस्तित्व में आया।
स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर होने जा रहे अभूतपूर्व परीक्षण पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। इस अभियान से भारत के भी तीस वैज्ञानिक जुड़े हैं। भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर जब यह परीक्षण होगा राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दंपति सुधीर और रश्मि रनिवाल की निगाहें भी उस पर लगी होंगी। दोनों ही इस अभियान में शामिल हैं। सुधीर ने बताया कि हमने लार्ज हेड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] के अंदर लगने वाली प्रोटोन मल्टीपलसिटी डिटेक्टर [पीएमडी] नामक युक्ति डिजाइन की है। यह प्रोटोंस को त्वरित करने का काम करेगी। सुधीर ने कहा कि इस परीक्षण से क्वार्क-ग्लूआन प्लाज्मा [डार्क मैटर] को पैदा करने का प्रयास किया जाएगा जो ब्रह्मांड की उत्पत्तिके समय मौजूद था।
परीक्षण से जुड़े एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी इससे धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं मानते। इस अभियान में भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे भी शामिल हैं।
आशुतोष पाण्डेय
संपादक
सोमवार, 8 सितंबर 2008
भोजन और प्रजनन के लिए जिम्मेदार जीन
कम वजन वाली और कुछ अतिरिक्त वजन वाली महिलाओं को प्रजनन क्षमता संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और केलीफ़ोर्निया के सैल्क इंस्टीट्यूट का यह शोध संकेत देता है कि टीओआरसी-1 इन दोनों मामलों में अपनी भूमिका निभाता है।
शोधार्थियों के अनुसार साधारण स्थितियों में जबकि पर्याप्त भोजन किया जाता है, तब चर्बी की कोशिकाएं एक हॉर्मोन बनाती हैं जिसे लेप्टिन कहते हैं। यह हॉर्मोन भूख को घटाने और प्रजनन क्षमता को सुचारु करने वाले जीन टीओआरसी-1 को चालू कर देता है। खाद्य पदार्थों की कमी के समय लेप्टिन की कमी से टीओआरसी-1 काम नहीं करता और भूख की देखभाल न करने के साथ गर्भधारण को भी रोकता है।
शोधार्थियों का मानना है कि यह भुखमरी और अकाल के वक्त होने वाला एक अनोखा फ़ायदा है।
उनका मानना है कि इस जीन की संख्या में अतिरिक्त वृद्धि भी मोटापे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में पहले ही काफ़ी मात्रा में भोजन किये जा चुकने पर भी यह भोजन बंद करने का संकेत नहीं देता है । उन्होंने कहा कि अगर यह जीन पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहे तो यह मोटापे की वंशानुगत समस्या का कारक बन जाता है। इस जीन के सही प्रकार से काम न करने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है और यह गर्भधारण की अनुमति नहीं देता। इसकी जाँच करने के लिए वैज्ञानिकों ने बिना टीओआरसी-1 वाले चूहों का प्रजनन कराया जिनका वजन मात्र आठ सप्ताहों के बाद ही बढ़ने लगा और दोनों ही लिंगों की प्रजनन क्षमता नकारात्मक रही। इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्रोफ़ेसर मार्क मोंटमिनी ने कहा कि टीओआरसी-1 ने दवाओं के लिए अच्छा रास्ता दिखा दिया है।
आशुतोष पाण्डेय
संपादक
सोमवार, 1 सितंबर 2008
अपने आने वाले बच्चे का ख्याल रखें
उनके अनुसार गर्भावस्था के वक्त कॉस्मेटिक्स में पाए जाने वाले रसायनों की गंध भविष्य में बच्चे के शरीर में शुक्राणुओं के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।
खैर उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हालाँकि इस बात को पुख्ता करने के लिए उनको अब तक अंतिम सबूत नहीं मिले हैं। शोधार्थियों की इस टीम का नेतृत्व एडिनबरा स्थित मेडिकल रिसर्च काउंसिल के ह्यूमन रिप्रोडक्टिव साइंस यूनिट के प्रोफ़ेसर रिचर्ड शार्प ने किया।
चूहों पर इसका परीक्षण करने के दौरान उन्होंने एंड्रोजन्स की कार्रवाई रोक दी जिसमें टेस्टेस्टेरॉन जैसे हॉरमोन शामिल होते हैं। इस परीक्षण ने यह निश्चित कर दिया कि अगर हॉरमोन का निकलना रोक दिया जाए तो पशु प्रजनन क्षमता की समस्याओं का सामना करते हैं। और कॉस्मेटिक्स, कुछ कपड़ों और प्लास्टिक बनाने में कुछ ऐसे रसायनों का प्रयोग किया जाता है जो हॉरमोनों का निकलना बंद कर देते हैं। जिससे प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। प्रोफ़ेसर शार्प कहते हैं कि यह रसायन पैदा होने वाले लड़कों के भविष्य में प्रजनन संबंधी दूसरी अवस्थाएं विकसित होने का ख़तरा भी बढ़ाते हैं, जिसमें टेस्टेकुलर कैंसर भी शामिल है। उन्होंने कहा कि जो महिलाएं गर्भधारण करने की योजना बना रही हैं उन्हें अपनी त्वचा पर कोई भी कॉस्मेटिक का प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि उनका शरीर सोख लेता इसे सोख लेता है। अगर आप गर्भधारण करने के बारे में सोच रही हैं तो आपको अपने जीने का तरीकों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। इन चीज़ों का प्रयोग करने का अर्थ निश्चित रूप से यही नहीं है कि आप अपने बच्चे को नुकसान पहुँचाएंगी ही लेकिन इनसे बचाव करने से निश्चित रूप से आपको सकारात्मक असर मिलेगा।
प्रो० शार्प के अनुसार, "हमारी सलाह है कि आप रसायनों वाले कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल से बचें। ऐसी कोई भी सामग्री जिसे आप अपनी त्वचा पर लगाएंगी, आपकी त्वचा से होते हुए आपके विकसित हो रहे बच्चे तक ज़रूर पहुँचेगी।"
(आशुतोष पाण्डेय)
सम्पादक
बुधवार, 20 अगस्त 2008
हम जीत गए! चक दे इंडिया.


रविवार, 10 अगस्त 2008
स्तन कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है: स्वामी रामदेव
भारतीय महिलाओं के बीच हमारे द्बारा किए गए एक टेलीफोनिक सर्वे के अनुसार ६७ फीसदी से ज्यादा महिलाएं स्तन कैंसर के बारे में जानती भी नही हैं। इस सर्वेक्षण में हमने नैनीताल जिले की १५० महिलाओं के विचार लिए। अधिकांश महिला चिकित्सक भी महिलाओं को इसकी जाँच करने को नहीं कहती हैं। इसमें २५ से ४५ वर्ष तक की महिलाओं से बातचीत की। आश्चर्यजनक तथ्य है की इस सर्वे में भाग लेने वाली ८८ फीसदी महिलाएं पढी लिखी थी। (नैनीताल जिले में स्तन कैसर के लिए जागरूकता एक अध्ययन: आशुतोष पाण्डेय/ अंजू स्नेहा)
जिन महिलाओं का शरीर भार सूचकांक यानी बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 से ज्यादा होता है उनमें बीमारी का ख़तरा अधिक होता है। फ़ॉक्स चेज़ कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं के मुताबिक रजोनिवृत महिलाएँ पश्चिमी खानपान में कटौती और नियमित व्यायाम से स्तन कैंसर के ख़तरे को कम कर सकती हैं। चीन के एंटी-कैंसर एसोसिएशन के आंकड़ो के मुताबिक 1990 के दशक में चीन के बड़े शहरों में स्तन कैंसर से होने वाली मौतों की तादात 38।9 फ़ीसदी बढ़ी जबकि इस तरह के मामलों में 37 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसकी ख़ास वजह खानपान की आदतों में बदलाव हो सकता है।
पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का कहना है कि स्तन कैंसर के दस फ़ीसदी मामलों की वजह मोटापा होता है। 'ब्रेकथ्रू ब्रेस्ट कैंसर' नाम से चल रहे कैंसर प्रभारी सारा कैंट ने कहा, "खानपान और स्तन कैंसर के बीच आपसी संबंध ढूंढना बहुत कठिन है। इस अध्ययन में कुछ मुद्दों जैसे ज़्यादा उम्र में माँ बनना, व्यायाम न करना और दवाओं के सेवन की चर्चा नहीं की गई है।" सारा कैंट ने कहा कि स्तन कैंसर का ख़तरा बढ़ाने में आहार का असर पता लगाना एक जटिल काम है। भारतीय योग गुरु स्वामी रामदेव का कहना है की प्राणायाम और योग के नियमित अभ्यास से स्तन कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है। अभी तक रामदेव कई मरीजों का इलाज कर चुकें हैं। उनके अनुसार इसका कारण पाश्चात्य जीवन शैली है। इनसाईट स्टोरी ने कई रोगियों से बात की जिनके स्तन की गाठें मात्र योग करने से ठीक हो गयी है। रामदेव भारतीय आयुर्वेद और योग पद्धति के द्बारा हजारों रोगियों को गंभीर से गंभीर बीमारियों से निजात दिला चुके हैं। स्तन कैंसर के बारे में उनका मानना यह है की इसका इलाज प्रथम अवस्था में योग के द्बारा आसानी से किया जा सकता है। ८० प्रतिशत से अधिक रोगियों को प्रथम स्तर पर ठीक करने का दावा करने वाले रामदेव अब एड्स जैसी महामारी का इलाज आयुर्वेद में ढूँढ रहे हैं।
शोध: आशुतोष पाण्डेय
आलेख: अंजू मोनिका
शनिवार, 9 अगस्त 2008
भारतियों का जलवा

गुरुवार, 7 अगस्त 2008
अमेरिकी आपदा एड्स
इसके पहले अंतरराष्ट्रीय राहत संस्थाओं रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट ने कहा था कि अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में स्थित कुछ देशों में एड्स महामारी इतनी बढ़ गई है कि इसे अब आपदा की संज्ञा देना उचित होगा। संयुक्त राष्ट्र उस स्थिति को आपदा की संज्ञा देता है जिसका कोई भी समाज अपने आप सामना करने में सक्षम न हो। रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि एड्स महामारी एक आपदा का रूप ले चुकी है क्योंकि इससे हर साल 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है। इसमें कहा गया था कि लगभग 3.3 करोड़ लोग एचआईवी या फिर एड्स से जूझ रहे हैं और लगभग सात हज़ार लोग हर रोज़ इससे संक्रमित हो रहे हैं। आख़िर तमाम जागरूकता कार्यक्रमों और अरबों रूपये खर्च करने के बाद भी एड्स की ये त्रासदी दिन प्रतिदिन आपदा का रूप ले रही है। इस सन्दर्भ में हमारे प्रधान संपादक आशुतोष पाण्डेय ने कई लोगों को विचार जानने चाहे, अधिकांश लोगों का मानना है की इसके लिए आज का स्वच्छंद समाज ही दोषी है। सेक्स एजुकेशन के बजाय लोगों को संयम की शिक्षा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
इनसाईट स्टोरी टीम
शनिवार, 5 जुलाई 2008
सिगरेट से आपके बच्च्चे की जान को ख़तरा
इस लेख पर मुझे कई प्रतिक्रिया मिली हैं। सिगरेट पीने वालों और न पीने वाले दोनों की। आपकी प्रेरणा से इस श्रृंखला को आगे ले जा रहा हूँ।
"जब तक है जी जी भर कर पी।
जब न रहेगा जी कौन कहेगा पी"॥
आप जानते हैं सिगरेट क्या है, किसी ने ठीक ही खा है सिगरेट तम्बाकू से भरी कागज की एक नली है जिस के एक ओर आग और दूसरी ओर एक बेवकूफ होता है।
हर फ़िक्र को धुँए में उडाता चला गया ०००००००००००००००
अपने मर्ज को बढ़ता चला गया ०००००००००००००००० ००० ।
खैर सिगरेट के एक कस से आपकी फ़िक्र का तो न जाने क्या होगा, लेकिन यकीन मानिये आपकी सिगरेट का ये धुआं आपके आस पास के लोगों का जीवन नर्क बना देता है। आप तो पीतें हैं मस्ती के लिए, गम भुलाने के लिए या फ़िर फ़िक्र को उड़ने के लिए, लेकिन अपनों को पीने के लिए क्यों मजबूर करते हैं। आप स्मोकर हैं तो हमें पैसिव स्मोकर क्यों बना रहे हैं। तरस कहीये अपने उन मासूम बच्चों पर जो जो आपकी शौक के शिकार हो रहे हैं। जरा गौर कीजिये अगर कल आपका बच्चा होठों में सिगरेट दबाये ये गुनगुनाये तो आप क्या करेंगे?
हर फ़िक्र को धुँए में उडाता चला गया ०००००००००००००००।
इरादा बदला या अभी भी ये शौक जिन्दा रखेंगे। या सिगरेट छोड़ कर अपने बच्चों को जिन्दगी का गिफ्ट देंगे।
कल ४ जुले २००८ को मेरे पास पुणे महाराष्ट्र से एक पाँच साल की बच्ची का फोन आया ००००००० मेरे पापा भुत सिगरेट पीतें हैं अपने दो कमरों के किराये के मकान हर कोने से मुझे सिगरेट की बदबू आती है। में घर छोड़ देना चाहती हूँ प्लीज मेरे पापा के कुछ करो ना.... अगर में इस बच्ची के पापा की सिगरेट छूटा पाता तो शायद... लेकिन आप से कहूँगा प्लीज आपके बच्चे आप से परेशान ना हों इसके लिए छोड़ दे।
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
मेरा बच्चा............. ये कैसा प्यार!

आज जब भारत में माएं बच्चो को जनम देकर मार रही हैं या फ़िर नवजात शिशु को नहर में बहा देने से गुरेज नहीं कर रही हैं वहाँ अमेरिका में ऐसा वात्सल्य वास्तव में अपने आप में एक मिशाल साबित हो सकता है। थॉमस बिटी ने 20 वर्ष की आयु में अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया था। अमरीका में थॉमस बिटी नाम के एक पुरुष ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है। थॉमस पैदाइशी तौर पर एक महिला हैं जो सर्जरी के जरिए अपना लिंग परिवर्तन करवा कर पुरुष बन गई थीं। थॉमस बिटी ने ऑपरेशन के बाद अपने सीने की ग्रंथियों को हटवाकर पुरुषों की तरह सपाट करवा लिया था, लेकिन अपने अंदरूनी अंगों को नहीं बदलवाया था। अमरीकी मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार ऑरेगन के बेंड शहर स्थित एक अस्पताल में थॉमस बिटी और उनकी नवजात बच्ची दोनों स्वस्थ हैं। एक अनाम पिता के वीर्य से थॉमस बिटी ने गर्भधारण किया था। बेंड स्थित सेंट चार्ल्स मेडिकल सेंटर के सूत्रों के अनुसार बिटी ने रविवार को प्राकृतिक रूप से बच्ची को जन्म दिया। वहीं कुछ अन्य ख़बरों में बताया गया है कि बिटी ने ऑपरेशन के बाद बच्ची को जन्म दिया है। बिटी ने अप्रैल में एक टीवी चैट शो में इस बात की घोषणा की थी कि वह गर्भवती हैं. जिसके बाद वह पूरी दुनिया में ख़बरों का केंद्र बन गए थे.
इस शो में उन्होंने कहा था कि उनका सपना है कि एक दिन वह एक बच्चे को जन्म दें।
थॉमस के अनुसार मैंने अपने जननांगों के साथ कुछ नहीं किया था, क्योंकि मैं एक बच्चा चाहता था।
बिटी ने अपना जीवन हवाई में ट्रेसी लागोंदिन के नाम से शुरू किया था, वहाँ उन्होंने किशोरियों की एक सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और फ़ाइनल तक पहुँचीं थीं। 'पीपुल' नाम की पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि 20 साल की उम्र में उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया और एक पुरुष के रूप में रहने लगे। लेकिन शायद एक औरत की माँ बनने की हसरत को वो अपने दिलो दिमाग से नही मिटा सकी।
वैसे एक पुरूष के तौर पर उन्होंने नैंसी नाम की एक महिला से शादी भी की। उनकी यह शादी पाँच साल तक चली। भारतीय हाई फाई माएं भी अपनी कोख से बच्चे को जन्म देना अपनी हसरतों में शामिल कर लें।
आशुतोष पाण्डेय
मंगलवार, 1 जुलाई 2008
सिगरेट से आपके बच्चे की जान को खतरा
(अंजू 'स्नेहा')
मंगल पर बर्फ

टस्कन के एरिज़ोना विश्वविद्यालय में आ रही सूचनाओं का अध्ययन कर रहे फ़ीनिक्स यान के प्रमुख शोधकर्ता डा0 पीटर स्मिथ कहते हैं, "इसे बर्फ़ ही होना चाहिए। कुछ दिन बीतने के बाद ही ये छोटे-छोटे टुकड़े पूरी तरह से गायब हो जा रहे हैं। यह ठोस सबूत है कि ये बर्फ हैं"। उनका कहना है, "कुछ सवाल हैं कि क्या यह चमकीली चीज़ नमक हो सकती है लेकिन नमक ऐसा नहीं कर सकता।"
फ़ीनिक्स ने मंगल पर उतरने के बीसवें दिन एक गड्ढ़े को खोदकर बर्फ़ के इन टुकड़ों को खोजा और उनकी तस्वीरें ली। चार दिन बाद यान ने दोबारा उसी जगह की तस्वीर ली लेकिन तब तक कुछ टुकड़ें ग़ायब हो चुके थे। इससे पहले बर्फ़ के मिलने की उम्मीदें कम होती जा रही थीं क्योंकि मंगल की सतह पर से ली गई मिट्टी में पानी का कोई नामो-निशान तक नहीं मिला था। मंगल पर बर्फ़ होने के सबूत इससे पहले भी जुटाए गए थे। लेकिन फ़ीनिक्स के इस अभियान का असल मक़सद उन साक्ष्यों का पता लगाना है जिससे इस ग्रह के ध्रुवीय इलाक़ों में बसने के विचारों को ताक़त मिले। देखना यह है की आख़िर कब तक मंगल ग्रह का रहस्य खुलकर सामने आएगा।
आशुतोष पाण्डेय
संपादक इंसाईट स्टोरी
सोमवार, 9 जून 2008
जनता के साथ फिर ठगी
आशुतोष पांडेय
सम्पादक इनसाईट स्टोरी
रविवार, 25 मई 2008
E- गवर्नेस कितनी सच कितनी झूठ
It will be restored as soon data update is received from the concerned department.
Inconvenience to users is regretted.
- Portal Administrator, Uttara Portal
उत्तराखण्ड शासन के आदेशानुसार इस विभाग की वेबसाईट उत्तरा पोर्टल से अभी हटा दी गई है ।
विभाग से अपडेट डाटा मिलते ही पुन: स्थापित कर दी जाएगी ।
असुविधा के लिए खेद है ।
- प्रशासक, उत्तरा पोर्टल
बुधवार, 21 मई 2008
मिश्रित भ्रूण शोध का रास्ता साफ़
संसद में 'ह्यूमन फर्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी बिल' के संबंध में गंभीर बहस हुई जिसका लक्ष्य 1990 से चल रहे पुराने क़ानून को विज्ञान में हुई उन्नति के अनुसार बदलना था.
ब्राउन और कैमरून ने पार्किंसंस, अल्ज़ाइमर्स और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए संकर भ्रूण के प्रयोग का समर्थन किया. मानव भ्रूण का प्रयोग किये जाने वाले हर शोध के लिए 'ह्यूमन फ़र्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी' यानी एचएफ़ईए को संतुष्ट करना होगा कि यह इस शोध के लिए आवश्यक है
विदेश विभाग के मंत्री विलियम हेग और गृह विभाग के मंत्री डेविड डेविस समेत टोरी शैडो मंत्रिमंडल के अधिकतर लोगों ने संकर भ्रूण को प्रतिबंधित करने के प्रयास को समर्थन दिया. संकर और मिश्रित भ्रूण को बनाने के ख़िलाफ़ लड़ाई का नेतृत्व करने वाले पूर्व मंत्री एडवर्ड ली ने कहा कि यह नैतिक रूप से ग़लत और स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि अब तक इस दावे के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि इन संकर भ्रूणों का उपयोग पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर्स जैसी बीमारियों में किया जा सकता है. यह क़ानून संकर या मिश्रित भ्रूण का प्रयोग कर नियमित रूप से किये जाने वाले उन शोधों की अनुमति देगा जहाँ मानव कोशिकाओं को पशु के गर्भ में प्रत्यारोपित कर विकसित किया जाता है.
इस प्रक्रिया से बने भ्रूण को 14 दिन तक रखा जाता है ताकि इससे बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग की जाने वाला स्टेम सेल विकसित किए जा सकें. स्वास्थ्य मंत्री डाउन प्रिमेरोलो ने कहा कि मानव भ्रूण का प्रयोग किये जाने वाले हर शोध के लिए 'ह्यूमन फर्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी' यानी एचएफ़ईए को संतुष्ट करना होगा कि यह इस शोध के लिए आवश्यक है. उन्होंने कहा कि कोई मिश्रित भ्रूण किसी महिला या पशु में प्रत्यारोपित नहीं किया जाएगा. हम कैसे मानें कि नियम कानून काफ़ी हैं. हम तो यह मानते हैं कि ऐसा होना बहुत मुश्किल है इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए
लेबर पार्टी के पूर्व मंत्री सर गेराल्ड कॉफ़मैन इस विरोध से सहमत हैं. वे कहते हैं, "अगर संकर भ्रूण बनाने की अनुमति दे दी जाए तो आप अगली बार और किसी बात की अनुमति माँगने लगेंगे. आपको इसका कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह आपको कहाँ ले जाएगा." लिबरल डेमोक्रेट इवान हैरिस ने उन लोगों की आलोचना की जिन्होंने कहा था कि संकर भ्रूण अतिमानवीय हैं. उन्होंने कहा, "नैतिक रूप से इस पर सहमति हो चुकी है कि अधिक जीवन क्षमता वाले मानव भ्रूण का उपयोग करने के बाद उसे नष्ट कर दिया जाए तो कम जीवन क्षमता वाले मिश्रित भ्रूण को बनाना कहाँ तक उचित है."
संसद में एक अलग बहस में मानव कोशिका को पशु के वीर्य में या पशुओं के अंडाणु में मानव शुक्राणु मिलाकर बनाए जाने वाले संकर भ्रूण के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगाए जाने के प्रयास को भी 63 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह टोरी पार्टी के डेविड बरोज़ की गंभीर रूप से बीमार बच्चों के उपचार के लिए 'सेवियर सिबलिंग्ज़' के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की भी मतदान में हार हुई.
(आशुतोष पाण्डेय)
मंगलवार, 15 अप्रैल 2008
ब्रा का सही चयन जरूरी है
एक वरिष्ठ स्तन सर्जन का कहना है कि आम तौर पर महिलाएँ ज़रूरत से बड़े आकार की ब्रा पहनती हैं. ब्रिटेन में अक़्सर बड़े आकार के स्तनों से परेशान महिलाएँ सर्जरी कराना चाहती हैं और कुछ इलाक़ों में तो यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का हिस्सा है जिसके तहत पैसे न के बराबर लगते हैं.
इसके बावजूद महिलाएँ ख़ुद हज़ारों पाउंड ख़र्च करके भी स्तन ऑपरेशन करवाती हैं. एक अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन में हर साल लगभग दस हज़ार महिलाएँ स्तन का आकार छोटा करने के लिए सर्जरी कराती हैं. हालाँकि लंदन के रॉयल फ़्री अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉक्टर एलेक्स क्लार्क का कहना है कि ये पैसे की बर्बादी है और ज़रूरत है तो सिर्फ़ सही आकार की ब्रा पहनने की।
आशुतोष पाण्डेय
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
सेलफोन का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर का एक कारण
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
मोटापा एक बड़ी चुनौती

उन्होंने कहा," इसे बदलना होगा और ये तब तक संभव नहीं होगा जब तक सरकार की ओर से कोई सुसंगत कार्यनीति नहीं होगी. सवाल है कि क्या हमारे पास इस मसले पर राजनीतिक इच्छाशक्ति है?"
प्रोफ़ेसर जेम्स ने कहा कि खाद्य पदार्थों की लेबलिंग इस तरह की होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता उसमें मौजूद वसा, चीनी और लवण तत्वों का फ़ौरन अनुमान लगा सके. उनके मुताबिक विश्व के 10 प्रतिशत बच्चे या तो मोटापे की बीमारी से ग्रस्त हैं या ज़्यादा वज़न के हैं और इस संख्या के लगभग दोगुने बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. उन्होने कहा "बड़ी संख्या में किए गए विश्लेषण दिखाते हैं कि हम बच्चों के पोषण और उचित रख-रखाव पर पूरा ध्यान नहीं दे रहे है."
नए आँकड़ों के अनुसार सात से 12 साल के ज़्यादा भार वाले बच्चे ह्रदय रोगों और ऐसी ही अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं और उनकी असमय मौत हो जाती है. बोस्टन में संपन्न एएए की बैठक में एक अन्य विशेषज्ञ प्रोफ़ैसर रेना विंग ने इस विषय में किए गए एक शोध परिणाम को पेश किया.
मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े बदलाव की ज़रूरत है
उन्होंने कहा कि मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है। उन्होंने क़रीब पाँच हज़ार ऐसे पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया जिन्होंने अपना वज़न तीस किलो तक घटाया है और छः महीनों तक यही वज़न बरक़रार रखा यानी वज़न बढ़ने नहीं दिया. उनके मुताबिक इन लोगों ने अपनी दिनचर्या में बड़े परिवर्तन किए हैं जिनमें एक दिन में 60 से 90 मिनट का व्यायाम शामिल है। उनका कहना है कि हालाँकि पुरानी आदतों की वजह से मोटापे की महामारी पर क़ाबू पाना उतना आसान नहीं है। इससे निजात पाने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.
रविवार, 10 फ़रवरी 2008
एक अनोखा रिकार्ड भी है सचिन के नाम
ली के चेहरे पर भी ख़ुशी नज़र आई। सचिन ने पीछे मुड़कर देखा लेकिन एकबारगी तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या है?
दरअसल सचिन तेंदुलकर ब्रेट ली की गेंद पर इतना ज़्यादा बैक फ़ुट पर आ गए कि उनके पैर से स्टंप छू गया और गिल्ली गिर गई. उनका पैर इतने हल्के से स्टंप से छुआ तो सचिन को इसका एहसास भी नहीं था.
सचिन तेंदुलकर ने अंपायर से पूछा- क्या हुआ? सचिन अंपायर के पास गए और अपनी अनभिज्ञता जताई. अंपायर ने थर्ड अंपायर से पूछा और टीवी रीप्ले से पता चला कि सचिन हिट विकेट आउट हुए हैं. अपने कैरियर के इस मोड़ पर सचिन पहली बार हिट विकेट आउट हुए.
बल्लेबाज़ी के मास्टर को इस रूप में आउट होना देखना किसी को नहीं भाया. भारतीय समर्थकों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई दर्शक भी एकबारगी हक्के-बक्के रह गए.
आउट होकर पवेलियन जाते समय भी सचिन की हताशा देखते बनती थी. सचिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुए. वैसे वे तीसरे भारतीय खिलाड़ी हैं, जो वनडे क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुआ है.
उनसे पहले नयन मोंगिया और अनिल कुंबले वनडे मैचों में हिट विकेट आउट हुए हैं. नयन मोंगिया 1995 में वसीम अकरम की गेंद पर हिट विकेट हुए थे तो अनिल कुंबले 2003 में न्यूज़ीलैंड के एंड्रयू एडम्स की गेंद पर इस तरह आउट हुए थे.
वैसे सचिन के लिए ज़्यादा निराशा की बात नहीं है। हिट विकेट आउट होने वालों में महान ब्रायन लारा और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंज़माम-उल-हक़ के नाम भी शुमार हैं.
अंजू 'स्नेहा'
रविवार, 27 जनवरी 2008
सिंचाई परिसंपत्ति: केंद्र के रुख से सरकार हताश
(आशुतोष पाण्डेय )
'मंगल पर जीवन' ..................

नासा के अंतरिक्ष यान स्पिरिट ने मंगल ग्रह की सतह से एक रहस्यमय आकृति की तस्वीर भेजी है. इस तस्वीर से मंगल ग्रह पर जीवन को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. भेजी गई तस्वीर को बड़ा करके वेबसाइट पर लगाया गया है। इसे देखने से ऐसा लग रहा है जैसे पत्थरों के बीच कोई इंसान हो या कोई मानवीय आकृति पहाड़ से उतर रही हो। कुछ ब्लॉगरों के अनुसार मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना को खारिज करते हुए कहा है कि यह प्रकाश के कारण उत्पन्न हुआ दृष्टिभ्रम है। जबकि दूसरों का कहना है कि यह एलियन की उपस्थिति का प्रमाण है. अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोवर यान स्पिरिट ने 24 जनवरी 2004 को मंगल की सतह पर पहुँचने के बाद जो तस्वीरें भेजी थीं उससे जीवन की संभावना तलाश रहे लोगों को काफ़ी निराशा हुई थी. क़रीब से देखने पर यह भी एक मानव आकृति ही लगती है।ताज़ा तस्वीर के बाद इन लोगों का मानना है कि इससे उन्हें वह प्रमाण मिल गया है जिसे वे नासा की फ़ोटो फ़ाइल में तलाश रहे थे। इससे पहले यूरोप के अभियान यान मार्स एक्सप्रेस ने भी मंगल ग्रह के कुछ इलाक़ों में काफ़ी मात्रा में मीथेन गैस और पानी होने के प्रमाण भेजे थे। पानी को जीवन के लिए बहुत आवश्यक यौगिक माना जाता है और मीथेन गैस भी जैविक क्रियाओं से बनती है इसलिए इसे जीवन का संकेत माना जाता है। एजुकेशन मंत्रा के डायरेक्टर के आशुतोष पाण्डेय के अनुसार सिर्फ इस तस्वीर को देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं हैं। पर इससे मिले अस्पष्ट संकेत कहीं न कहीं किसी विशेष तथ्य की ओर संकेत करतें हैं।
शनिवार, 19 जनवरी 2008
लादेन के बेटे को है शांतिदूत बनने की
अंजू 'स्नेहा'
वश में हो, तो तलाक ले लेंगी ज्यादातर महिलाएं
आशुतोष पाण्डेय
कंट्टरपंथ सार्क देशों में भी महिलाओं के लिए बड़ा खतरा
महिला समानता और लैंगिक न्याय पर 1995 में बीजिंग में हुए सम्मेलन की अगली कड़ी के रूप में सार्क देशों की महिलाओं के विभिन्न मुद्दों पर छठे दक्षिण एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शनिवार को सर्वसम्मति से यह फैसला किया गया। यूनीफेम के दक्षिण एशिया सबरीजनल आफिस और भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में सार्क देशों के सभी सदस्यों ने 'इंडिया फारवर्ड मूविंग स्ट्रेटजीज जेंडर इक्वलिटी-2008' घोषणापत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं। जिसके तहत सार्क देशों की महिलाओं के लिए बनी कार्ययोजना पर अगले दो वर्र्षो में अमली कार्रवाई की जाएगी।
सम्मेलन के बाद यूनीफेम की क्षेत्रीय प्रमुख चांदनी जोशी ने कहा कि सार्क देशों की महिलाओं के लिए भी कंट्टरपंथ बड़े खतरे के रूप में उभरा है। उन्हें भी इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल व दक्षिण एशिया के दूसरे देश भी इससे अछूते नहीं हैं। इसलिए सार्क देशों के बीच साझा नेटवर्क बनाने का निर्णय लिया गया है, जो खास तौर से महिलाओं को उनके अधिकार सुनिश्चित कराएगा। इसके साथ ही समानता के अधिकार के मद्देनजर सार्क देशों की महिलाओं की नागरिकता के अधिकार पर उनके बच्चों व पतियों को भी नागरिकता दिए जाने पर सहमति बनी है। सम्मेलन में यह सवाल इसलिए उठा कि अभी सिर्फ पति की नागरिकता के आधार पर उसकी पत्नी व बच्चों को नागरिकता मिलने की बात होती है। सम्मेलन में सार्क देशों के बीच जेंडर डाटाबेस भी बनाने पर भी सहमति बनी है।
इसके अलावा महिलाओं के साथ भेदभाव को खत्म करने के लिए कानून बनाने, घरेलू हिंसा रोकने के कानून को प्रभावी बनाने, महिलाओं-बच्चों की तस्करी रोकने व प्रभावितों के पुनर्वास, संपत्तिव भूमि को नियंत्रित करने का अधिकार देने, नीतिगत मामलों व निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने जैसे कई मामलों में भी सभी सदस्य देशों के बीच सहमति बनी है। सम्मेलन में भारत, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान और मालद्वीव के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
रविवार, 13 जनवरी 2008
इंटरपोल अध्यक्ष ने पद से इस्तीफ़ा दिया

जैकी सेलेबी को शनिवार को दक्षिण अफ़्रीका पुलिस के राष्ट्रीय आयुक्त के पद से निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद ही उन्होंने इंटरपोल के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया। दक्षिण अफ़्रीका में अभियोजन पक्ष ने कहा है कि जैकी सेलेबी पर भ्रष्ट्राचार का मामला चलाया जाएगा हालांकि ये नहीं बताया गया कि कब। आरोप है कि जैकी सेलेबी ने एक अपराधी से कथित तौर पर एक लाख 70 हज़ार डॉलर लिए। लेकिन वे इस बात से इनकार कर रहे हैं कि उनके आपराधिक तत्वों से कोई रिश्ता था।
आशुतोष पाण्डेय
मंगलवार, 8 जनवरी 2008
जम्मू कश्मीर में अलग मुद्रा चलाने की मांग पर भा ज पा का बबाल

भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि मंत्री की यह मांग न सिर्फ अलगाववादी है, बल्कि आतंकवाद को भी पोषित करने वाली है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कांग्रेस और केन्द्र सरकार इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी चुप्पी साधे हुए है। रूडी ने यूरोपीय देशों की एक मुद्रा यूरो चलाने का हवाला देते हुए कहा कि 'पूरी दुनिया के कई देश जब राज्य और अपने बीच सामान्य मुद्रा लाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं भारत के गणराज्य में एक प्रांत अलग मुद्रा चलाने की मांग कर रहा है। यह भारतीय संविधान की भावना के सर्वथा विरुद्ध है और ऐसी अनर्थकारी मांग पहली बार की गई है।'
भाजपा प्रवक्ता ने याद दिलाया कि जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में 'दो संविधान, दो विधान, दो निशान और दो प्रधान' का विरोध करते हुए शहादत दी थी। उन्होंने कहा, देश से अलग मुद्रा चलाने की मांग उससे भी ज्यादा विभाजनकारी है। रूडी ने ऐसी मांग करने वाले वित्तमंत्री को तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष से इस विषय में मुंह खोलने की मांग की।
उधर, पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को शहीद का दर्जा देने की भी भाजपा ने आलोचना की। रूडी ने कहा कि एसजीपीसी का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है और पार्टी को इस तरह की भाषा और कृत्य कतई स्वीकार्य नहीं है।
सोमवार, 7 जनवरी 2008
जेमा आर्टर्टन बनी नई 'बॉंन्ड गर्ल'

गुरुवार, 3 जनवरी 2008
आई-स्नेक: आसान होगी सर्जरी
लॉर्ड डार्ज़ी का कहना है,''आई-स्नेक से सर्जरी सस्ती और कम पीड़ादायक तो होगी ही, इलाज़ में समय भी कम लगेगा और लोग जल्दी ठीक होंगे.''
वेलकम ट्रस्ट के तकीनीकी हस्तांतरण के निदेशक डॉ। टेड बानको कहते हैं, ''अब वो दिन लद गए जब ऑपरेशन थियेटर में छुरियों से सर्जरी होगी। आने वाला समय आई-स्नेक जैसे आधुनिक उपकरणों का है।''
Sangeeta
सबसे नौजवान ग्रह की खोज
नया ग्रह का नाम टीडब्ल्यू हाइड्रे रखा गया है।
इसकी खोजा जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फार एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों ने की है। इसे सबसे कम उम्र का बताया जा रहा है ग्रणाओ के अनुसार यह ग्रह सिर्फ एक करोड़ साल पुराना माना जा रहा है । नए ग्रह की उम्र सौरमंडल की उम्र का मात्र 0.2 प्रतिशत है। इसे सबसे कम उम्र का ग्रह बताया जा रहा है।
हमारी पृथ्वी की उम्र लगभग 4.5 अरब वर्ष है। जबकि अब तक ज्ञात सबसे नौजवान ग्रह दस करोड़ साल पुराना था।
आकार : पृथ्वी से 3,115 गुना और हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से लगभग 9.8 गुना ज्यादा।
स्थिति : पृथ्वी से 18 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर। यह अपने सूर्य से सिर्फ 37 लाख मील की दूरी पर है, पृथ्वी सूर्य से 9.3 करोड़ मील की दूरी पर है। यह अपनी धुरी का एक चक्कर 3.56 दिन में लगाता है।
-वैज्ञानिकों के मुताबिक नए तारों के विकसित होने के बाद टीडब्ल्यू हाइड्रे अस्तित्व में आया होगा।
-ग्रह गैस और धूल के पिंड होते हैं। किसी नए ग्रह के आसपास गैस व धूल के बादल पाए जाते हैं। जबकि इस बच्चा ग्रह की कक्षा में इनकी अनुपस्थिति वैज्ञानिकों को चौंका रही है।
आलेख: आशुतोष पाण्डेय
प्रस्तुति: अंजू